पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/४७१

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गूदलूर-एनर गूदल र-मन्द्राजके नीलगिरि जिलेमें गूदल र तालुकका | गलर-कबाव (फा० पु.) एक प्रकारका कबाब। यह मदर गांव। यह अता. ११.३० उ. और देशा० ७६ मिड मामको चर्ण कर उसके मध्य अदरक, पोदीना पादि ३० पू०में गूदल र घाट पर्वतके नीचे अवस्थित है । लोक भरकर भूननेमे बनता है। संख्या प्रायः २५५८ है। सामाहिक बाजार अच्छा | गल (हि स्त्री० ) पंड्रक नामका एक सरहका पेड़। लगता है। कतोरा नामक श्वेत गोंद इसे निःमृत होता है। इस- गूदा ( हिं० पु.) १ किमो फलको छिलकेके नीचेका सार को किलकामे गम्मियां बनाई जाती हैं। इसकी पत्तियां भाग, गरी। २ भेजा, मगज, खोपड़ीका मारभाग। और शाखायें चारो पोर औषधका काम आती हैं। कोई गून ( म० त्रि. ) गूक तस्य नकारः। कृतविष्ठोत्सर्ग, कोई इसको जड़को तरकारोके काममें लाते हैं और जिस व्यक्तिन विष्ठा त्याग किया हो। थोड़ा गुड़ मिलाकर खाते हैं। यह उत्तर भारत, मध्य गून (हिं० स्त्री०) २ नाव खींचनेको रस्सी । २ रोहाटण। भारत, दक्षिण तथा वर्मा मूख वनमें तथा पश्चिमी घाट- गूना (फा. पु.) पोतल या मोनेका बना हुआ एक तरह के पर्वतों पर मिलता है। का सुनहला रङ्ग। ग वाक ( स० पु० ) गुवाक पृषोदरादित्वात् माधुः। । गूमड़ा (हिं०) गुम देखी। गवान देखो। गूमा ( हि० पु० ) एक छोटा पौधा । इमके ग्रन्थन पर गषणा ( सं० स्त्री० ) मयूरचन्द्रक, मोरकी पूछ पर बना गुच्छामा रहता है, और इसमें श्वेत पुष्प लगते हैं। यह | हुआ अड़चन्द्र चिह्न । औषधकै काममें आता है। गह ( हिं० पु. ) गलीज, विष्ठा, मल। गह देखा। गरण ( म० को०) ग र उद्यमें भावे ल्युट । उद्यम, गहन ( म० क्लो. ) गहल्युट । गोपन, गुणा । उद्योग। गहा कोको (हिं पु०) वुरे रूपका झगड़ा, वदनामी, गूग (हिं० पु. ) गुला, ढेला । कलङ्ग । गण (म त्रि.) ग रक्त तकारस्य नकारः। १ उद्यम- गहित य ( मं० त्रि. ) गह-तव्य । गोपनीय, जो स्थान विशिष्ट । २ प्रशस्त । छिपाने योग्य हो। यथा-लिङ्ग, कच (म्तन), भग पौर गत ( म त्रि०) गरी उद्यमे क्त निपातनात् नत्वाभावः। गुह्यादेश। १ उद्यमविशिष्ट । २ प्रशसनीय । ग्टन ( म० क्ली० ) एञ्जन । ग तमनस् (म त्रि०) ग तं उदयुक्त मनो यस्य, बहुव्रो० । गुञ्जन ( म० क्लो० ) गजाते अभक्ष्यत्वं न कथ्यते ग्रजि जिसका मन उद्योगविशिष्ट है। ल्यु ट। १ मृत पशुका माम। २ मूलविशेष शलगम, ग तवचम् ( स० वि० ) गत उद्यतं वचो यस्य, बहुव्रीः । गाजर । इमका पर्याय -शिखिमूल, यवनष्ट, वतुल, जिसका वाक्य उद्यमविशिष्ट है। ग्रन्थिमूल, शिखाकन्द और कन्द है। यूरोप तथा एसियाके गर्तश्चवम ( म० वि० ) गतें प्रशमनीयं श्रवो यस्य, नानास्थानों में यह पाया जाता है। बंद्यक मतसे इसका बहुव्री० । प्रशस्याब, जिसका भोजनीय द्रव्य प्रशंसनीय है। गुण-कटु, उष्ण, कफ, वातरोग और गुल्मरोगनाशक, ग विसु ( स० त्रि०) गत वसु यस्याः, बहुव्री०, माहि रुचिकर, दीपन, हृद्य और दुर्गन्ध है। तिको दीर्घश्च । दान करनेके हेतु जिसने अपने धन धारण मनुका वचन है कि-जान बूझकर गुञ्जन भक्षण । किया हो। करनसे ब्राह्मण पतित हो जाता है; और यदि अन्नानसे -ति ( म त्रि. ) गुणन्ति स्तुवन्ति र कर्तरि क्तिच ।। गृञ्जन खाय तो कञ्चमान्तपन अथवा यति चान्द्रायण व्रत १ स्तोता, स्तव करनेवाला । (स्त्री० ) गर भावे तिन्। करक पापसे मुक्त हो सकता है। (मनु ॥१५-१.) (पु.) २ स्तुति। ३ मूलविशेष, लहसुन, रसुन। ४ लाल लहसुन । ग लर ( हि० पु. ) वटवर्ग, पीपल और वरगदको जाति- गृञ्जनक ( स० पु० ) ग्ल न स्वार्थ कन् । रञ्जन । का एक वृहत् पड़। सदुम्बर देखो। ग्टनर ( म० पु० ) गर्जर, गाजर । Vol. VI. 118