पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/४६५

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-गुहावदरो जान गई कि कोई उमके स्वामोके हस्तस्थित कमलका सुनकर सब कोई उसको यथेष्ट प्रशंसा करने लगे। मदा- रहस्य जानकर उमका मर्वनाश करने में उद्यत हुअा है। राजने मन्त ष्ट होकर देवस्मिताके पातिव्रत्य का उपहार इम लिये उस पापाशयको उपयुक्त दगड दं नका विचार स्वरूप उसे अनेक धनरत्न दिये। बाद गुहसेन पलीके कर उसने अपनी दासीको बुलाया और उसे धतुरा मिला माथ ताम्रलिमिमें आकर परम सुखसे कालयापन करन हुआ शराव तथा कुत्त के पद चिह्नयता एक मोहर मंग्रह लगे। (कथासग्निसागर ) करनेकी आज्ञा दो ! बाद उसने योगकरण्डिकाको उसके गुहॉजनी (हि. स्त्री० । एक तरहको फुड़िया जो कभी पाम एक वणिककुमार भेज दें नेके लिये कहा। परि- कभी चक्षुक पलक पर हश्रा करती है। वाजिकाके कथनानुसार एक वणिककुमार देवस्मितार्क गुहा ( म० स्त्रो० ) गुह क टाप च । १ मिहपुच्छोलता । प्रेममें आमत हो मङ्गलस्थान पर उपस्थित हुआ। उस २ गर्त, गट्टा । ३ गुफा, कन्दरा । ४ शालपर्णी, सरिवन । स्थान पर द वस्मिताका वेश धारण कर उमको दासी ५ पृश्रिपर्णी, पिठवन लता! ६ हृदय । ७ माथा।८ वगिककुमारकी अपेक्षा कर रही थी। लसके माया- गुहाधिष्ठात्री देवता । “गृहाभा: किरात' । ( वाप्रममेय. २०१८) बलसे वह वणिक्कुमार धतुरा मिश्रित शराव पोकर ८ बुद्धि । गुह भावे भिदादित्वात् अङ, १० मवरण, अचेत हो पड़ा। अन्तमें दासोन उम कत्त के पद चिह्न ___ आच्छादन, ठुकना। ११ मंढा। युक्त मोहरको तपाकर उसके कपालमै छाप दं दो और गुहागर-बमबई प्रान्तक रवगिरि जिलेका एक बड़ा पाम किमो पानो के गले में फेक दी। इसी तरहसे एक गांव। य ममुद्र तट पर अञ्जन लमे ६ मील दक्षिण एक कर चारों कुमार अपने कर्मका उपयुक्त दगड पाकर पड़ता है। लोकमव्या प्रायः ३४४५ है। पोतंगोजमे स्वदेगको लौट आये, परन्तु किसीन यह गुहा रहस्य दूमरे ब्राह्मणीकी खाड़ी जैसा समझते थे । १८१२० मी'पेशवा के मामन प्रकट न किया। बाजीरावने ग्रामसे दक्षिण पर्वत पर एक मन्दिर निर्माण उमक थोड़े समय के बाद ही दं वस्मितान परिवाजिका किया। १८२३ ई०को इसका बहुतमा मामान रखगिरि। और उसका शिष्याको भी उसी तरह अचेत कर उनकी के सरकारी मकाभौम उठा करके लगा दिया गया, नाक और कान काट करके उसी जगह फेंक दी। बाद परन्तु वसावशेष अब भी पडा है। ब्राह्मणा अधिक रहते देवम्मितान सोचा कि सायद वणिक्कुमार उसके पति हैं। देवालय कई एक हैं। का कोई अनिष्ट भी न कर डाले मी भयसे वह वणिक् - एक् गुहाग्रह ( म० क्ली० ) गुहा गृहमिव । गुहाबास, गुफाके वैशमें कटाहहीपको रवाना हुई । वहां पहुंच कर उसने जैसा घर । राजासे कहा, "धर्मावतार : मेरे चार भृत्य यहाँ भाग पाये हैं, अतः उन्हें मुझे प्रत्यर्पण करनकी कृपा करें।" राजा- गुहाचर ( स० क्लो०) गुद्यन्ते जाट यच्चानपदार्थः ने कर्मचारियोंसे उन भृत्योंका अनुसन्धान करनेकी आज्ञा अस्यां गुह घञ गुहा वृद्धि: तस्यां विषयतया चरति गुहा- चर-ट । ब्रह्म, परमात्मा । दी। दवस्मिताने उन चार वणिककुमारों को बतला कर कहा कि ये ही उमक भृत्य हैं। इस पर नगरवासी गुहादित्य ( स. पु० ) सुप्रसिद्ध बाप्पाके पुत्र। इनका विशेषकर बणिक पुत्र क ड हो उठे। देवस्मिता राज. दूसरा नाम गुहिल था। सभामें उपस्थित होकर बोली- 'राजन् ! इसके कपालमें गु गुहामुख ( म० की० ) गुहाया मुख, ६ तत्। गहरहार, के करपद चिनयुक्त मुहरकी छाप है, परीक्षा कर देती । कन्दराका हार। जाय ." यह सुनकर मबके सब स्तम्भित हो उठे। मभो- गुहार ( हि स्त्रो० ) रक्षार्क लिये पुकार, दोहाई।. को ही उन चारी बणिककमारों को देवस्मिताके कोतदाम गुहाल ( हिं० पु० ) गोशाला । गायोंक रहनका खाम । स्वीकारना पडा। अन्तमें देवस्मिताने राजसभामें आदिगुहावदरी ( म० स्त्री० ) गुहा गुह्या वदराव ! शालपर्णी, से अन्त तक इस रहस्यकी सच्ची बातें कह सनाई। यह सरिवन ।