पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/२७२

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गाउन-गाकर , २ वह मनुष्य जो दूसरेको किसी स्थानके प्रसिद्ध प्रसिद्ध . उल्लेख किया है। यह भी दाही शाखान्त क्त तरानी स्थानोंको दिखाता हो। जाति हैं। कनङ्गहामके सिद्धान्तानुसार हरकनियाके गाउन (J० पु०)१यरोप तथा अमेरिका आदि देशोंकी रहनेवाले अरबो नादरायु यस्तामम अथवा ततपर्व- त्रियोंके एक प्रकारका पहनावा । २ एक प्रकारका वर्ती किमी शक राजा राजत्वकालको वितस्तातीर लवा ढीला वस्त्र जिसके परिधानके अधिकारी सिर्फ प्रवीयान नगरमें जा करके उपनिवेश स्थापन किया ईसाई धर्म के आचार्य, ग्रेजुएट, बड़े बड़े न्यायकर्ता और हिरोदोदास वणित "मागर" वा "क"शल तथा थोड़े विशिष्ट मनुष्य हैं। गाकर नाम निकला। शब्द-तत्त्ववेत्ता बतलात कि शाक, गाउघप्प ( हि वि० ) १ दूमगेको चीजको पचानेवाला, | साकर और गाकर शब्दमे किमी लौहास्त्रका बोध होता वैमान, जमामार । २ बहुत व्यय करनेवाला । जो अबर नामधेय लोगांका जातोय अस्त्र है । सुतर। गाकर-पत्राब प्रदेशको एक जाति । यह लोग मिन्ध | देश और कालभदमे मागर वा आबर अस्त्रधारी ष्ट्रावोल्लि- और वितस्ता नदीके बोच सिन्धुसागर दोआब नामक खित अपणिों ( हरकनियावामो अबरों) ने गाकर स्थानके उत्तरांशवासी तूरानी हैं । इन्हें कहीं कही जैमा नाम धारण किया। गाकर या गागर भी कहा जाता है। मिया इसके डिओनिमियास, प्रिसकियानाम प्रभृति इतिहास पढ़नेसे समझ पड़ता है कि वह बहुत दिनों ऐतिहासिको के ग्रन्थों में किसी ममृद्धिशाली गागर जाति- से भारतके उत्तर पश्चिमांशमें रहते हैं। परन्तु उनके का उल्लेख है। पञ्जाब प्रदेशको शतद्रु और अशिकी नदी भारत पानेका ठीक पता नहीं। निकटवर्ती तक्षशिला राज्यके पहाड़ों में उनका वास था । __ ऐतिहामिकोंके मतानुमार पुरुष और तक्षशिला राज्य सम्भवत: वही वितम्ता-नदीतीरवर्ती गाकर जाति हैं । के उत्तर वर्तमान सुहा नदीक उत्पत्ति स्थान मूरो तथा वह वैकम हियाक्रिसका उपासना करते थे। ( Diony- मार्गल गिरिसकटके निकट प्राचीन अभिसार राज्य sius orbis descriptio, V.114:3. Priscianus, V. था। वही स्थान वर्तमान गाकरी की वामभूमि और 1050) कोई अनुमान करता कि मिन्ध और वितस्ता बही अभिमार रायको पूर्व तन प्रजाके वंशधर जैसे नदीके मध्यवर्ती गन्धगड़ पर्वत पर 'मसवानी' अफगान अनुमित होते हैं। वह भारतवासी हिन्दू नहीं हैं। इति रहते हैं। वहां उनको 'गन्धगड़िया' कहा जाता है । यही हास पढ़नेसे यह भी ज्ञात होता है कि अभिसारराज गन्धगड़ पर्वत किसी कालको गाकर वा गागर जातिका उत्तर मद्र (Media) तथा पारद निवासी सर्योपासक शक सुरक्षित आवासस्थान रहा। एतव्यतीत और भी गई। पुरावेत्ता एरियानने उक्त मतको सम्भवपर और माल म पड़ता कि स्यालकोटके यादववंशीय राजा रसालु- यथार्थ जैसा ठहराया है। फिर मुसलमान लेखक लिखते | के साथ गन्धगड़वासी दस्युओं को विशेष शत्रु ता रही। पौर यह अपने पाप भी कहते हैं कि वह प्रफ्रेशियाके पीछेको उनके वंशधरी कटक भिसारके गागर सदन कयान देशसे जा करके पजाबके उत्तरपश्चिमांशमै बसे दमित हुए और दो शताब्दियोंतक निस्तेज रहे। सुतरां पौर मङ्गल नगरके उस पार वितस्ता किनारे अबीयान अनुमान लगता है कि गन्धगड़वाली 'गन्धगड़िया' और नगरमें राजधानी स्थापन करके रहे । पुरातत्त्ववित् कनिङ्ग पाश्चात्य इतिहासगत मन Gargaridae ) शब्द हाम साहब इन दोनों प्राच्य नामोंसे अनुमान करते कि गाकर जातिका बान्सर मात्र है। वह पुराने अरबी या भरफी लोगोंको शाखा ठहरते हैं। लिखा है कि उन्होंने पञ्जाबके अन्तगत किसी समय वह सौभाग्यवान् और बलवान् थ, पूर्वाभि- भैरान प्रदेशके कछवाहवंशीय राजा केदारको मुखी हो करके भारत जा पहुंचे। खुरासानके अन्तर्गत 7 ..ल बाहर करने में तदीय आत्मीय राजा दुर्गा- वर्तमान नियापुरमें उनकी राजधानी रही। इतिगाल का साहाय्य किया। ६३ हिजरीको गाकरोंने अफगा- वेत्ता प्रावोने उक्त स्थानवासी लोगों को 'अपर्णा जैसा नोसे सन्धि करके लाहोरके राजाको वशीभूत किया और