पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/५६४

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गोरखपुर जानी जाती हैं। भरजातिक मर्दार पहले स्वाधीन भावसे । सबको पराजित कर गोरखपुर दखल किया। औरङ्गजब- गजत्व करत , अन्तको वे मगधके बौडराजाके आश्रित के समयमै उनके लड़के बहादुरशाह शिकारके उद्दे शसे हुए। बोडोंक अधःपतन के बाद हिन्दुओं को प्रधानता | इस जिलेको देखने आये थे। परन्तु १७२१ ई में लख- दिन दूनी गत चौगुना बढ़ने लगी । ६०० ई०को नऊ नगरमें अयोध्याके नवाब बजीरके प्रतिष्ठित होनेके कनौजक हिन्दू राजाओंने डम जिन्ले पर आक्रमण तथा । पहले मुसलमानीका गोरखपुरके ऊपर विशेष लक्ष्य न वतेमान गोरखपुर नगर तक अधिकार किया था। था। उम ममय देशीय राजा इस प्रदेशमें राज्य करते चौनपरिव्राजक युएनचुपाङ्ग जब इस देशको देखने आये थे। नवाब मयादत् अली गजगद्दी पर बैठ गोरखपुर उम ममय वे बहुतमे बौद्धमठ और म्त पादि देख गये थे। पर अधिकार करनेका यत्न करने लगे थे । १७५० ई० में ८०० ईमें दोमहतार नामक किमी ब्राह्मणके दलने | अली कामीम खॉन बहुतसी सेना ले गोरखपुर हस्तगत राठागंको गोरखपुरमे भगा दिया था। ११वीं शताब्दो में किया। इस ममय मुसलमान गोरखपुरके राजासे कर नागराज विष्णुमेन इम गज्यके मामन्त (राजा) थे, ले लेते और कोई उत्पात नहीं मचाते थे, देशीय राजा. किन्तु उम समय भग्जाति भी जिले के पश्चिममें राज्य आँसे जो कुछ मिलता, उसे हो महर्ष ग्रहण करते थे । करती थी। इसके बाद मोगन्नमम्राट अकबरके ममयमें १८ वीं शताब्दी में वञ्जराके उपद्रवमे यह जिला विशष जयपुरक राजाम उन दोनोंका मम्प गर्गा रूपसे अध:पतन क्षतिग्रस्त हो गया। १७२५ ई में वञ्जरा पहले पहल हा । १४वीं शताब्दी के प्रारम्भमै मुमलमानोंमे भगाये देखे गये थे। तीम वर्ष तक वे शान्त रहे, इसके बाद हए राजपूत राजगा इम जिले में आये। उनमेंमे धरचट | ये बमोर्क राजाके माथ मिल दूमी दूमरे मर्दाको कष्ट धडियापाड में प्रार चन्द्रमेन शतामी नामक स्थानमें आ कर पहचाने लगे थे। इम ममय अयोध्याके नवाब मनुष्य रहने लग थे । चन्द्र मेन दोमानगढ़ पर ( वर्तमान गोरखा | प्रजाकी धन सम्पत्ति लट रहे थे। प्रजाक हाहाकारमे पुर दुर्ग ) अाक्रमण कर दोमहतारके मर्दारको मार कर | अाकाश विदीर्ण हो उठा। १७४४ ई में वसरको आप गजा बन बैठं । इमो शताब्दीमें बतवल और लड़ाई के बाद एक वृटिश सेनापतिक ऊपर नवाबके मैन्य बमोक गजाओंके माथ घममान युद्ध होनेमे जिलेका परिचालन और गोरखपुरसे कर वमल करनेका भार अधिकांश मरुभूमिमा हो गया था। १३५० से १४५० ई० मौंपा गया। इन्होंने बहुतसे ताल कदारांको जमोन ठोका तक शतामो और मजहोलोक राजानांमें अविच्छ द युद्ध दे दो। ठोका पाकर वे प्रजासे मन माना कर लिया होता रहा। करते थे। १८०१ ई०को सन्धिके अनुसार अयोध्याक प्रायः १४००ई०में गोरखपुर नगर स्थापित हुत्रा। नवाबन वृटिश गवर्म गटको यह जिला दे दिया । टिश उक्त ई के बाद यह जिला क्रमशः विभक्त होने लगा। गवर्मेटने गोरखपुर, आजमगढ़ और वस्ति जिलेमें शाममा मजहोलीवशने दक्षिणपूर्व अधिकार किया था और का सुप्रवन्ध कर दिया । समय समय पर प्रजाकि धू रचन्दके वंशधर दक्षिण-पश्चिमांशमं राज्य करते थे । राजत्वको भी घटाने लगे। १८१३ ई में नेपालियोन इसके बाद आवनला और शतामी राज्य तथा जिलेके | गोरखपुर पर आक्रमण किया, किन्तु थोड़े समयकं बाद उत्तर पश्चिमांशमें छोटा बनवल राज्य संगठित हुए। की व लौट जाने के लिये वाध्य हए। इस सम्यसे लेकर उक्त राजगण स्वाधीनभावसे राज्य करते थे। सिपाही विद्रोह तक यहां किसी तरहकी गड़बड़ी न मोगल राजत्वके पहले थोडं मुसलमान घर्घरा नदी हुई। १८५७ ई०के अगस्त माममें मुहम्मद होमेनके पार हुए थे। लेकिन वे इस प्रदेशको पा न सके १५७६ अधीनमें विद्रोहियोंने इस जिलेपर अधिकार किया था ई० में बङ्ग वाला खोको परास्त कर अकबरका मैन्य १८५८ ई० को ६ठो जनवरीको जङ्गबहादुरने गोर्खा सैन्यके दल इस जिलाकरमाया था तथा जिन राजाओंने साथ आ मुहम्मद होसेन और दूसरे दूसरे विद्रोहियोंको उसे जाते रोका, सबके सेनापति फदाई खनि उनगोरखपुर जिलेसे भगा दिया। तभीसे यह जिला वृटिश