पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/५१३

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बड़ा होता, ओष्ठय कृष्णवण एव' मस्तक पर दो छोटी भाल के मदृश खेल मिखाकर ग्राम ग्राम और नगर-नगरमें छोटी ऑखें हैं। इसके वक्षके टोनों पार्श्व में १३१३ पञ्ज- कौतुक देखाया करते हैं मवंशो जिस स्थान पर एक बार रास्थि रहती हैं। गर्दन मोटी तथा छोटी होती है। पालित होते, वहांसे किसी दूमरो जगह ले जाने पर वे बहुतमे गौके पृष्ठ और स्कन्धके मध्यस्थल पर एक माम. अपन पर्व स्थानको फिर भी भाग कर चले आते हैं। ये पिगड़ रहता जिसे ककुद कहते है। तातार ओर भोट प्रतिपालक भक्त हैं। प्रतिपालक वाम-परिवर्तन करने देशीय गोको ककुद नहीं होता । भारतीय गोको अपेक्षा पर भो ये उनके अनुगामी होते हैं। कनकर्त में मवंशी इसका आकार छोटा और लाङ्ग लक लोम दोघ ओर को बाहर छोड़नका नियम नहीं है। किन्तु एमाखा चिक्कण होते हैं। ल ममे उम देशके मनुष्य चामर प्रस्तुत ___ गया है कि कलकत्त से गृहस्थक मवेशी प्रतिदिन रात्रि- करत तथा चीनदेशक धनाढा भक्ति उक्त लोमको भिन्न काल बाहर होत और ममम्त रात्रि मड़क पर पड़ी हुई भिन्न रंगांम रञ्जित कर टोपीके ऊपर धारण करते हैं। चीजों को खात हुए; प्रातःकाल फिर भी अपने स्वामौके इम जातिक गाको हमारे देशमें चमरी गो कहा करते। घर पहुंच जाते हैं। इमलिए उन्हें कोई पकड़ नहीं चमरो देख। मकत । गाय मनुषाके मट्टश कमसे कम दो मो अम्मो दिनों गो जाति भारतवामियोंका सर्वस्व धन है। क्या धनी तक गर्भ धारण कर एक समयमें एक ही मन्तान प्रमव क्या निर्धन मवक मब इन्हें मेवा-शुषा किया करते हैं। करती है। कभी कभी गायको यमज वा एक ममयमें अति प्राचीनकालमें भी भारतवर्षके राजगण गा पालत तीन मन्तान प्रमव करती भो देखा गया है। किमोके थे। महाभारतमं निखा है कि विराट राजाके छह हजार नवप्रसूता गायक निकट जाने पर वह उमे शृह मञ्चालन गायें थी। प्राइन अकवर्गक पढ़नसे जाना जाता है कि द्वारा भगा देती है। दुग्धदोहन समयमै गाय अपने स्तनके अकवर बादशाहको कई मी गो और बेल थ। बादशाह मांमर्प शो अाकुञ्चित कर अपने बच्चे के लिये दुग्ध पुरा गो जातिको बहुत सेवा शुश्रूषा किया करते । मुसलमान रखती है तथा बच्च के गात्रलेहन कर भाटा ह प्रकाश होने पर भी उन्होंने भारतवर्ष से गो हत्याको प्रथा मदाक किया करती है। लिए उठा दी था। पूर्वकालमे वर्तमान समय तक भी गायका अपत्यस्न ह अतिशय प्रवल है। स्तन्यपायो गोदान एक महापुण्यक जैमा उक्त है। आजकल भी हम बच्चाकं मरजाने पर यह तीन चार दिन तक कुछ भी नहीं लोगकि देशको वालिकायं गोकालव्रत नामसे गोको पूजा खाती तथा ममय ममय पर शोकका कातरताव्यञ्जक करती है। हम देश मवेशो कममे कम बाइस वर्ष चीत्कार किया करती है । इसी कारण कभी कभी इसको अॉखीम अथ पात होता देखा गया है। एतद्भिव प्रतिपा- गा जातिक शरोरकं ममम्त द्रव्य व्यवहारमें आते। लककै कोई आकस्मिक विपद पर भी इसके चक्षुमें आँस दग्ध हम लोगांका प्राणाधार है। चमड़े से जते ओर मशक आजाता। प्रभृति प्रस्तुत हति है। अस्थिसे छाता आर रोक बंट पंगोका मचराचर मांढ़ या बैल कहते हैं । कषकगण (मूठ ) तथा वटन ( बुताम) निर्मित होते हैं। लोमको इसके स्कन्ध पर हलयोजन कर भूमिकर्षण करते हैं। हम ___ जमा कर एक तरहका वस्त्र बनाया जाता है। शृङ्ग ओर लोगोंकि देशमें मामान्य पण्य व्यवसाय' इस पृष्ठ पर खुरको गला कर सरंश होता तथा नाडीम वाद्ययन्त्रक धान्य प्रति रख कर एक स्थानसे दूमरे स्थान ले जात तांत तयार होत हं। मूत्र धोबोके वस्त्र धान और विष्ठा हैं। ये पृष्ठ पर पांच मन तक बोझा वहन कर सकते सुखा कर जलानक काम आते हैं। तथा बीस या बाईम मन बोझा समेत गाड़ी खींच मुमलमान तथा चमार इमका माम खाते हैं। लेहमे लेते हैं। सुरापरिकार किया जाता है। प्र.मिया देशमें गोरक्तसे गोमे विलक्षण ज्ञानशक्ति भी है। कोई कोई इसे एक सरहका रंग बनता है।