पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/४५१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

गं लाबसिंह जसको एक पत्र यों लिख भेजा.-"हम दोनों संपूर्ण मानसन्य आये किन्तु वे भी काश्मीरामिहका बालवावा मिनिटोख, हमारे किमी शत्र ने मिथ्या दोषो न कर मके । गुलाबमिहने देखा कि अब अपना मान- रोपण कर हम लोगोंको कलजित किया है ।" किन्तु मभ्रम रक्षा ही करना उचित है, जब उनके बह तमे मेन्छ टन गलाबसिंहने उनके कथन पर कुछ धान न दिया सामान्य मैन्य को पराजय कर न सके, तब उनके इतने अन्तमें उन दोनों राजपुत्रौंको बशोभूत करनेके अभिप्राय गौरव और इतने दम्भ पर धिकार है। इसलिये उन्होंने में उन्हें जम्ब नगर पानेको लिखा, और धूत गुन्लावन इसका बदला लेने के लिये होरामिहको एक पत्र लिखा- यहां उन्हें नजरबन्दी कर कहा "पाप लोग यदि मुझ खालसा मैन्य रणजित् मिहके पत्रके विकह यह नहीं ७५ लाख रुपये दगड स्वरूपम दं, तो भविषार्म आप करेगा यह जान होरामिहन ध्यानमिक पराकान्त पार लोगोंके ऊपर किसी तरहका अत्याचार न होगा।" किन्तु हजार अश्वारोही और घोडे परम चन्नाय जानवाने कर व इतने रुपये कह पाते? महावीर रणजिमि के तहत् कामान मियाल कोटक दगं ध्वस करनके लिये पत्रों के प्रति इम तरहका अत्याचार होता देख खालमा- मन दियं । इन योद्धा गाला वर्षणमे मियालकोटका मन्य मबके सब विरक्त हो उठे। उन्होंने गुलाबको खबर दी दुर्ग कॉपने लगा था। काशमारामिहकै परिवारको चारों 'रणजितमि के पुत्री के प्रति इसतरहका अत्याचार मानो ओर दावानल-जैसा दोखन नगा । वे सबक मब भयभीत ग्वालमाका अपमान करना है। यदि आप शीघ्र ही उन- हो गये ओर काशमोरामिहको लडाई बन्द कर देनेका दोनोंको मम्मानपूर्वक कोड न देवेंगे तो खालमा मन्ध अनुरोव किया। काश्मोरामिहन भा दंवा कि बचनका अस्त्रधारण करेगा। इस पर गुलाबसिहर्ने भयभीत हो अब कोई उपाय नहीं है, शीघ्र ही गुन्नाबका मैन्य टुर्ग मिर्फ २५ हजार रुपये ले काश्मोरा और पेशोरामिहको अधिकार कर उनके सामन में ही उनके परिवागंका अप- कोड दिया। मान करेगा, इमलिय व गुहार हो कर मधा प्रदेशको कुछ दिन बाद काश्मीगमिहन उस दुष्ट किलेदार भाग गये । गुलाबको सेनान टुग अधिकार कर लिया को एक मखत मजा दी, जिमसे उम अभागको मृत्य हो इधर जब लाहोरसे धानमिहका संन्यदल भेजा गई। इस मंवादको पाकर गुलाबसिंहने लाहोरको गया था तब खानमा सन्य महाराज रणजितकं टोनी एक पत्र लिखा। फिर भी उन दोनों राजपुत्रोंको कैद पुत्रीपर भावो विपत्ति समझ उत्तेजित हो उठा। कनिका आदेश आया : गुलाबमिहने गडियावाल। उन्होंने तीन दिन तक होरासिहकी नजरब'द कर रक्ता आक्रमण कर मात मी मन्य मियालकोट भेजे । इम और सचेतमिहको मत्रीका पद दिलानके लिय बुलाया। ममय काश्मीरासिंह पहले ही मतर्क थे। उनने अपने दो मी मन्यको दुर्गरक्षाके लियं नियुक्त किया। उनके हीरासि भने भयभीत ही उन्हें खबर दी कि व रणनित् युद्ध कौशलसे गुलाबका सैन्यदल पराजित और विशेष सिह पुत्रोंका कोई अनिष्ट न करेंग, उनका पूर्व क्षतिग्रस्त हो रणक्षेत्रसे भाग गया। अधिकार लौटादेंगे और खालमा सन्यके इच्छानुमार वे सर्व कार्य करेंगे। इम तरह हीरासिहक साथ खालसा गुलाबसिंहने अपनो सेनाको वेइज्जतो पर क्रोधान्ध संन्यका फिर भी मल हो गया। हो कई मौ अश्वारोहो और पदाति सैन्य तथा तोपे दुर्ग जीतने के लिये भेजीं। किन्तु इस बार भो उनको सेनायें थोडे ही समयकं बाद मनसिइने लाहोर पा ववत क्षतिग्रस्त हो लोटनको वाध्यं हुई। जब गुलाब खालसा सेनाको अपने प्रानको सूचना दो। किन्तु उस गलने देखा कि दो जवार श्वारोही और मात हजार समय खालसा और हीरासि हमें मेल था। अत एव विकासकानीमहका साहम ज्योंका न्यों सुचेतसिंहकी आशा पर पानी पड़ गया। उस समय ना है, तब उन्होंने लाहोरम सिख सैन्य भजनका पत्र सचेतसिहके पास सिर्फ ४५ मनुषक। हीरासिंह दिया । लाहोरसे मेजेतिया डोगरा और बहसख्यक मुसम्त अपने चचा सुचेतसिंहका आगमन सँवाद पाकर लगभग Vol. VI. 113