पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/५४७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

गोत्र ५४५ शब्द पुत्रादिको भांति उभय लिङ्ग है, विशेष्यके अनुमार बोधायन आदि सत्रकारों ने कुछ गोत्रगण और प्रवर. अपने लिङ्गको छोड़ कर स्त्रीलिङ्ग वा पुलिङ्गम व्यव. | गणका निरूपण किया है। स्म तार्थमार आदि ग्रन्थोंके हृत होता है । (६) कम कागडम जिम वाक्याटको मतानमार रामा मालम होता है कि, गोत्रगणा में जिन रचना करनी पड़ती है, उममें हितोय गोत्र शब्दका हो जिन ऋषियों के नाम हैं, उन उन नाम के एक एक गोत्र प्रयोग होता है। इसके अतिरिक्त ट्रमरी जगह अपनो भी हैं। जैसे-वत्स, विद, आष्टि पण, यस्क, शुनक, इच्छानुसार कोई भी शब्दका प्रयोग किया जा सकता मित्र युव और वैन्यभृगुक ये मात गोत्रगण हैं । इम नाम- है। हम अवस्थामें किसी प्राचीन शास्त्रमें विरोध नहीं में ये भात गात्र ार इनके गगामें अन्यान्य टूमरे नाम- पड़ता। के भो गोत्र प्रचलित हैं। इमो प्रकार अत्रिगोत्रगण और गोत्र कितन है? प्राचीन मनि वा ऋषियांममे । विश्वामित्रगोत्रगण आदि भी निरूपित है। परन्तु वे मब किन किनक नाममे गोत्र चले हैं ? इन विषयों का निरू. गोत्र अब प्रचलित नहीं। पण प्राचीन शास्त्रों और मग्रह ग्रन्थों को ही आराधनाम धनञ्जयकत धम प्रदीपमं गोत्रप्रवर्तक ऋषियांक कुछ करना पड़ गा। परन्तु मम्यक् अनुशोलनकै अभावमे नाम लिख हैं। वे दम प्रकार हैं.--१ जमदग्नि, २ भर- अथवा लेखकांक प्रमादम उन मून ग्रन्यांका तथा मंग्रह. हाज, ३ विश्वामित्र, ४ अत्रि, ५ गौतम, वशिष्ठ, १ ग्रन्यांका पाठ इतना विगड़ गया है कि उसके वास्तविक काश्यप, ८ अगस्त्य, ८. माकालीन, १० सामन्य, ११ परा पाठका पता लगाना अमाध्य है। इमो लिए म ग्रहकार शर, १२ वृहस्पति, १३ काञ्चन, १४ विष्णु. १५ काशिक, पुरुषोत्तमन अपने मञ्जरी ग्रन्थमं आपस्तम्ब आदिक मत १३ कात्यायन, १० पात्रेय, १८ कगव, २६ कृयात्रेय, को ले कर उनके परस्पर विरोध मिटानका बहुत प्रयत्न २० माङ्ग,ति: २१ काण्डि न्य, २२ गग, २३ आङ्गिरस. किया है। उनके बाद के मग्रहकार कमन्नाकरन अपन २४ अनावृकान, २५ अय, २६ जेमिनि, २० वृद्धि, २८. गोत्रप्रवरदप गाम रामा लिखा है, "कात्यायनापम्तम्बादि शागिडल्य, २. तात्म्य, ३० आलम्बवायन ३१ वैयाघ्रपद्य, मत्रभाष्यालाचन न न्य नाधिक्यभावात् गोत्राणां प्रवग- ३२ घृतकौगिक, ३३ शक्ति, ३४ कागवायन, ३५ वासकि, गान गामच्यास्वरूपम च्या प्रवरविकलवादिभिविमम्बा- ३६ गातम, ३० शुनक और ३८ मौपायन। बोधायन, दान मर्व मत्रपमगोपमहरिण निर्णयः कार्य इत्य क्त आपस्तम्ब पार बाग्वलायन आदि मूत्रकारी आर पोरा- भवति मञ्चर्याम् ।" अथोत् पुराण दि सब ग्रन्थों का माम- णिका ने, पहिले कुक गौत्रकागडांका उल्लेख करके फिर जम्य रखते हुए ही गोत्र निणय करना चाहिये। उनक कक गोत्रगणांका भी उल्लेख किया है। एक मत्स्यपुराणमें १८५ मे २०२ अधयाय तक गोत्र आर गोत्र गणमें जितन गोत्रीका उन्लेख किया गया है, उनके प्रवरका निरूपण किया गया है। उममें "गावकारान् प्रवर ममान हैं। जैसे-भृगुगोत्रकागड क आष्टि पण गोत्र- ऋषान वक्ष्य" इतादि लिख कर पोछम जिन ऋषियों- गणक अन्तर्गत जितन गोत्र हैं, उन मबहोकं भागव का नाम लिखा है, शायद वे हो ( मत्स्यपुराण अभिप्रेत ) च्यवन, आप्रवान्, आष्टि पैण और आनूप ये पाँच प्रवर ग:त्रांक नाम हैं। यद्यप यह कल्पना को जा मकता है हैं। ( पाटि घेणानां भार्गवयव नान वानाष्टिपणान पेति । माय० प्रो. क किमो ममय उन नामों के गीत्र प्रचलित थ, तथापि १२।१८) प्रवर का नाम जानन के लिए प्रवर शब्द देखा। जिमप्रकार यह मानना पड़ेगा कि, बहुत दिन पहले हो उन गात्री- ममान गोत्रम विवाह निषिद्ध है, उमोप्रकार ममान प्रवर का लोप हो चुका है, अब उनका चिह्न तक नहीं होने पर भी विवाह निपित है। मिलता। वाधायन आदिन जिन जिन गोत्रगणों का उल्लेख किया (E) भवहार fat'गवामयमाय शब्दस्थ उभयलिगत्वाद- है, उनके नाम आदि नाचे लिख जात है- विरूह' वशब्दयत यथा वशिष्ठम्य पुव कुगिड़म इति तथा वगिष्टगोव कुमिसन इति।" (गावावरम जरा) पुरुषानमका म लिपि मिया और कहा भृगुगौत्रकाराड़में व म, आर्टिषेण, विद, यक, मित्रयुव, उभयन गाव शब्द का प्रमाण नहीं मिलता। वन्य और शुनक-इन मालवगणांका उल्लेख है । बोधा Vol.VI. 137