पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/५५२

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गाव-गावभित् २८ वाव गावके नाम प्रबर के माम प्राचीन समयमें या गोत्रक नियम बनने के बाद ही, जिन १८ कृषणात्रय कृष्णात्रय, आत्रय और आरिम। पुरोहित नाममे जिनने अपने गोत्रका परिचय दिया मतान्तरमें आङ्गिरमकी जगह, था, वर्तमान उनके वशधर भी उमो गोत्रका नाम आवाम। लेते हैं। हालके पुरोहितोंर्क नामसे कोई भी अपने १८. माङ्गति अव्याहार, अत्रि और मात्र ति। गोत्रका परिचय नहीं देता। २० कौण्डिल्य कौगिडन्य और तिमिकोत्म । - "पुहिक प्रवरा गना।" (पाथ. श्री. १२.१५:५) सचिव श्ययोगदिष्टसिदिष्टगोवंश द म्यातिदिष्टातिग." २१ गर्ग गार्य, कोम्तम्भ और माण्डव्य । २२ आङ्गिरम आङ्गिरम, वशिष्ठ और वाहस्पत्य ।। गोत्रक ( म० ली. ) गोत्रमेव गोत्र म्वार्थ कन् । गे व देव।। २३ अनाकात गाय, गौतम और वशिष्ठ । गोत्रकत म० पु० ) गोत्रस्य कर्त्ता तत् । गोत्रप्रवर्तक । २४ अव्य अव्य, वलि और मारम्बत। (भारत १३४) जैमिनि मिनि, उतथ्य और माङ्गति । | गोत्रकम ( म० पु. । दिगम्बर जैन सिद्धान्तानुमार -पाठ २६ वृद्धि कुरुवर, आङ्गिरम और वाहम्पत्य । का में गोत्रकम मातवाँ कम है। यह कम जीवों को २७ शाण्डिल्य शागिड न्य, अमित और देवन। ऊच और नीच गोत्रको प्रामा कगता है। इसके दो वात्स्य । औव, च्यवन, भागव, जामदग्न्य मंद हैं,- २८ मावग और आप्रवत्। ३० बालस्यान आलम्यायन, शानङ्गायन और “उन च ५।" ( त स्वार्थम व ८अ ) ऊच गोत्र और नोचगोत्र ये दो गोत्र कर्मको प्रकृति शाकटायन । ३१ वैयाघ्रपद्य माङ्ग,ति । यां हैं। जिमकै उदयसे लोकपृज्य और महान कुलम जन्म ३२ घृतकौशिक कुशिक, कोशिक और घृतकौशिक हो उमे गोत्रकम कहते हैं। जैम - इक्ष्वाकुवंश, चन्द्र मतान्तरमै बन्धन । वश, सूर्य वश आदि और जिमके उदयमे निन्दा तथा ३३ शक्ति शक्त्रि, पराशर और वशिष्ठ । दरिद्रताकै माथ अप्रमिड, दाग्वमे व्याकुन्न ---एम वशमें आङ्गिरम, वाहस्पत्य, भरद्वाज और ३४ कागवायन जन्म हो, वह नोच गोत्रकम है । ज मे-भङ्गी, चमार, डोम, धोवी आदि। अजमोढ़। ३५ वामुकि अक्षोभ्य, अनन्त और वासुकि । गोत्रकारिन् ( मं० पु.) गोत्र करोति कणिन् । गोत्र- ३६ गौतम अपमार, गौतम, आङ्गिरम, वाह. कर्त्ता गोत्रप्रवर्तक । स्पत्य और नेध व, मतान्तरमंगोतम, गोत्रकोना (म. म्बी०) गोत्रः पवतः कोल इव विष्टम्भक- आङ्गिरम पार आवास । त्वाद यस्याः बहुवी टाप । पृथ्वो। ३७ शनक शुनक शौनक और गृत्समद। गोत्रज ( मं० वि० ) गोत्र ममानगोत्र जायते गोत्र-जन. मतान्तरमै शुनक, सु नहोत्र और । ड। १ एकही गोत्रम उत्पन्न, एक ही पूर्वजको मन्तान । एत्समद। २ चौदष्ट पुरुष ( पिढिहीं ) तक एक गोत्रोत्पब मनुष्यों- ३८ मोपायन श्राव, यवन, भागव, जामदग्न्य को 'गोत्रज' कहते हैं। और आप वत्। | गोवद्रुम ( मं० पु०) धन्वन वृक्ष । ब्राह्मण ऋषि हो गोत्रके प्रवर्तक हैं। उनके वंशक गोत्रभित ( सं० पु० ) गोत्र पर्वतमेव वा भिनत्ति भिद्- लोगों के गोत्र उन्हीं के नाममे चलते हैं। क्षत्रिय आदि | विप । १ इन्द्र। गोत्र नाम भिनत्ति भिद्-किप । अन्यान्य वर्गीक लिए यह बात असम्भव जान पड़ती है। नामभेदक, जो मनुष्य एक नाम उच्चारण करने के समय उनके गोत्र उन्होंके पुरोहितोंके नामसे चलते हैं। अति | दूसरा नाम उच्चारण करता है। ३ पर्वत ।