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पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष सप्तदश भाग.djvu/१३१

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महाकान शिययीय अम्निमें साला गया। किन्तु डालने ममयकारिकापुगणमें रिणा~महाकाल भीर होने इसके दो विन्दु भग्निके बाहर पयंत पर गिर गपेन्ही , मय में मा पर ताल भैरय मामसे जन्म नि महा. दो घिन्तु स शरफे दो पुत्र उत्पन्न हुए। प्रशाने देवने स्नेहयगना महालको सपने मन बनिमुन याप. पकका महाकाल और दूसरेका मृगी माम रमा भृही रूपमें उत्पन किया। और महाकाल दोनों ही काले रंगके थे । भगयान् शङ्कर कालिकादेवीको पूजा करने बाद दादिनी मोर समदा इन दोनों का रक्षणायेक्षण करते रहे। कालको पूजा करनी पड़ती है। इनके सीन मेन, मारुति एक दिन किसी एक निभृत स्थानमें शटर गहरीफे धूम्रवर्ण, दोनों हाथों में दएर और गहाण मुगदंप्रापित, भपहर और फरि ट्याप्रकर्ममे भान है। दाय.ति माय मोडा कर रहे थे। भृटी और Rदाकपाल उस म्यूल (मोरा) है। वदनका यन्त्र लाल है। फे। ऊपरको गुप्त स्थान पर पहरा देते थे। सम्भोगके बाद शरी उट हुर है। गले में मुगठमाला । कपाल जरासे भरा जव बाहर निकली, तव उक्त दोनों भाई की निगाह उग हुआ है मौर चन्द्रग्रएइको तरद धक-धक चमकना है। पर पड़ गई। इस पर शरीने लजाफे मार गिर इन महाकालका ध्यान- भुका लिया। भृङ्गी और महाकाल मी माताको उम "महारानं योध्या दक्षिरे भूगर । अवस्थामें देख कर बहुत लजा गये। ऐसे निभृत समय में किसीको भी ऐसा अधिकार न था कि गहरीको देखें। विभव दपायावादी दादाभिनुम् शिशु मतपय राष्ट्ररी पहले तो यदुत लजित दुई, पर पीछे उन । प्यापनर्माताटि गुन्दिन रनपागम । पिनेमुरी फेराव मुपदमालाविभूषितम् । दोनों पर यास विगहों। उनका फोध देव कर दोनों जटाभारतमचन्द्रावगटनुप्र' अnि भाई बहुत एर गपे। शङ्करोने उन्हें उसी समय शाप " दिया। उस शापसे भृङ्गो और महाकालने मनुष्य . फुमारी कल्पमें महाकालका मन्द म त लिया योनिमें जन्म लिया और उनका मुम्प पन्दर-सा हो है,-"सौ का रोलां या मो महाकाल भैरय स. कर गया। । पिगन् नाशय नामय ही फट सादा।" । मन्त्रोचारण पूर्वक पापानि छारा महाकालको पूजा मृगी और महाकालको मानुपी माताका नाम तारा, सम्पन्न करनेसे याद मूलमन्स देयोको तीन बार तपंग पती था। तारायती रूपयती थी । एक दिन यह किमी फरे । पोरटे पञ्चोपचारमे उनको पता करमी होती है। उच्च सीधशियर पर पड़ी थी मानो पासती कालीतसमें लिगा है-मन्त्री महाकाल की पूमा प्रतिमा भूननमें भपतीर्ण हुई हो। गार भरोके साथ । फरमेयो बाद देवीको पूजा करनी चाहिये। गगन मार्गसे जा रहे थे। इस समय भट्टरने तारायती.' को देखा। उन्होंने शहरीमे कहा, 'प्रिपे! यह मानुषी का पजेर पाना पागा या प्रबन्।" मूनि सुम्दारे. महाकाल और भृङ्गीकी माता सारापतीको (मान) है। मैं तुम्हारे सिया फिसोको भी माना मद्यापिनी ' तन्त्रसारम महाकाल मलीदार पारेमस . बनाना नहीं चाहता। मतपय तुम सारायती रोरमें ' लिप - प्रयेश करो जिमसे मैं फिर भृङ्गी और महाकालको " समस्टरलयांसहय . - उत्पन्न कर। भपको पातको भयामीने सोकार कर लिया महामाय भैरपधि मदिनामा . और सारायती शरीरमें प्रवेश किया। जिपपे. संमगं. मानि पुनःप्राममा सुक्ष्मी । से सारापती गर्मयता । पचासमय भूही और महा। पर गाया गापुरी Tr" । काल फिर उत्पम दुप. किन्तु उनका बानररप नहीं गया। (AEER) '. यानी दोनोंका बन्दरला-सा दो मुंदरद गया। मदाबाद इस तरह मान जारी गमिदिमाग Vol. xv,I.31