पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/६०२

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गोल को नलिकाम इम तरह रखं जिमसे दगडका अग्रभाग पर भूगोल स्थापन करना पड़ता है। इनके बाहरको ध्रु वाभिमुग्वो हो। इसके बाद दगड़वं आग मरलपथमं नलीमें खगोल और दृगगोल रखना चाहिए । इस गोलके पूर्वाभिमुखी एक जलप्रवाह एमा बनावं कि उसमें गोल यथा स्थान पर गणित-शास्त्रानुसार पूर्व पश्चिमवृत्त दणि. के नीचेका भाग उसके पथात भागमें अहत हो। आघात गोत्तरवृत्त और कोणवृत्तय प्रभृति वृत्त या कक्षा मचको देखनमें न आवे, इमोलिये वस्त्रसे ढाक देनके खीचें। लिये ऊपर कहा गया है कोई कोई कहते हैं कि प्रा- पहले जिन चार वृत्ताको कथा लिखी गई है, उन्हीं के काशकीनां प्रस्तत करना हो वस्त्राच्छादनका उद्देश्य है। नोचे क्षतिजवृत्त रखना चाहिए । पहले कह हुए वह वस्त्र जलमे भीगन न पाव, इमोलिये उमकी चिकन दक्षिणोत्तरवृत्त के मधा उत्तर क्षितिजवृत्तक ऊपर एक वस्तु द्वारा अर्थात् जिसके लेप देनमे वस्त्र न तो जले और ध्रुव चिन्ह और दक्षिण क्षितिजवृत्तक ऊपर एक दमरा न भोंग मे द्रव्यांस लेपना चाहिए। गोलक चारों ओर ध्रुव चिन्ह अङ्कित कर दें। समवृत्त और क्षितिजवृत्तके खाईको नाई इस तरहको दोवार बनी रह जिमसे क्षिति- दाना स्थान सम्पात है। उसके पहलेको पूर्व मम्पात जवृतक मदृश उम खाईमें गोलका अधोभाग आच्छव रह पार दूमरको पथिम मम्पात कहा जा सकता है। संपात- कर दृष्टिगोचर न हो। आधार दण्ड का दक्षिण भाग से ध्र व चिन्ह तक एक मण्डल करं। इमका नाम शिथिल करना चाहिए, नहीं तो गोल घम नहीं मकेगा उन्मगडल है। इमी मगडल हारा दिन और रात्रिका क्षय और पूर्व परिवा विभागके बाहर आदृश्य जल प्रवाह और वृद्धि जानी जाती है। पूर्व और पश्चिम सम्पातमें करना चाहिए। संलग्न दणिणोत्तरवृत्तके स्वस्तिक स्थानसे दक्षिण तथा म्वय वह करनका दूसरा उपाय । गोल कैद कर वहि. अधः स्वस्तिक स्थानसे उत्तरी अक्षांशकी दूरी पर एक गत आधारदगडके दोनों प्रान्तमें इच्छानुमार दो या तीन वृत्त खोचं । इसका नाम विषुववृत्त है। जगह परिधिकी तरह नमि ( चारखी ) बना कर ताड़के अई और अधस्तन स्वस्तिक स्थानमें दो कील मजबूत पत्त से अच्छी तरह आच्छादन करें और उसमें एक छिद्र से रख उन पर दृग्वलय बाधना पड़ता है । दृगवल । भी रहे। इस छिद्र हारा परिधिका आधा भाग परिमित पूर्वोक्त वृत्तीमे कोटा करना होता है। जिससे र नमें उसको अच्छी तरह घुमाया जा सके। यदि ग्रहगो प पाग और दूमर अपरिमित जल देकर पूर्ण कर दें । एक रहे, तो एक दृमण्डल बनानसे ही काम चल मकता किट्रको बन्द कर देना चाहिए। दगड का अग्रभाग दोनों है। ग्रहलोक जिस स्थान पर रहेगा, इस मण्डलको घुमा ओरको नलामें इस तरहसे रखें जिससे गोल शून्य भावसे कर उसके ऊपर ले जाना पड़ता है। ऐसा होनसे दृगज्या रह सके । पारा और जलमें आकर्षणशक्ति है। दोनोंके और शङ्क (कोल ) प्रभृति देखने आते हैं अथवा अलग पाकर्षणमे दगड आपमे आप घूम जायगा और उसके अलग आठ हमगवल बनावें। इसोका दमरा नाम दृकक्षप आथित गोल भो भ्रमण करने लगा। मण्डल है। सिद्धान्त-शिरोमगिक मतसे गोल तोन प्रकारका है, ___ खगोलके ध्रु वचिन्ह स्थानमें दी नली बांध उसमें खगोल- खगोल, भूगोल और डकगोल। इमका विशेष विवरण के बाहर तोन अङ्गल दृग्गोल बनावें । खगोल- उन्हों शब्दाम किया गया है। किस तरहसे गोल बॉधा वृत्त, भगणवृत्त, क्रान्ति और विमण्डल प्रभृति इस गोलमें जाता है उमोका ब्योरा इस स्थान में दिखलाया गया है। निवद्ध रहेंगे। खगोलमें अवस्थित क्षितिज और दक्षिणो. चिकनी, गोल तथा भाचिन्ह युक्त सोधा बॉसको शलाका तरवृत्तकी नाईदो प्राधारवृत्त मजबूतीसे ध्रु वदण्डमें से गोल प्रस्तुत करें। एक सुन्दरका शालवन काष्ठका बाँधकर उसके ऊपर समान मण्डलाकारका एक दूसरा डंटा तैयार कर डंटेके मधास्थानमें शिथिलभावसे भूगोल वृत बनावें। इस वृत्तको बगबर बराबर साठ भागोंमें बांध दें । उसके बाहरमें यथाक्रम चन्द्र, वुध, गुरु, सूर्य, विभक्त कर चिन्हित करना पड़ता है। इसका नाम नाड़ी- मङ्गल, वृहस्पति और शनिके ग्रहगोल और उपयुक्त स्थान वृत्त है।