पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/३९५

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गुणाव्य-गुणातीत दक्षिणापथको चले और थोडेही दिनमें विख्यात पण्डित सन्तुष्ट करके पुष्पदंतकथित सप्लकथामय उपाखान हो गये। मब देशों में उनका पाण्डित्य फैल पड़ा। था। फिर गुणायन उसो उपाख्यानको अवलम्बनमारक ___उस समय महाराज शालिवाहन (सातवाहन) पिशाच भाषामें सात लाख श्लोकों की हत्कथा बनायी। प्रतिष्ठान राज्यके अधिपति थे। यह उनकी सभामें इम बड़े ग्रन्थ की रचनामें सात ही वर्ष का समयमा पहुंचे। महाराज गुणाव्यका पाण्डित्य देख परम आता था। इन्होंने अपने रक्तसे उक्त पुस्तक लिख करके काम दित हुए थे, यह बड़े आदरके साथ मन्त्रिपद पर रखे भूतिको दिखलाया, वह शापमुम हो गये। काका । गये। गणाव्य वही किसो रमणौरवका पाणिग्रहण गुणाव्यने यह सुलत्कथा मानव समाजमें प्रचार करके शिषयों के साथ बड़े सुखमे समय बिताने लगे। के विचारसे दोनों शिषयों के माथ प्रतिष्ठाननगर पर राजा शालिवाहन पहले मुख थे, परन्तु उनकी रानी गजाके पास भेजो थी। किन्तु विद्यामदगर्वित सात अतिशय विद्यावतो थी। एक दिन राजा और रानी जल- वारनन उम ग्रन्थका विशेष प्रादर नहीं किया। राका कोड़ामें प्रवृत्त हुये। विदुषी रानीने उनको संस्कृत के व्यवहारसे यह अतिशय कड हो ग्रन्थको भागमें बसकी वाक्यमे किमी विषयके लिय अनुरोध किया था। राजा लगे। वह एक एक पृष्ठ पढ़क जलाते जाते थे। पापची इमका अर्थ समझ न सके और विपरीत पाचरण करने अनाहार वर अमृतमयो कथा सुनने लगे। यह संबाद लग। उम पर रानौने इन्हें डाटा था। राजाको ज्ञानो- सुन करके महाराज मालवाहनन वह पुस्तक मरमात दय हुआ। उन्होंने सोचा था-इस समारमें विद्या हो | उम ममय मकथाके ६ खण्ड जल चुके थे। महाराष मानवका प्रधान धन है, विद्याके अभावमें कोई सुख को बहत करने सनने पर इन्होंने वह दे डाली। नहीं। रानीके तिरस्कारसे आज मेरे लिये संसार असार । ___यह शिव माल्यवान् नामक एक अनुचर थे, गार जैमा हो गया । यदि विद्याभ्यास कर न मक. तो जी नेसे गुणान्य नोममें भूतल पर अवतीण हुए और थोड़े दिन क्या फल है ? राजाका मंकल्प मालूम होने पर गुणाढ्य मत्य लोकमें रह करके शापसे कट गये। .. न छह वर्ष में उन्ह व्याकरण पढ़ा देना स्वीकार किया नेमन्द्रको हत्यामञ्जरो और मोमदेवका था। उमो ममय शर्ववर्मा नामक कोई पगिड़त बोल - उठे में छह मासमें ही महाराजको व्याकरण मिग्खला मरित्सागर दोनों ग्रंथ इनकी उमो हत्कथाके पाधार मकता है। वह बात सुन करके यह चिढ गये और पर रचित हुए हैं। दण्डी, सुवन्ध, त्रिविक्रम. गोवा आपसे बाहर हो कहने लग-गव कारिन ! यदि महीने, प्रभृति पगिड़तो न पेशाची भाषामें बनी हुई हत्कथावा में आप वह काम कर सकें, स्मरण रखें कि में संस्कृत. उल्न ख किया है। प्राक्कत और देशो भाषा परित्याग करनेको दृढ़प्रतिज्ञ हूं। गुणाढ्यक ( मं० पु. ) गुणाव्य संज्ञायां कन् । अोठमा पण्डितप्रवर शर्वशर्माने असाधारण प्रतिभावलसे मंक्षिा अखरोटका पेड़। कलाप-व्याकरण रचना करके ६ मामके मध्यमें हो महा. गुणातीत ( सं० पु०) गुणान् सत्वादिगुणान् तत्कार्य राजको विहान् बना दिया । इन्होंने परास्त हो तोनों सुखादीन् अतीत', २-तत् । १ सुख दुःखादि शून्य पारी डो थी। बात न करके जनसमाजमें रहना खर । आत्मन्न, स्थितप्रज, जीवन्म त । भगवहीतामें.मम. असम्भव समझ अपने प्रिय शिषा गुणदेव और नन्दिदेव- वानन प्रिय शिष्य अजुनको उपदेशक छलसे बतलाया.., के साथ गुणाव्यन निविड़ अरण्यमें प्रवेश किया। मनुषा जा त्रिगुण अतिक्रम कर सकत, कभी नहीं जोतमधी सम्बन्ध परित्याग करके वह पिशाचोंके साथ रहने लगे। और प्रारब्ध शेष होने पर निर्वाण लाभ करते हैं। मषि दिन दिन प्रतिवेशी पिशाचों को कथावार्ता सुन करके बन्लमे एकान्त चित्त हो करके देखरकी सेवा करनेवासे उन्होंने पिशाचभाषा सीखी थी। कुछ दिन बाद वह ही मुग्मीको अतिक्रम कर मकते हैं । ईखरको सेवा और काणमूर्तिसे मिले। इन्होंने मधुमय स्तुतिवाक्यसे उनको! करके उसका कोई उपाय नहीं । जो गुणातीत होते Vol. VI 99