पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/३६९

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गुजराती-गुजरातो बनिया ३५० है। प्रनतत्त्ववित् कनिङ्गहा माहब अनुमान करते कि । हैं। यह दिगम्बरमप्रदाय भुक्त हैं। शवदार किया वहां जो प्राचीन नगर रहा, १३.३ ई०को विध्वस्त हुआ | जाता है। वास्त ववाह और बहुविवाह साधारणतः नहीं उसके प्रायः २०० वर्ष पीछे शेरशाइने इस अञ्चलकी होता। इनमें विधवाविवाह नहीं होता। दिकको दृष्टिपात किया । उन्होंने या अकबरने इम नगरका गुजराती पटा-गञ्जाम प्रदेशके अन्तर्गत चिकाकोलके बमाया होगा । शाहजहान्क ममयको वहां पीर शाहदोन्ना निकट नाङ्ग लिया नदीक दक्षिण तट पर अवस्थित एक नामक कोई मुमन्नमान माधु रहते थे। वह इस नगरमें नगर। यहां लक्ष्मी तथा नरसिंहस्वामीक मन्दिर है। बहुतमे घर, बनाये गये हैं। नगरके मधाम्यन्नमें अकबरका मन्दिर बहुत प्राचीन कालके हैं। ऐसा प्रवाद हैक निर्मित और गूजरमिह कट क मस्कृत दर्ग आज भी बलरामन इम मन्दिरको निर्माण किया था। प्रायः दो खडा है। इमी जिनेमें तहमोली और मुनमिफी कच. तीन शत वर्ष हुए हो ग यहाँ गुजरातो व्यापारियों ने प्रा हरी है। मिग इसके गुजरात नगरमें ६८ ममजिद, ५२ कर उपनिवेश स्थापन किया है। हिन्दू मन्दिर और ११ मिस्व धम शालाएं भी बनो है। गुजगती बनिया-दाक्षिणात्यवामी वणिक जाति की यहां बढ़िया शाल दाशाला और मूतो तथा ऊमी वस्त्र एक शाम्बा । बम्बई प्रमिडन्मोके नाना स्थानाम इनका प्रस्तुत होता है। मोमे, लोह और पीतलको गढाईक वाम है। परन्तु अहमदाबादमें यह अधिक देख पडत निये गुजरात शहर बहत दिनोंसे मशहर है। यहां हैं। इनमें वड़नगरी और विशनगरी २ श्रेणियो। यनिसपालिटी विद्यमान है। सन लोग अपनको वैश्य जैमा बतलात हैं। श३ मी वष ४ बम्बई प्रेमिडन्मोका उत्तर समुद्रकूनवर्ती विस्तीर्ण हुए यह गुर्जर देश कोड़ करके दक्षिणापथके नाना स्थानों भूभाग । गजर देखा। में जा बसे हैं। गुर्जरके उत्तरस्थित बडनगर तथा गुजरातो ( हिं० वि०) गुजगत देशका, गुजरातका ! विशनगरमें इनका आदिवास है। मान्न म होता है कि निवामी। इन दोनों नगगे मे हो उनका जातिगत विभाग एमा गुजराती बम्बईके गुजगत प्रान्तको भाषा । इमकी | होगा। लिपि देवनागरीके पादर्श पर गठित है। कोई ८०० वर्ष ___ उभय दल एकत्र भोजनादि करते, परन्तु परस्परके पहले यह चली थो। माहित्य उबतिशील है। भीन मध्य दानग्रहण अप्रचलित है। यह बहुत सुश्री और और ग्वान देशके अधिवासो भो टूटी फटो गुजरातो बोलते सुन्दर होते हैं। स्त्रियां मौकी अपेक्षा अधिक सुन्दर हैं। गुजराती भाषा प्राचीन मौराष्ट्री प्राकत पर | होतो हैं। ये लोग मद्य मांस कुछ भी नहीं खाते। आथित है। गौरी इमोसे निकली है। यह कोई स्वास्थ्य भी इनका अच्छा रहता है। सिर्फ पानके साथ ८४३८८२५ लोगोंका भाषा है। भाग और तम्बाकू खाते हैं। इनकी स्थिति अच्छी है। गुजराती जैन-बम्बई प्रान्तके अहमदनगर जिलेमें रहन- ये लोग आचार व्यवहार और वेशविन्याममें दक्षिण वाले जैन। इन्हीं थावक भी कहते हैं। इनकी संख्या | के ब्राह्मणों का अनुकरगा करते हैं। सबहीके मिर पर प्राय: ३०० है। वह अकोला, जामखेड़, कोपरगांव, चोटो रहती है और दाडी मुडी हुई रहता है । इनका सङ्गमनेर, शिवगांव आर थिङ्गोदमें रहते हैं। अपनी ही स्वभाव भोलेपनका लिये हुए अच्छा है; पर दोष रसना वर्णनाक अनुमार वह अवधक रहनेवाले थे। सूर्यवंशीय हो है कि, ये लोग प्रायः कपण होते हैं । वाणिज्य करना किसी राजाके साथ उन्हों ने जैन धर्म ग्रहण किया। उनकी जा तगत उपजीविका है। जिमके पाम पैसा गुजरातमें बस जानसे वह गूजर कहलाये। माटभाषा | नहीं वे भी दूसरे का दासत्व स्वीकार नहीं करते, परन्तु गुजरामी और कुलदेवता जिनेन्द्र हैं। यह निरामिष- किसी व्यापारीको दूकानका काम करना मजर कर भोजो, परिश्रमी, संयमी, मितव्ययी और आज्ञाकारी है। लेते हैं। दूकानदारी, महाजनी पोर नमीन्दारीका काम करते ये लोग अपने को ब्राह्मदोंसे नीचे और मराठी जातिये