पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/३९४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

३१२ गुगास्थानकरण-गुगााव्य को अवस्थाको क्षीणमोह गुणस्थान कहते हैं। गुणहीन ( स० त्रि०) गुणन होन:, ३-तत् । गुणशून्य, भयोगकेवली गुणस्थान घातिया कर्माको (जाना | किमी प्रकारका गण न हो। वरणको ५, दर्शनावरणको ८, मोहनीयको २८ और | गुणस्तम्भ ( सं० पु०) गुणाधारः स्तम्भः । गुणवृक्ष, मस्त ल । अन्तरायको ५= ) ४७ और अघातिया कर्माको १६, | गुणा ( स० स्त्री० ) गुणाऽस्त्यस्याः गुण अच, स्त्रियां टाप । कुल ६३ प्रतियोंका क्षय होनेमे लोकालोकप्रकाशक | १ दुर्वा, दूब। २ मांसरोहिणी, एक प्रकारका सुगन्ध केवलज्ञान तथा मनोयोग, बचनयोग और काययोगके द्रव्य । धारक अरहंतके शुद्ध परिणामोंको अवस्थाका नाम सयोग | गुणा - मध्य भारतको एक मव एजन्सी । परोन और रघु- केवली ग णस्थान है। ऐम परिणाम और मा दिव्यज्ञान | गढ़ नामक दो विषय इसके अन्तर्मूत हैं। उक्त दोनों ईश्वरको होता है। जेनों ने इन्ही को अरहन्त वा ईश्वर | स्थानके सरदार ग्वालियरके अधीन रह कर जागोर स्वरूप माना है और येही मोक्षमार्ग का उपदेश दे कर ममारमें | भोगदखल करते आये हैं । परान और रघुगढ़ देखा। मोक्षमार्गका प्रकाश करते हैं। गुणा (हिं पु०) गणितको एक किया। १४ भयोगकवली स्थान- उपयुक्त अरहन्त मन, वचन, गुणाकार ( स• पु० ) गुणानामाकरः, ६-तत् । १ बुद्ध और कायके योगों से रहित हो कर केवलज्ञान महित | विशष।२ गुगायुक्त, गुणाधार । ३महादेव शिव । ४ वुद्ध- जिम ममय मोक्ष प्राप्त करते हैं उस ममयमे अन्तमहत के एक शिष्य । ५ सूक्तिकर्णामृतकृत एक प्राचीन कबि । पहिलेके परिणामीको प्रयोगकेवली गणस्थान कहते हैं। गुणाकार-हिन्दी भाषाके एक कवि। यह यक्त प्रान्तीय 'पदउ ऋतृ' इन पाँच स्व स्वर्ग के उच्चारण करने में । उनाव जिलेके कांठा गांवमें ( १८८३ ई. ) रहते थे। जितना समय लगता है, उतना ही इसका काल है। | गुणाकरमूरि-एक जैन ग्रन्थकार, गुणचन्द्रसूरिके शिष्य । गुणस्थानकरण-१ जेनीका एक धर्म ग्रन्थ । २ बौनोंका इन्होंने षड्दर्शन समुच्चयटीकाकी रचना की है। एक अन्य। गुणाख्यान ( स० क्लो. ) गुणस्य पाख्यान, ६-सत् । गुणहानि ( म० स्त्री० ) जनोंक अनुसार---गुणकाररूप | १ गण कोतन, गुणकथन । हीन हीन द्रव्य जिसमें पाये जाय, इसको गुणहानि कहते गुणागुण ( स० पु०) इन्हसमा० । गुण और दोष, अच्छा हैं। जैसे-किमी जोवने एक ममयमें ६३०० परमाणुओंके और बुरा। ममूहरूप समय प्रबह का बन्ध किया और उसमें ४८ | गुणाङ्क ( स० पु. ) वह अङ्ग जिमको गुण करना हो। समयकी स्थिति पड़ी, उममें गुणहानियोंके समूहरूप | गुणाढ्य ( स० स्त्री० ) गुण राव्यः, ३-तत् । १ गुणयुक्तर नाना गुणहानि ६, जिसमें प्रथम गुगाहानिके परमाणु गुणवान्, हुनरमन्द। ३२००, द्वितीय गुणहानिक १६००, ३यके ८००, ४थ के (पु)२ कोई ब्राह्मणकुमार। कथासरित्सागरमें ४००, ५मके २०० और ६ठी गुणहानिके १०० परमाणु उनका उपाख्यान इस प्रकार कहा है-प्रतिष्ठान प्रदेशक है। यहां उत्तरोत्तर गुणहानियों में गुणकाररूप हीन होन | सुप्रतिष्ठित नगरमें सोमशर्मा नामक कोई ब्राह्मण रहते परमाण ( द्रव्य ) पाये जाते हैं, इसलिये इसकी गुणः | थे। उनके वत्मक तथा गुल्पक नामसे दो पुत्र पौर हानि मजा हुई । (जनसिहान्तप्रविधिका ) श्रुतार्था नामको एक मात्र कन्या थी। शुतार्थाक साथ गुणहानि आयाम-जैनशास्त्रानुसार एक गुणहानिके यौवन समयको प्रलौकिक रूपलावण्यसे मोहित हो नाग- समयके समूहको गुणहानि पायाम कहते हैं । गुफानिका | राज वासुकिके छोटे भाई कोर्तिसेनने गान्धर्व विवाह कर हटान्त देखा । जैसे-४८ ममयको स्थितिम ६ गुणहानि लिया। उन्हीं शुतार्थाके गर्भ से गुणाव्यका जन्म हुपा। है, उस ४८में ६का भाग देनमे प्रत्ये क गुणहानिका परि इनको शैशवावस्थाको माता और मातुलहय अकाल काल- मरण ८ हुआ, इसोका नाम गुणहानि पायाम है। ग्रासमें पड़े थे। बालक गुणाढ्य किसी प्रकार उनका (मसिहानप्रशिका)' अर्ध्वदेहिक कार्य सम्पन्न करके विद्याभ्यासके लिये