पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/२३५

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उसके नीचे दो प्रकोष्ठ, फिर पहुचा, दो हथेलियां, दो अङ्ग ल है। उसमें शङ्खावतको तरव ३ वलय पड़े हुए योको १० उंगलिय और उसमें १० नख हैं। इनमें पहलेका नाम प्रवाहिनी है। उसकी नाप होते हैं। चौथा अङ्ग वक्षःस्थल है। उसका उपाङ्ग दो | डेढ़ अङ्गल होतो है। उमके नोचे डढ़ हो अलकी स्तन हैं। पुरुषोंसे स्त्रियोंके दोनों स्तनांमें प्रभेद पड़ता उत्सर्जनो है। उसके निम्नभागमें एक अंगुलकी मञ्चरतो है। जवानी में स्त्रियोंके दोनों स्तन उठ पात हैं। गर्भ रहती है। गुह्यदेशका मुह आध प्रङ्ग ल पड़ता पौर वती और प्रसूतिके दोनों स्तनोंम दूध भर जाता है। मलत्यागका पथ ठहरता है। पुरुषों का प्रोथ हो स्त्रियों- हृदय मलकी तरह और नोचेको मुंह किये हुए अव का नितम्ब कहलाता है। उसके बाद दो ककुन्दर (फूले) स्थित है। जागते रहने से वह खिलता और मो जानसे हैं । उसके बाद दो मथि आते, जो आठवां अङ्ग कहलाते मिकूड़ता है। यही हृत्पद्म जीवात्मा और चेतनाका हैं। इसका उपाङ्ग-दो घुटन भार पिंड लयां, दो जांचे, स्थान है। इसीसे उसके तमोगुणसे भर जाने पर प्रागी दो घण्टिकाए', दो पाणि, दा तनवे ओर दा पदाग्र है। सोया करते हैं। उसके बाद दो कोखें. छातीके दो जोड यह शरीर अपरापर मिन जिन अवयवोभूत कारणांसे और दो मलिया और उमके बाद वंक्षण (चढ़ा) है। बनता, यह हैं-वात, पित्त, कफ और धातुममूह । गर्भ पेट पांचवां और दोनों बगलें छठा अङ्ग हैं। रीढ़के माथ ग्रहणक पछि हो योनिम शुक्रशोणित बहता, श्रम मान्न म सभी पीठ मातवा अङ्ग है। उसका उपाङ्ग प्लीहा ठह पहता, जांघे सुन्न हो जाती, प्याम बढ़तो, ग्लानो पातो, रतो, जो खन से उपजती और हृदयके अधोभागमें बाई योनि फड़कतो, दोनों स्तनोंका मुह काला होता, रोगटे ओर रहती है ऋषि लोग उसको रक्तवाही शिरा खड़े हो जात, आंखों तथा पलकांक बाल मिकुड़त, अनि- ममूहकी जड़ कहा करते हैं। हृदयके अधोभागमें बाई | च्छामें वमन उठता, मनोहर गन्धसे जो बिगड़ता, कफ ओरको फेफड़ा है। वह खुनके झागसे पैदा होता है। गिरता और अवमाद लगता है। उपयुक्त मभी चिक उमके बाद दयकी दक्षिण ओरके लहसे उत्पन्न यवत् गर्भिणी हैं। अवस्थित है। वह रक्त और पित्तकी जगह है। उमकै बाल, दाढ़ी, मंछ, रूए', नख, दाँत, शिरा, धमनो, नीचे हृदयको दाहनी और लोम ( तलखा ) है। वह स्रायु, माद, शुक्र और रक्त पितासे उत्पन्न होता है। फिर जलवाही शिराको ज ठहरता और प्यासको रोक रखता मांस, मज्जा, मेद, यक्वत्, प्लीहा, अन्त्र, नाभि, हृदय और है। उमकी उत्पत्ति वातरक्तसे है। मेद और शोणित. गुह्यदेशको उत्पत्ति मातामे है। शरीरको बाढ़, रङ्ग, के सारसे दोनों बुक्क बनते हैं आयुर्वेदवित् पगिड़त बल आर देहकी स्थिति रमसे निकलता है। ज्ञान, पुरुषों की प्रांत साढ़े ३ व्याम । चार हाथका एक माप) विज्ञान, आयुः, सुखदुखः आदि और इन्द्रिय जीवात्माको और स्त्रियोंकी तीन व्याम परिमित बतलाते हैं। फिर ही हा करते हैं। स्त्रीको रमवाहिनी नाडीसे गर्भ उगड़क अर्थात् फेफड़ों को ढांकनवाली झिल्ली है। उसके की नाभि मिल जाती है। इससे गर्भ नित्य नित्य बाद यथाक्रम कमर, त्रिक (रोढ़के नोचेको जगह), वस्ति बढ़ता है। यही गर्ने माताको निश्वाम, उच्छाम, और दो वंक्षण आत हैं। वस्तिदेश ( पड़ ) से बड़ी मक्षोभ और स्वतांश प्राप्त होता है। बडी नसे निकली हैं और वष्ठ वीर्य तथा मूत्रस्थान भो गर्भस्थ सन्तानकी नाभिमें ज्योतिःस्थान प्रतिष्ठित है। स्त्रियोंको योनि शङ्खनाभिको तरह तोन आवत है। वायु इमो ज्योति: हारा वालित होता और उमोसे विशिष्ठ होतो है। इमी योनि द्वारा स्त्रियोंके पेटमें गभा गर्भ का देह बढ़ा करता है। वायु उमाके साथ मिल धान लगता है। योनिको तोनरी लपेटमें गर्भ रहता करके शरीरक जिम जिम स्थानमें पहंचता, गभस्थ सन्तान- है। दोनों अण्डकोष कफ, रक्त तथा मेदके मारसे उत्पन्न का वही अङ्ग बढ़ता है। वाकी कमी और पेटको हैं। यही दोनों प्रण्ड वीर्यवाही शिराका आधार हैं, येलीमें हवाके न पहुंचने-दोनों कारणमि पेटका बच्चा उन्होंमें पुरुषत्व प्रतिष्ठित है। गुधका परिमाण साढ़े न तो सांस लेता और न मलमुत्र छोडता है, _Vol. VI. 59