पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/५३१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

गोगाचौहान-गोग्रन्थि दिन तक उनके कोई मतान न हुई । मयोगवश गुरु, हाजीका शिष्यत्व ग्रहण कर लौटे तब वसुन्धराने उन्हें मोरक्षनाथ बागडदेगको या राजोद्यान अवस्थान करने ग्रहण किया था। गोगाको स्त्रोका नाम शिरयाल था। लगे। बहुत दिनों तक बाचन गनीने गोरक्षनाथकी सेवा प्रति रात्रिको जाहिरपीर सपनो स्वामे मुलाकात करते शुश्रुषा की। एक दिन काचल अपनी वहिनका पोषाक तथा उमे भांति भांतिके अलङ्कारसे भूषित करते थे । पहन गोरक्षनाथके निकट आकर आशीर्वाद प्रार्थना पथिमाञ्चलकी रमणियां गोगाके जन्म-तिथि उत्सव, करने लगा। महापुरुषने उमे दो जो खान के निरा देकर उनका स्तुतिगान किया करती हैं। किमी किमोके मत- कहा कि इमीमे दो पुत्र उत्पत्र होंगे। अन्तको वाचल से गोगा दिल्लीपति पृथ्विराज मम मामयिक थे राज- गुरुकै मामने उपस्थित हुई। अपनो बहनका चातुरी स्थानकं मरुवामी गोगावत् नामक राजपूत उनके वश- तया अपना दुःग्व जना कर रोने लगी। अनेक अनुनय- धर हैं। इकम अतिरिक्त इमनामधर्मावलम्बो बहुतसे विनयकै अनन्तर गोरक्षनाथने उसे एक गुगुल्न दे कर चौहान अपनेको गोगा वशीय बतन्नाते हैं। च हिल देखें । कहा- तुम्हारी बहन पुत्रके दाम हांगे । यथा ममय २ माचाड़ाके एक राजा, आमलदेव पत्र । फिरोज शोलवती गनोको गभ रहा । काचलने उसके गभ को शाहके राजत्व कालमें १३०४ ई०का उत्कोण इनका एक नष्ट करनको बहुत चेष्टाये की परन्तु मब निष्फल गई। शिलालेख पाया जाता है । ( Cumigham's Ach. ८माम गर्भधारण कर वाचलन भाद्रमामकी नवमी तिथिमें Sur. Report, UoL VI Plat IILI.) एक पुत्र रत्न प्रमव किया गुगुन्नमें जन्म हनिक कारण पुत्र गोगापोर ( हि पु० ) एक पीर वा माधु । राजपुताना का नाम गुगा या गोगा पड़ा। यथाकाल्न गोगा वागड़देशक | तथा पञ्जाब देशों की नोच जातिक हिन्द और मुमलमान राजा ह। काचल के दो पत्र अज न और सर्जनन इनकी पूजा करते हैं। गगा चौहान देवः ।। दिल्लीक गजाको महायता या वागड़ देश पर अधिकार गोष्टि ( म० स्त्रो० ) गोश्वामी ग्राष्टिथति कर्मधा। करनको चेष्टा की। किन्तु गोगान दोनों की पराम्त तथा एक बार प्रसूता गाभी, वह गाय जिमन मिफ एक बार निहत कर उनके विन्न मुगड को अपनी माताक पाम बना दिया हो। भजवा दिया। गनीवाचन अपन पत्रक व्यवहार पर गोगोयग (म' क्ली. ) गोहि त्वं गोदित्वाय गोयगच अत्यन्त मन्तम और कड हो उठी और शोक प्रगट कर प्रत्ययः । गोका हित्व मव्या। गाय या लकी जोडो। वोन्लो-जिम स्थान मेरी वहिनके लड़के गये उमी स्थान (मुग्धबोध) पर मरे पुत्र भी जाय । माताको इम वचनसे गोगाके गोगूड-राजपूतानास्थ उदयपुर के गोगूड राज्य का प्रधान हृदय में एक भारी आघात पहुंचा. और तब प्राथ ना कर नगर । यह अक्षा० २४४६ उ. और देशा. ७३३२ पृथ्वोम वोले 'माता वसुन्धर । आप विदोण हो जावें. पृ॰में अरावली पर्वत पर मम द्रपृष्ठसे ३७५७ फुट ऊ'चे और मैं शपको गोदमें शयन करु, उभ पाप मुखको अब अवस्थित है। जनसंख्या प्रायः २४६३ है। हम राज्यमें किसमि दिखानको इच्छा नहीं करता।" उनकी प्राथ ना ७५ गांव अावाद हैं । राजा पाला गजबूत वशीय सर- पर पृथ्वी विदीण हो गई अर व जवादिया नामक दार हैं । राज्यका प्राय प्रायः २४००० रु. है। २०४०, घोड़े पर चढ़ भूगर्भ में सदाके लिये छिप रह । क० कर उदयपुर दरबारका दिया जाता है। अवशेषको वे एक दिन जवादिया घोड पर चढ पर्वत गोगोष्ठ (म. ली. ) गोः स्थान गोस्थानार्थ गोष्ठच को छेदते हुए बाहर निकल उठे। उनको वह अश्वा प्रत्ययः ।गोस्थान , गाय रहनेका स्थान । रोहो प्रस्तरमय भीममृति गजस्थानके मन्दर राजधानी- गोग्रन्यि (म० पु० ) गोभ्या जातो ग्रन्थिरिव । १ करोष. में आज तक भी रक्षित है। शुष्क गोमय, मूग्वा गोबर । गोग्रन्थियंत्र, बहुत्रो । ___ मुसलमानोका ख्याल है कि गोगापोरकी प्रार्थनासे २ गोष्ठ, गा रहनेको जगह, गोशाला । ३ गोजिविका, पहले पृथ्वी नहीं फटी, किन्स जब ये मक्का जा रतनः एक तरहको औषध ।। Vol. VI. 138