पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/२९५

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२६३ गाढ़ापुरो-गाणपत मन्दिरका सौताबाई का दं बालय कहते हैं । मण्डपर्क गाढ़ावटी (सं० स्त्री० ) गाढ़ा वटो वटिका यत्र बहुव्री. । चारों ओर ४ खम्भे हैं। फिर ८ फुट ५ इञ्च ऊचे गेड़ों- चतुरङ्ग कोड़ाओंमें एक प्रकारको क्रीड़ा। के भी दो खमे लगे हैं। मण्डप ७३ फुट ६ इञ्च लम्बा "मोकका वटि का यस्य विद्यते नम यदि । और उत्तरको २७ फुट ४ इञ्च तथा दक्षिणको २५ फुट गाढावटौति विख्याता पद तस्य न दृष्यति" (सिथि तत्व ) ७ इञ्च चौड़ा है । इसके दोनों पाखौं पर २ अन्तराल- गाणकाय ( म० वि० ) गणकारीभव: गणकारिख । यह हैं। मध्यस्थलका एह गर्भग्रह होता है। इसके कुवादिमा पा: . (पा ४।१।१५१) गणकारिका अपत्यादि, गणगारि प्रवेशद्वार की उंचाई ७ फुट ११ इञ्च और चौडाई ४ फट ऋषिके वंशज । ११॥ ञ्च है। भोतरको ५ फुट ४ इञ्च लम्बी और ३ फुट गाणगारि ( मं० पु० ) गणगारस्यापत्य इञ्। मुनिविशेष । ५ इञ्च चोड़ो वेदो बनी है। इमक उत्तरका प्रणा- "मोमध मागागारिः ।' (भावनायनीत० २१७१८) लिका है गागापत ( स. त्रि.) गणपतिर्देवता अस्य, गणपति- ___ महत् गुहामन्दिरमे पश्चिमको पर्वतशिग्वर पर एक अण । १ गणपति सम्बन्धाय । २ गणपति उपामक। भग्न व्याघ्रम ति है। होपवासी इमको उमाव्याघ्र श्वरी गाणवत पञ्चप्रकार उपासकोंमें एक होते हैं। शव, या देवोकी व्याघ्रम ति जैसी भक्ति और पूजा करते हैं। शाक्त वा वैषणवांकी भांति यह भी अपने इष्टदेवता केवल गगापतिको मब देवताओं का प्रधान समझ करके उपा- यह ३ फुट ऊंचो है। ठोक निरूपण किया जा नहीं मकता कितने दिन सना करते हैं। आजकल गाणपत सम्प्रदाय बहुत घट पीछे किस राजा राजत्वकालका और किमक द्वारा उम- गया है। और आचार व्यवहारम भी अन्यान्य उपाम- के गहामन्दिर खोटे गये। स्थानीय अधिवासियांमें तीन कों के माथ इनका कोई भेद लक्षित नहीं होता । परन्त विभित्र प्रवाद प्रचलित हैं। कोई कोई कहता कि किमी समयको इस मम्प्रदायन विशेष उवतिलाम पागडवनि हो वह मन्दिर बनवाया था। फिर किमो- किया और वैष्णव सम्प्रदायको सरह एक पृथक मत के मतमें कनाडाक राजा वाणासुर और किसीक कथना- चला दिया था। कर्व दसहिता (२।२३।१ ) के मम्म और वाजसनेय-सहिता (१६२२-२३) के अधयायमै नुमार मिकन्दर बादशाह उमक निर्माता रहे। किन्तु गणपतिकी स्तुति मिलती है। इससे मालम पड़ता कि उपयुक्त प्रवादों का मत्यासत्य ममझ नहीं पड़ता। बरगस ( James Burgess) साहबने विशेष पर्या- प्राचीन कालसे ही गणपतिको उपासना चल रही है। लोचना करके इन गुहामन्दिरोंका निर्मागा काल ई० तन्त्रशास्त्रम शिव आदिको उपासनाको तरह गण- ८म शताब्दीका शेषभाग अथवा टम शताब्दीका प्रारम्भ पतिकी उपासना भी प्रधान जे सो निर्णीत हुयो है । ही ठहराया है। सिवा इसके तन्त्रशास्त्रमें और एक विधान देख पडता आजकल इस मन्दिरमें अपर कोई खोदित शिल्प कि किमी भी देवताको उपासना क्यों न की जाये लिपि दृष्ट नहीं होती । १५४० ई०को पोर्तगीज गबर्नर सर्व प्रथम गणपतिको पूजना पड़ेगा। जो गणपतिको उमजोयाव-दि-क्राष्ट्रो इस पहाड़ो गुफासे १ शिल्पलिपि पूजा न करके अन्य देवताको पूजता, वह पूजाफलमे वञ्चित अपने देश ले गये थे । सम्भवतः उसीमें उमक निर्माण रहता है। हिन्दू लेखक किमी ग्रन्थको लिखना प्रारंभ काल और निर्माताका नाम होगा। वह प्रस्तलिपि खो करने पर सर्व प्रथम "नमो गणीशाय" वा "श्रीगणेशाय गयो है । भविष्यत्में उसके पुन: प्राहा होनसे इमक काल नमः" लिपिबद्ध करते हैं। इन्हीं ममम्त कारणों से बह- निर्णयको आशा की जा सकती है। तसे लोग अनुमान करते किसी समय गाणपत सम्प्रदाय किमो शवपर्व को हिन्दूबणिक् इस बड़े गुहा- अतिशय प्रबल रहा। उनको युक्ति और उपदेश शास्त्र मन्दिरमें पा करके पूजा और उत्सवादि किया करते हैं। सङ्गत तथा सबको आदरणीय था । गाणपत्य धर्मने शिवरात्रिको यहां बड़े धूमधड़ाकेसे मला लगता है। सम्पर्णरूपसे न सही, आंशिक रूपमे प्रायः सभी सम्पदा- Vol. VI. 74