पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/१८९

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गन्धर्व १८७ प्राणीको मृत्य होने पर जब तक दूमरा शरीर प्राप्त नहीं । दर्पणमें छाया वा प्रतिविम्ब, प्राणीक देहमें शीतोष्ण होताहै, तब तक वह एक सूक्ष्म शरीर धारण कर यातना और सूर्य किरण एवं देहमें जीव जिस प्रकार अलक्षित अनुभव करते हैं। उनकी इम अवस्थाको अन्तराभवमत्त्व हो कर प्रवेश हो जाते हैं, उमी प्रकार गधर्व ग्रह भी कहते हैं। अलक्षित होकर मनुष्यके शरोरमें प्रवेश करता है। टोकाकार रमानाथ मतमे अन्तराभवमत्त्वका अर्थ इमको शान्तिक लिये नियमित जप और होम प्रभृति गुप्त प्राण है। उन्होंने उदाहरण स्वरूप विराटपर्वका देवक्रियायें करनी चाहिये। रक्तवण गंधमाल्य, मधु, "गर्ग, यो मन यह वाक्य उद्दत किया है। वृत अनेक प्रकारक खाद्य, वस्त्र, मद्य, मांम, रुधिर और ४ ग्रह 'वशेष, एक प्रकारका ग्रह, जो ममय पाकर दुग्ध प्रभृति प्रदान करना उचित है। मनुष्य शरीरमें प्रवेश कर अनक तरहकी अशान्ति उत्पा इतन करने पर भी यदि गंगोको शान्ति न मिले तो दन करता है। आर्यचकित्मक सुश्रुतका कथन है कि वद्य अषध प्रयोग करना चाहिये। कागल, भालु, शल्यक क्षत और आतुर रोगीको निशाचर्गक हाथमे रक्षा करने और उन्न इनके चमई और रोमको होङ्ग एवं वागमुत्रमें लिये मव दा यत्नवान् होवें । चाह रोगो क्षत हो अथवा | मिला कर ध म प्रयोग करनमे बलवान ग्रहमे रोगी छट न हो किमो तरह अशुचि होनमे ही ग्रहगण हिसाभि काग पा मकता है। लाष पूर्ण करने अथवा पूजा पानको प्राशासे रोगीक शरोर गोसर्प, नकुन्न, बिड़ान और भालुकका पित्त एकत्र में प्रवेश कर उसे अनेक तरह के कष्ट देते हैं । यथा कर गजपिप्पन्नीक मून, त्रिकट. आमनका और मरमों 'नयममे उनकी पूजा अथवा उपय क्त औषध नहीं देनमे | देकर भावित करें। दमकं नश लेन और सेवन करनेमे वे रोगीको मार डालते हैं। ग्रहको शान्ति होती है। डम प्रभारी ग्रहोंको संख्या बहुत है। किन्तु प्रधा- नटकरञ्ज, त्रिकट, मीणा, वेन्लमूल, हरिद्रा और दारू- नतः ये पाठ भागांन विभक किये जा मकते हैं। हरिद्राको एक माय लेकर इमको वत्ती बनावें। पित्तके यथा-देव, अमुर, गन्धव , यक्ष, पिट, रत, भुजङ्ग ओर महयोगमे दमका अञ्जन मेवन करनमे ग्रहको शान्ति पिशाच । दनक आवंश होने पर रोगी भूत भविगतका होती है। ये मब औषध या अन्य कोई चिकित्सा देवग्रहमें हाल मान्नम कर सकता है । उम ममय य . भूत अयुक्तरुपमे प्रयोग नहीं करना चाहिये। पिशाचर्क और भविषात्री घटना पूछो जा- ह माफ माफ अतिरिक्त किमी दूमरे ग्रहमें कोई प्रतिकूल प्राचरण करमा कह देता है उम समय गेगोकी महष्ण ता विलुप्त हो जाती है। जो मर काय मनुष्य बुहिम अगम्य है, कभी निषिद है करनेमे ग्रह क ड होकर वैद्य और गेगी दोनों- भी उनसे व कार्य सम्पन्न नहीं हो मते उन्हें रोगी को ही नाश कर डालता है। (मुमत 1110 ६. प.) अनायाम हो अनुष्ठान करके दशकों को विस्मयापन ___ गन्धर्व ग्रहको कथा व टिक उपन्याम भी वर्णित और आत्मीय स्वजना को भयविहल तथा शोककातर बना है। वृहदारण्यक उपनिषद में लिखा है कि किमी ममय बहुतमे मुनिकुमार अध्ययन लिये मद्रदेशको गये थे । देता है। आधुनिक वैज्ञानिक जो कछ कह लेकिन विथामक लिय व कपिगीतमम्भव पतञ्जलक एहमें जा प्राचीन थिएन इम अवस्थाको भूत वा ग्रहावंश कहतं पहचे। वहां उन्हनि उनकी नन्दिनीको गधर्व ग्रह एवं ग्रहपूजादि करके रागोको प्रकृतिस्थ कर देते थे। वशीभूत देखा। गन्धर्व ग्रह के आवेश होने पर रोगोका मन मदा "मटेष चरका: पब मामले पतभन्नम्य काध्यम्य ग्रहानम, हष्ट रचता पार नटोतोर वा निजेन वनमें भ्रमण करन- तामोद दहला गधत (दार गायक, ७ मामा ) की यथेष्ट अभिलाष बनी रहती है । इम अवस्थामें रोगो ५ परगड, रंडी। गंध, माल्य प्रोन गोत बहत पमन्द करता तथा कभी "गधवन नमिछा होतको गोऽम्ब ना पिवेत् । (TR काय ) माचता और कभी हंमता है। है देवयोनिविशेष, स्वर्गगायक । ये देवताको