पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/५५०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

५४८ गोत्र चौवन्न, जावालि, याज्ञवल्क्य, उण्डावलि, मोमुतया, सावचस, कारय, कौकण्ठकि, तैक्षि, माहकि, बहोदकि, श्रीपदहन्य, उदम्भरि भाष्यग, श्यामय, चत्रेय, वला, मय कोषि, मोजायन, जागवंश, खर्वायण, गावभाव, सभा. राम, शोथतात्रि, नव, मयम्तायन, वान त, काम्यान्तर. लि, गोभिल्ल, वदायन, वाध्यायन,बहरि, भागुरि, खादंती- यक्ष्य, कालि और उत्सरि । इनको कशिकगण कहते हैं। मख, हिरण्यवाहु, तैदेह, गोपुत्रा, वाक्यष्ठा, जालन्धरि इनके तीन प्रवर हैं,-वश्वामित्र, अष्टक और लोहित। और धन्वन्तरि, इनको शाण्डिल्यगण कहते हैं। इनके काशाप, आपसार और देवल ये तीन प्रवर हैं। २। गक्षक, स्बौदहन और ग्वगा-इनके तीन प्रवर ये हैं..-वश्वामित्र, रोक्षक और रेवण । । लौगाक्षि, दाभ पण, मत्रवादि, पहलवादि, हषान्धुचि, तथाकलि, कमपात्र, कायनितावम्त, विरोधकि, ३। वैश्वामित्र, देवगत, श्रवम, देवतवम, भिति कोनामि, मौलय, मैति, किष्टि, भरोनिष्ट, चैरत्ति, ज्याम, कारण और काकाय निन्-इन तीन प्रवर ये चाप्पन, पोधकालक, चय और जप, ये मब लागाक्षिगण हैं-विश्वामित्र, देवनवम और देवतवम । कहलात हैं । इनके कशाप , श्रापमार और वमिष्ठ ---ये ४। अज, माह्य और मधुच्छन्द--इनके तीन प्रवर तीन प्रवर हैं। ( यौधायन का पगाव काण्ड ) इम प्रकार है-विश्वामित्र, मधच्छन्द और माजात । वशिष्ठ गे। वकाग:- ___५। अवमपण गोत्रगण के तोन प्रबर ये हैं, -विश्वा वैतनकि, बाहरकि, मारण, गौरिध्वा, श्राश्वला- मित्र, अघमर्पण और कौशिक । यन, कपिष्ठ, ..... मोचि, .... वाहाकायनि, गार्यान, हा इन्द्रक शिक गोत्रगण के दो प्रवर हैं,-विश्वामित्र कोशायन, मुन्दहरित, मोपवमायन, आनन्तायन, पण व्या और इन्द्रकाशिक । (बौधायन विश्वामिव-गाव कान्द्र) यन, पणिवा, देवन, गौरवाश्म, वाहव्यथि, अवाकि, काश्यपगाव कायर--- वश्वपाय, पूतिमाष और मप्रावन --ये वैतनिकगोत्रगगा १। काशाप. आङ्गिरम, भारद्वाज, एतिमायन, भृत्य, हैं। उनका प्रवर मिफ एक ही है, -वाशिष्ठ । वैशिप्रा, धर्मायन, माम्य, धर्मायण, औरतक्ष, प्रग्रायण, २। कुगिड़न, लोहायन, युग, कोक्रोका, माङ्गनिन, पंकि, प्राचर्य, हृद्रोग. आतप, पाञ्चायतिक, नयातिक, पटक, नवयि, हिरण्याक्षयन, पय्यनादि, भाज्याक्षि, माममि, मामगि, मावचि, मायम्य, आस्तवायन, छागव्य मध्याटिन, स्यान्ति और शोपामिन, इनको क गडनगात्र मानि, म्थ पशि, वार्षि, श्रीपव्य, लक्षणा, कोष्टाजोव, ___ गण कहते हैं। इनके प्रवर तोन हैं - वशिष्ठ, मैत्रावरुण ग्वाडायन, रोहितायन, मितकुम्भ, पिङ्गाति, मारायण. और क गिडना।। पचवर, कर्णय, कोषोतको, धमल हायन, सुरा, गौरिवारान. । पराशर, कद्रषि, वाजि, वामिति, बेमतायन और महाचक्र य, यो चिनमा, पाणस्याणि, षगण, दाक्षपाणि, गौराणि, इनको कणपराशर, प्ररोहि, वेकनि, प्लाक्षि, भालन्दन, माङ्गमित्र य, हरित्या, जारमात्स्य, ओरमागिश, समोर वात को विथावम, वैशम्पायन, स्व रकि, काशलि, उक्तायनि, काम्पायर्यान, गोप्रायण, स्याति और वाणि, इनकी अरुण- माज नायन, कामनायन, देवहोता, मूचि, भि, भागुरि, पराशर कहते हैं। भानुकि, राजानि, क्यानहायन, कोकुलेय पथिकायन, गामायन, हिरण्यरयि, अग्निदेवी, मौशन्न, और क्रमथायो. इनको नीलपराशर तथा कृष्णाजिन, प्राविणे य, सुश्रुतदला, मन्वित, व कणि और स्थ लारि- कपिमुख, श्वाश्यापायन, श्व तमुखि और पोष्करमाढ़ि इन- न्दम-ये मव नित्र वगण हैं । इनके तीन प्रवर इस प्रकार को श्व तपारशर गोत्रगण कहते हैं । इनके भी प्रवर तीन हैं-निध्र व, आपमार और काशाप । है - पराशर, शक्ति और वशिष्ठ। ( बोधायन वशिष्ठ गोत्र काण) २। भगोत्रगणक तोन प्रवर हैं. काशाप, आपमार अगम्गिाबकांड- और न ध्रुव। . १। काण्वायन, आदङ्गकि, माषगडन्। लोमाना, ३ । शागिडन्य, पाचक, वायिक, ओदम ध्या, सौदान बरद्द, वैरणि, बुधौदि, शौरपथि, शाल्पतप, सोलीवर