पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/४३५

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गुग-गुलकारी ४३३ है। यहां चार मन्दिर के खगडहर पड़ हैं। मन्दिर | गुरू ( सं० स्त्री० ) १ गर्भिणी, गर्भवती। २ गौरवयुक्त बत हो प्राचोन मालम होते हैं। यहां तीन शिलालेख स्वबोधक पदार्थ। ३ बडो वा श्रेष्ठ स्त्री । ४ गवाक मिलते हैं, जिनमेंसे १लेमें वीरेश्वर स्वामी के मन्दिरके वृक्ष। ५ गुरुपत्नो। ६ गायत्री। प्रतिष्ठाता राजा राजनरेन्द्रको प्रशस्ति है। रय शिला गुल ( म० पु० स्त्री० ) गुड़ डस्य लः। इक्षुका विकार, न्लेख ध्वजस्तम्भक पूर्वको तरफ एक पत्थर पर है, इसमें | अस्वच्छ गुड़। २ जलाया हुआ तम्बाकू। ३ कोयलेको शक १४३०के नन्दराज रामप्यदेवको प्रशस्ति है। क्य गोटी। ४ विस्फोटक, शीतला । ५ एक तरहका वृक्ष । शिलालेख वीरभद्रस्वामी मन्दिरमें है, इममें मत्याश्रय- गुल ( फा० पु.) १ गुलाबका फल । २ फल पुष्य । वशोय चालुक्यकुलतिलक तिरुमलदेवको प्रशस्ति है । ३ शोर, हल्ला। मि. हिमवनका कहना है कि, इम मन्दिरका मण्डप | गुल-पञ्जाब प्रान्तक करनाल जिले में केवल तहमोलको मुमलमाना ढका है परन्तु यह मुमलमानों के आनो छोटी तहसील । इमका क्षेत्रफल ४५५ वर्ग मोल है । पहले बना था। मन्दिर आदिमें बोडोंके शिल्पन पुण्यका यहां २०४ गांव बमत हैं । गुल्ल गांवम हो मदर है। माल- बहुत निदर्शन मिलते हैं। यहां एक प्राचीन दुर्ग भी है। गुजारी ओर सेम लगभग १ लाख २० हजार रुपया पड़तो गुण ( मं० त्रि. ) चेष्टित । गर्द . प. पु० ) गुदि म्तानका निवानी गुल अजायब ( फा०४०) १ एक प्रकारका पुष्प । २ एक गुदि म्त न ( फा० पु. ) फारमके उत्तरका एक प्रदेश | पुष्पका पौधा। इम प्रदेशका कुछ अंश आजकन्न रूमराज्यके अधीन है। गुल्ल-अनार ( फा० पु.) एक तरहका दाडिमका वृक्ष । इमे कुर्दिस्तान भी कहते हैं। गुल्ल अब्बाम ( फा० पु० ) अब्बास नामक पाधा । इसमें गुग (हिं स्त्रो० ) भुनह ए जी । वर्षाकालके ममय वंत या पोत गंगक पुष्प लगते हैं। गवङ्गना ( मं० स्त्र'. ) गुरी रङ्गना, ६-तत् । · गुरुपत्नी, गुल-अब्बामी (फा०प०) कुछ काले रंग लिये एक प्रकार- गुरूको स्त्री । का लाल रंग। म तरहका रंग चार छटाक शहाबके गुवोदित्य (मं० १०) गुरुणा मह आदितो यत्र, बह वो. फल : कटांक ामको खटाई और आठ माशे मोलको योगविशेष। वृहस्पति और सूयक एक नक्षत्र और एक म योग करनेसे बनता है। हममें यदि नीलका रंग बढ़ा गशि पर मन्ननेको 'गुर्गदियोग' कहते हैं । इस योगमें, दिया जाय तो एक तरहका किरमिजो रंग बन जाता है। यज्ञ, ववाह प्रभृति कार्य करना निषिद्ध है। ज्योतिष गल-अशर्फी ( फा. पु.) एक प्रकारका पोले रंगका एक और दूमरा हो वचन है । “गर्ग:२२ दशादिक अर्थात् पुष्य। गुर्वादि योगमें दशदिन मात्र अकाल ( कुशमय ) रहता गुलउर ( फा० ) गुनौर देवा । है, किन्तु मंग्रहकारीने विचार करके यह निश्चय किया गुल-औरंग ( फा० पु.) एक प्रकारका गन्दा । है कि विभिन्न नक्षत्रमें अवस्थित वृहस्पति और रवि गुग्नक (म० पु०) गुण्टटा, एक तरहको घाम । एक राशि गन होने पर दगदिन मात्र अशुद्ध ममय है, गुलकंद ( फा. पु.) १ गुलाबी मिठाई । २ चौरका किन्तु एक नक्षत्र में रहनसे जब तक यह योग रहेगा मिष्टान्न, दूधको वनी ह ई मिठाई। तब तक अकाल माना जाता है । +विकी। गुलगुटक ( फा० पु०) कपड़े पर बल बूट छापनका शौशम- गुर्वर्थ ( सं० त्रि.) गुरुः गोरवान्वितोऽयी यस्य, बहती. का बना हा एक तरहका ठप्पा १ जिमका प्रधान अर्थ. दुरवगाह व्याख्यायुक्त । २ सम | गुलकार ( फा० पु० ) कपड़े पर बेल बूटे बनानवाला धिक प्रयोजन । गुर्विणी (म० स्त्री० ) गुरुगर्भाऽस्त्यस्याः गुरु-इनि निपात- | कारीगर । नात् पिह ततो डोव । सगर्भा, गर्भिणी, गर्भवती।। गुलकारो ( फा० स्त्रो०) १ बल बूटे का काय । २ बस गर्भवो देखो। बूटेदार काम । VI.Vol. 109