पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/८३

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. . खोड़-खोडार खड, दाल, तोनल , पोरखिय', कन्धरा, गौरिया, नगला देवता' या पृथ्वी प्रमित है। प्रतिवर्ष ये तोन त्यौहार प्रभृति इमी श्रणोंक हैं. राजखोड हो मभौक अधोखर मानते हैं। चार या पांच वर्षों में एक वार पृथ्वी देवता माने जाते, जबतक उन्हें थोड़ी जमोन न रहे तब तक को महिष बलिदान देते हैं। पूर्व समयमें महिषके वे राजखों: नहीं कहला मकसै। जब कोई राजखोंड़ बदले मनुष्य बलिदान देते रहे। काला हलदीम में किम टूमरे अंगोमें विवाह करता तो वह भी उमो | धरणी माताको चढ़ाया जाता है और इसका माम अपने अंगाम मिन्ना 'लया ता है। 'दल' जो बलमुदिया पड़ोमियोंके मध्य बांट देते हैं आखिरम जानेके पहले भी कहलाता मनिकमें भर्ती होत हैं। पोरखिया भैम | ये तीर और धनुषकी पूजा कर लेते हैं। उनको ग्वात, कन्धरा हरिद्रा ( हलदो) उपजाते। जोगा विश्वास है कि मनुष्यों के मर जाने पर उसको आत्मा पुनः रिया मवेशो चगते हैं। खड़ अपन यंगोम विवाह छोटे छोटे बच्चोम जन्म लेती है। नहीं करते परन्तु ये मामाको लडकोसे मादो कर खांड गृहस्ती, आखट और लडाई वृत्तिके अतिरिक्त मकत हैं। टूरा कर्य नहीं करते। अधिक अवस्था आन पर ये विशाह करते। लडकीक बोंडर (हि. पु. ) वृक्षका अभ्यन्तरस्थ शून्य भाग, पड़के लिये इन्हें पण देने पड़ते हैं दश या बारह मवेशीक भोतरका पोन्ना हिम्मा। शिर ही इन लोगों का पण है। किन्तु आजकल दो या खोंडा (हिं० वि० ) १ भग्नअङ्ग, टे अङ्गवाला। बहुधा तीन मवेशीक मुगड़ अथवा एक रुपया पण कहकर लेतं यह शब्द उम व्यक्तिक लिये व्यवहारमें लाते, जिसके हैं। वागत लडको घरमे वरक घरको ज तो है। मामनवाले दो-तीन दांत टूटे दिखलान हैं। विवाहकाल वर और कन्या बाहर निकल अपन किमी वांत (हि पु० ) धमला, चिडियांका घर । एक कुटम्बक कन्धे पर बैठते हैं। वर कन्याको अपनो खोप ( हि स्त्री०) १ पसूजन, मलङ्गा, मिलाईका लम्बा ओर खींचता और एक वस्त्र उन दोनों के अङ्गको रहता टांका। २ फटन। है। एक मर्गा भी इम ममय वलिदान किया जाता। खांपना ( हि • क्रि० गा : ना, चुभाना, धांस देना। ममम्त गत्रिको वरामदा में हो रह व्यतीत करत और स्वांपा (हि.पु.) १ हलकी कोई लकड़ी। इममें फाल प्रात:कान्नको वर तथा कन्या किमो एक पोखर पर जाते लगता है। २ कप्परका कोन । ३ भूमा रखनको जगह। हैं। वरक शरोरम तीर और धनुष बधे रहते हैं। बर इसको कृष्परसे छा देते हैं। को रखी हुई मात गोवरको रोटियों पर निशाना करना खॉपी (हि. स्त्री. ) हंजामतके खतका कोना, बालाका पड़ता है और प्रति निशानक वाद कन्या आवरको एक बनाव। २ खोपा। पहिले दतवन और पोछे मिठाई देता है। यह प्रथा खोमना ( हि क्रि० ) अटकाना, लगाना, घुसेडना। उनके भविष्य कार्यको याद दिलातो है खो-१ मध्यप्रदेश में एक प्राचीन ग्राम । यह उचहरा नगर- पव-जन्मक कठे दिन उसको माता तोर और धनुष मे डेढ़ कोश पश्चिममें अवस्थित है । एक समय यहां बहत से लड़के के सामने खड़ो रहती है। युवावस्थाम पुत्र- घर और देवमन्दिर थे। आजकल उनका भग्नावशेष को आखेटमें चतुर होनका यह मंकेत है मात्र है। इस ग्राममें गुमराज हस्तनीका शिलालेख ये मृतशरीरको पृथ्वीमें गाड़ते हैं। एक रुपया पाया गया है। यहांक भग्नमन्दिरमें वृहदाकार दशा- या एक पैसा उमके वस्त्रके एक कोनमें बांध देते जिससे वतारको भग्न प्रस्तरमूर्ति पड़ी हुई है। मृतदेह रिक्त हाथसे दूसरा लोक न जाय। म के गो-पूर्व उपदीपके काम्बोजराज्य अधिवासी एक प्रबस साथ कभी कभी उसके कपड़े तौर और धनुष पृथ्वीम नाति । रमको मंख्या प्रायः चार लास है। इनका आचार व्यवहार चीन और ब्रह्मवासीके सदृश है। खोड चौर सी देवको मानते हैं जिनमें मे 'धरणो सोइडार (हिं• पु. ) कोल्हमें खोई इकठ्ठा करमेकी जगह Vol. V1. 21.