पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/४९१

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ग्रामिन-गजोवलय महात्रमिन् (सं० पु.) यहाश्रममनास्ति ग्रहात्रम-इनि।। पर पूर्वाडके जेसे समस्त गृहकार्य अनुष्ठान कर पाकमें लग जाय । पूर्ववत् घरके सभीको खिलाकर पन्तका पाप गृहासत ( स० वि० ) ग्रहे भार्यायां पासक्तः । १ भार्या | भोजन करें, और इसके बाद शय्या प्रस्तत करें। पतिके सत्ता, घरकेसांसारिक कर्म में लवलीन । २ विषय वासना शयन करने पर उनकी चरणसेवामें नियुक्त हो जावें। में लगा हुना। ३ स्थित पदो, घराल चिडिया। पतिके सो जानके बाद आप सोवें, एवं रात्रिके शेषको ग्रहिन (स० पु०) ग्रह भार्या घस्थस्य ग्रह इनि। रहा. पति उठनेके पहले ही स्वयं यात्रोत्थान करें। अनवधानता, श्रमी, गृहस्थ । मत्सता, रोष, ईर्षा बचन, परकी निन्दा, पिशनता हिंसा, हिगी (सं० स्त्री०) यह ग्रहकर्तत्व एहलत्य वा | विद्वेष, मोह, अहङ्का नास्तिकता, माहस पोर अस्त्यस्य गृह-इनि-डी। १ भार्या, पत्नी, जिस स्त्रोके दम्भ इन सबका परित्याग करना माध्वोहिणीका एकान्त जपर घरका समस्त कार्यभार अर्पित हो । प्राचीन समय । कर्तव्य है। ( पनौति १.) में आर्यगण जिन नियमोंमे ग्रहिणी द्वारा गृहकार्य __एक ममय कृष्णपनी मत्यभामा स्त्रीधर्म जाननके हेतु सम्पादन करते थे इतिहास और प्राचीन नीतिशास्त्रमें द्रोपदीके निकट गई थीं। द्रौपदीने उन्हें भलो भांति वे सब नियम लिपिवद्ध हैं। शुक्रनीतिके अनुसार ब्राह्मण गृहिणीका कर्तव्याकर्तव्यका उपदेश दिया, जिमका ग्रहिणीका कर्तव्य स्वामिसेवा है। इसके अतिरिक्त | विवरण महाभारतमें विस्टतरूपमे वर्णित है। उपरोक्त स्त्रियों को और कोई दूसरा धर्मानुष्ठान करना निषिद्ध है, | नियमानुसार चलने पर स्त्रियां प्रानन्दपूर्वक समय व्यतीत किन्तु पति यदि कोई याग यज्ञका अनुष्ठान करे तो उस कर सकतीं और अन्तको मोक्ष पाती हैं। साधर्म देखो। ममय स्त्रोको महायता देना उचित है। इसके अलावा २ कानिक, कांजो। ३ घरको मालिकिन। स्वतन्त्र रूपसे दूसरा धर्मानुष्ठान उनके लिये नहीं है। टहीत ( म० वि० ) यह कम ण त । १ स्वीकत, मजर ग्रहिणीको उचित है कि स्वामीके शय्या परित्यागके पहले किया हुवा । २ अवगत, सात, मालुम । ३ प्राम, हासिल उठ जावें। तत्पश्चात् शरीरको एड कर विछावन उठा किया गया : ४ घृत, पकड़ा गया । (को०) ग्रह भावत। रखना तथा झाड से घर भली भांति परिष्कार कर लेप ५ स्वीकार, मजूर । ६ जान, बोधामम। ७ प्रालि, देना चाहिये । इसके बाद यन्त्रकाष्ठ और जलपात्र नियम हासिल, धारण, पकड़। पूर्वक शोधन कर उपयुक्त स्थान पर रख दें। इस तरह गृहीतगर्मा ( बी.) महोतो मी बया, बानी।।... पाक्षिक कार्यके समान होने पर पाककार्यमें नियुक्त हो गर्भवती, माof NTV जाय। इस कार्यमें सबसे पहले पाकरहके बरतनोंको बाहर | स्टडीतदिश ( स० वि० ) ग्टहीता कि येन, बान कर घरको सपना और तब उन्हें मार्जन करना चाहिये। २ पलायित, मगा हुवा । २ पाना, गायब । इसके बाद चान कर रसोईका समस्त पायाजन करें। ये समस्त ग्यरिणीके पूर्वाह कार्य स्खपुर तथा खश्रकी गृहीतनामन् ( स० वि०) सात प्रशस्त पुल्य जनक सेवा करना ग्रहिणीका मुख्य कर्तव्य है, सवदा | | नाम यस्थ, बहुव्री । जिसका नाम प्रशस्त है, मगर, स्वामीको पात्रानुवर्तिनो हो छायाकी नाई उनका अनु. गमन और दासीको नाई उनका पादेश प्रतिपालन करना| गृहीतविद्य (सं. नियौता अधीता विद्या येन चाहिये। इसके अनन्तर उपयुक्त समयमें पाक कर सबसे बहुव्री। जिसने शिम प्रहण किया हो, शिक्षित, पहले गुरुजनोंको और तब परके दूसरे २ मनुष्यों को भोजन पण्डित, अमन्द ।। करावें । अन्तमें स्वामौके अनुमतिक्रमसे भाप भोजन ग्रहोतव्य ( स० त्रिकर्मणि सव्य । १ ग्रहणयोग्य, करें। भोजनके बाद सायंकाल पर्यन्त ग्राहके पाय व्यय ओ प्रान करने के प्रया।।(क्लो• ) ग्रह भावे तव्य । और कर्तव्याकर्सब पर धधान दें । मन्ध्या उपस्थित होने । २ ग्रहण, प्राम, वास्ति। Yal: Vi. 123 । प्रशसमीय।