पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/६०१

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गोल ५६६ विषु वत् वृत्तके दक्षिण भाग आधारवृत्तमें बांध दें। पश्चिमको औरसे जिममें एक बार घूम जाय, इमी तरह इन्हें तुलान्त वृश्चिकान्त और धनुरन्त-वृत्त कहते हैं। रखना चाहिए। इसी नियमसे मकर, कुम्भ, और मीन राशिको और तीन ! गोलका समम्त अवयवको वस्त्रसे ढांक उस वस्त्रक कक्षा बना कर तुला, वृश्चिक और धनुरन्त वृत्तकै विप- ऊपर पूर्व प्रदर्शितवृत्त अङ्कित करें, किन्तु पहने जिम रोत भावसे वड करना चाहिए। तितिजवृत्तकी बात लिखो गई है. उमको बाहरमें रखें, ____ अश्विनी प्रभृति मत्ताधम नक्षत्रविम्वके मत्ताहम उमको वस्त्रम ढांक न दें। गोलके ऊपर क्षितिजवृत्तको कक्षा बना कर गणितशास्त्रमें दक्षिण और उत्तर गोलर्क इम तरह रखें कि वह मर्वदा स्थिर रहे । इमोका दूमग जिन जिन स्थानों में जिम जिम नक्षत्रका अवस्थान निर्णीत नाम लोकालोक है: है, उमी नक्षत्रविम्बकी कक्षा उमो स्थानमें आधारवृत्तसे प्राचीन ग्रार्यशास्त्रकारोंका विश्वास था कि मब बन करें। इसके अलाव अभिजित, मार्षि, अगस्त्य, विषय पुस्तकों में लिखे रहनेमे गुरुका गौरव जाता रहेगा। ब्रह्म, लुब्धक ओर अपांवत्मादि नक्षत्रविम्बको कक्षा भी क्योंकि मब कोई ग्रन्थ देख अभ्यास कर लंग, कोई भी नियतन पर वींची हुई रहे । विष वत् कक्षाको मब । गुरुक उपदेश ग्रहण करने की चेष्टा न करेगा। इमौलिये कक्षाके मदृश मध्यमें र मरा वृत्त या कत्ता बनाना उन्होंने कठिन विषयों को ग्रन्थमें नहीं लिखा है, वे इन्हें होता है छिपा गये हैं। सूर्य मिद्धान्त में किम तरह गोलक स्वयं विष ववत्त ऊर्ध्व और अधम्तन आधार वृत्तम दो वह किया जाता, उमके अभ्पष्ट विवरणके बाद लिखा जगह मलग्न होता है। उन दोनों मम्पातोंके ऊर्ध्व- सम्पातसे दक्षिणको ओर चोबोस अंशीको दूरी पर आधार । “गोप्यमेतत् प्रकाशोक सर्व गम्य भवेदिक। मृत्तके जिम स्थान पर मकरादिका अहोरात्रवृत्त लग्न तसाद गुरूपदेशन र वयेन गोलमुत्तमम ॥" होता है, उसे उत्तरायण मन्धिस्थान तथा अधस्तन मम्पात (म.मि ज्योतिषो० १७ थोक ) से उत्तर चौबोम अशकी दूरी पर आधार वृक्षके जिम गोलको किम तरह स्वयं बह किया जाता है यह स्थान पर कटादि अहोरात्रवत्त लग्न होता. उसे विषय गोपनीय है, डमो कारण यहां पर माफ माफ दक्षिणायन मन्धिस्थान कहा करते हैं । इम प्रकार अयन । लिखा नहीं गया। स्पष्ट रूपसे लिख देने पर सब कोई और विषवतवृत्त स्थिर कर उनके बीच में मेषाटि स्थान। न जावंग और इमका गोरव नहीं रहेगा। दमानिये स्थिर करें । एमा हो जानसे एक तरहका गोलयन्त्र तैयार किम तरह गोल स्वयं वह किया जाता है, यह गुरुमुख- हो जाता है से सुनकर गोल प्रस्तुत कर लेवें। ____ वृक्ष रहित बड़े मैदान में बड़ा रह कर चारो ओर भारतवामी प्राचोन आयकि ऐसे संस्कारमे हो भारत देखनसे एमा मालुम पड़ता है कि आकाश एक बड़ा का शास्त्रगौरव धीरे-धीरे लुप्त हो गया है। उनतिको कटाह ( कटाई ) के जैमा पृथ्वीको चारो ओर समान चरम सोमा गणित शास्त्रके फललाभमे भारत-मन्तान भावमें मलग्न हो कर हमलोगोंको दृष्टिका परिच्छेद वञ्चित हो गई है। यथाथमें जिमका कारणमे हो गोल्न कर रहा हो। जिस स्थान में प्रकाश संलग्न हुआ है उस किस तरह स्वयं वह किया जा सकता, उमका स्पष्ट स्थान पर गोलाकार एक वृत्त कम्पना करनेसे वह उपाय किमी प्राचीन शास्त्र में माफ तीरमे लिखा नहीं हैं। क्षितिजपत्त कहलाय गा । खगाल देवा 'भूगोलका क्षितिज सूर्यसिद्धान्तके अस्पष्ट वचनोंको ले टीकाकार रङ्गनाथन वृत्तके जैमा दृष्टान्त गोलमें भी एक स्थिर वृत्त वनाना जिस तरह स्थिर किया है, वही इम स्थान पर लिखा पड़ता है, उसे दृष्टान्त गोलका क्षितिवृत्त करते हैं। . इसी तरह गोलयन्त्र बना कर उसको स्वयंवह अर्थात् स्वयंवर करने का उपय-गोलयन्स की वस्त्राच्छव कर मनुष्यको सहायताके विना नाक्षत्रिक साठ टण्ड में इस उसके प्राधारगड़ के दोनों प्रान्त दक्षिण और उत्तर- हुप्रा है।