पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/२०९

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गया इमी के निकट आदिगया नामक स्थान है। उसके चारों | नामक अधीनस्थ ब्राह्मणां हा। हो मब काम कराया ओर पत्थरके खम्भे लगे हैं। प्रवाद है कि पूर्वकालको करते और केवल सुफन्न टेनकै ममय पर हो देव पड़ने वहीं मब लोग करके पिण्डदान करते थे । ब्रह्मयोनि हैं। गयावान देशो। पर्वत पर एक अद्भत गहर है। उसोको भीमगया ____गयाका टूमर। नाम पिटतोथ है। कारण यहां पा कहा जाता है। लोगोंको विश्वाम है कि वहां भीम | करके हिन्दूमात्र पिटपुरुषोंक उद्देश पिगट टेनका विधि पटने टिका करके बैठे थे। पहाड़में आज भी उनके |. है। गयामाहात्मामें लिखते हैं । बायें घुटनका चित्र बना है। इमोमे यात्री भीमगयामें "भारमजयान्य नो वापि गयो ग्राज यदा तदा। बाय घटनके बल बैठ करके पिण्डदान करते हैं । इमी यन्त्रमा पावरन विड' सन्नये । वद्य शाश्वतम् ।” (१५) ब्रह्मयोनि पर्वत पर पञ्चानना आदिशक्ति का मन्दिर है। निज पुत्र किंवा और कोई किमो भी ममयको गया वह १६८.० मम्बत्को बना था। यहां अनेक दंयमूर्तियां | जा करक जिममा नाम ले कर पिण्डदान करता, वह पडी हैं। मम्राट ओरङ्गजबके दौरात्मामे यहांको बहुत शाश्वत ब्रह्मधाम पहुंचता है। मो द वमूर्तिया भग्न और श्रोहीन हो गयो है . "गमाया मकान पिण्ड दवाद विच सगाः । गयावामियोंको विश्वाम है- ब्रह्मान गयावालीको अधिमा जन्मदिन पन नगरु कयोः । जो गो प्रदान किया, यह उमोका पदचिह्न है । किन्तु नन्य व्यं गयावाड मिथ चपत (१०) । महाभारतमें लिखा है-पूर्व को । तापरि मञ्चरण मन्नमाम, जन्मदिन, मिहम्थ बहम्पति और मकान कालम मवत्मा कपिलाका जो पद चिन पड़ा था आज पर पगिडतांको गयामें पिराडदान करना चाहिये। भी नहीं मिटा है इन ममत पदचिह्नम स्नान करनेमे "पर काम न हो च गया चमत, इनि। मानः बार प्रयई केनिभाव पनिमा मह। मकल प्रकार अशभ विनष्ट होता है। (वन ८४५०) ज्ञडिमाई न मानादि गया पिay कम। मकल वैदियांका दश न और पिगडदानादि शेष मन ना मुष्टिमात णा दादयविदाम ॥ होन पर यात्री गायत्रीघाटमें जा हचते हैं। यहीं तिम्लाजामधुदन्यादि पिसाप यायेत ॥ गयावाल्ल पा करके मुफल बोलते हैं। लोगोंको विश्वाम पायमेनापि चरुणा मक माविष्ट केन वा। है, गयावालांक जाकर सुफल प्रदान न करनमे मभी गुन तथा नादो पिण्डदान विधीयते ॥ कार्य बिगड जात हैं। इससे उस ममय गयावाल मुष्टिमावप्रमागोन चौदामन कमावत:। गम पवमान विद दवादगया गिरे। तीर्थ यात्रियोंको दबा करके बैठ जात और जहां तक हो अहरेन सप्तगोवामा कुल मे कोत्तर शतम् । सकता, उनसे श ष दक्षिणास्वरूप रुपया ले लेनमें नहीं माता पिता च भार्या च भगिनी स्तिः पतिः । चूकते। वस्तुत: मुफल बोलनकै समय पर हो गयावाल पिसवमा मालतमा मनगावाः प्रकीतिमाः । यात्रियोंके पामसे जीरके माथ अधिक अर्थ लाभ किया विशभिविमति: विव बटन्टा: षोडणक्रमात् । करते हैं। पहले यही सुफल दंते ममय यात्रियों पर एका दिशाथ कालान्यकरिम ) विलक्षण उत्पीड़न होता था। आजकल अगरेज गवन अष्टकादिवम, डिकान, गयातीर्थ और मृतदिनम मगटके शासनगुणसे उतना उत्पीड़न हो नहीं मकता। माताका थाड पिताम पृथक करना चाहिये । कृषि- पूर्वकालको गयावाल हो तीर्थ यात्रियोंकि माथ कालको पहले मागण और पोक पिळगणक याज करन- ममण करके थाइकार्यादि कराते थे, परन्तु अब वह का विधान है। परन्तु गया पहले पिटगण पोर पोछ बात नहीं रही। आजकल गयावाल ब त बडे धनी माटगणका थाद्ध करना चाहिये। तिन, घृत, मधु, हो गये हैं, अन्नके लिये किमीको कोई भावना नहीं। दधि प्रभृतिक माथ मुष्टि प्रमागा शत्त हारा पिण्ड दिया सुतरां आजकल वह अपने आप कोई न करके धामिन करते हैं। पायम, घरु, मत , पिष्टक, गुड़ और तण्ड • चौनपरिकाक युएमाग्न असा पहाड़ को देवपत्र त मेमा निरखा है।। लादिमे भी पिड दे सकत है। गयाशोध में मष्टि