पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/३२४

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३२२ गारी प्रादारणा कन्याका विवाह करनम् श्वशुरक मरन पर १८७० ई०को खामो पहाडकी पैमायश हुई। फिर सामके साथ भो विवाह करना पड़ता और उनकी ममस्त में जर गडविन अष्ट न नामक मनानोके अधोन अमीन सम्पत्तिका अधिकार मिलता है। इसी प्रकार स्त्री लोग गारो पर्व तमें जरीब लगानका आगे बढ़ उत्तरपूर्व परम्परामे उनका उत्तगधिकार ठहरता है। स्त्री ही। अञ्चलम जा पहचे। ममनामह और खानपाडे के घरको मर्व मयो कों है। बोचका यह अश उम समयको वृटिश अधिकारमे रहा। किमोकं मरन पर यह मृतद हको उत्तमोत्तम वेश | उमक पोछ स्थानीय डिपटी कमिश्नर विलियमसनने भूषामे मजा करके २३ दिन रग्व छोड़ते और मृतक | मेजर अष्टं न माथ माथ गांगों के स्वाधीनदेशम प्रवेश आत्मीय रातको रोते पोटते जाग करके शव रक्षा करते । किया। बाङ्गनगिरि ग्राममे एक कोटा युद्ध हनिवाला हैं। फिर तीसरे या ४थ दिनको लाश जलायो जाती था, परन्तु मजर अष्ट नर्क काशलमे रुक गया। समिश्वगे है। भम्म राशि को बाम बाड मे पर ले और उस पर उपत्यका तक जरोव निर्वाद चलता रहा फिर १८७२ खाद्य तथा पानोय छोड़ देते हैं। इनको विश्वास है कि ई०को अमोन महिमगम नामक पर्वत पर उपस्थित मृत व्यक्तिका आत्मा मरण पोछे चिकमाङ्ग पर्वत (सम हुए । इमो स्थानमै फगमगिरि और रङ्गमागिरि नामक एक उत्तर ) पर अवस्थान करता है। भोज, पान और २ ग्राम हैं । उनम' एक तो स्वाधीन रहा, दूमरा कुछ भानन्द उत्सवमं थाङकम ममाप्त होता है। एक सप्ताह कुछ समझकी अधीनता मानता था। गागे भाषा न पोछे शवभम्मको मृतव्यक्तिक ग्रहहारमें गाड़ करके उम जाननवानं दो कुली उक्त ग्रामों को माइमनराम गिरि पर एक ध्वजा लगा देते हैं। गांवमें ऐमी अमंख्य ध्यजा परिष्कार कर लियं मजदर बुलान भेजे गये । रामा- ए दिखलाती हैं। गिरि ग्राममें जब यह पहुंचे, वहां अविवाहितोंके आय यह 'मालजाङ्ग' नामक एक आदिदेवको स्वीकार | मम पानभोजनका कोई उत्मव हो रहा था। दोनों करते हैं। सूर्य हो उनका प्राकार हैं। इनका विश्वास कलिया का मम्भवतः आमादमें बाधा डालनसे मखियाक है कि शारीरिक मानसिक पोड़ा आदि कई अपद वता कहने पर पकड़ कर मारडालनका उद्योग किया। एक भोंके क्रोधमे उठ खड़े होते हैं। उनकी प्रीतिक लिये | तो काट डाला गया, परन्तु दूमरा भाग खड़ा हुआ और नानाविध उपहारादि देने पड़ते हैं। यह माधारणत: तुरा जा कर अपने मायोक गागंयांक हाथ मरने का किमी बहक्षतल, ग्रामर्क मध्य वा बाहरम' किमी सवाद दिया। कपतान लाटुनीक अधीन एक पुलिममैन्य स्त पपर प्रदत्त होता है। कभी कभी अपद वताओंका पहुंचा था। उक्त दोनों ग्राम कि लोग पगजित हुए। मय दे ग्वान के लिये गांवकी राह पडकी डालियों या १८७२ ई० मई माममें कपतान लाटुनीने फरागिरि पत्तीदार बॉमोम अगई लगा गाड़ देते हैं । वह भूत गांवक म खिया और एक गागका हत्याकारी जमा पकड प्रेतको मानते ओर यह भी विश्वाम करते, कोई कोई करके रखा था। इससे कई गांवों के लोगांन अंगरजीका मनुष्यद ह त्याग करके व्याघ्र प्रभृति हिंस्र पशुरूप भी अधिक्कत दामाकचौगिरि नामक ग्राम अाक्रमण किया। बना मकता है । इनक पूजक 'कमाल' नानाविध लक्षणांसे कपतान लाट नौको अधिकृत ग्रामसे माहाय्य मिला था। स्थिर करते, किस अपदेवताके क्रोधसे पोड़ा हुई और दामाकचीगिरि आक्रान्त होनके बाद कपतान साहव फिर उमक पूजा, वलि इत्यादिको व्यवस्था बतलात हैं।। फरामगिरिपर चढ़ गये । उम ममय सभी स्वाधीन इनमें जातिभेद और खाविचार नहीं है। पिट ग्रामों में आतङ्ग हुआ और क्रमश: बह गारो लागामें फैल पुरुषर्क नाम वा थे गोके अनुसार इनका वश विभक्त पड़ा । डिपटी कमिशनर विलियममनन ओर एक दल हुआ है। . पुलिममन्यक माथ ग्वालपाड़े के सुपरिगट गडे गटको फरा- १८७२-७३ ई०को जो गारोविद्रोह लगा, नोचेमें | मगिरि भेजा था। इन्होंने बावईगिरि और काकवागिरि उसका संक्षिप्त विवरण लिखा है- ग्रामो को आक्रमण किया। गारो लोग दो वार युद्ध करके