पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष सप्तदश भाग.djvu/१५६

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पंहानिशीथ-महानीलतेल देवलके मतसे-रातके दो पहरके वाद शेप दण्ड | इसे नोलकान्तमणि भी कहते हैं। जिस नीलगानको तथा तृतीय प्रहरका प्रथम दण्ड, ये दोनों हो दएटकाल दूधमें रमनेसे दूध नीला हो जाता है उसे पहानांन महानिशा है। "महानिशा रात्रिमध्यमदण्डद्वयात्मिका मा | कढ़ते हैं। द्वितीयप्रहरशेषदयड नृतीयप्रहरपूथमदरडरूपा। ____४ एक प्रकारका गुग्गुल । ५ एक प्रकारका माप । "महानिशा दे घटिफे कोटि सूर्यसमपभः ।" इति। देव- एकपर्वतका नाम जो मेरु पर्वतके पार माना जाना है। नोक्ता महानिशा" (तिथितरर) | महानीलकण्ठरस (स.पु.) रमापविशेष। मस्तन माघमासको कृष्ण चतुर्दशीके महानिशाकालमें | प्रणाली-तिमि मछलीको पित्त भावित मीसा तोर भगवान महाघ कोटि मूर्यको तरद प्रभायुक्त शिवलिङ्ग मोना १ नोला, रससिन्दूर तोला, सरक. २४ तोल रूपमें प्रकट हुए थे। इन सब द्रश्योंको एकत्र कर घृतकुमारी; ग्राहोशाक, "माघकृष्ण-मनुध्यामादिदेवो महानिशि। संभालू, कचूर, मुण्डिरी, शतमूलो, गुडची, तालममाना, शिवनिजतयोद्भतः कोटिगर्यसम्पभः ॥" ( तिथितत्त्व) तालमूली, वृद्धदारक और चिता निको भायना ३ । पाठे तान्त्रिकोंके मतसे प्रथम प्रहरके बाद तृतीय पहर उसमें विकट मोथा, चिता, इलायची, लया और ज्ञानि. तकमा समय महानिशा है। किन्तु एक पहरके वाद फल प्रत्येकका चूर्ण ८ तोला डाल कर २ रत्तीकी गोली यदि दो घंटा बीत जाय, तो उसे अतिनिशा कहते हैं। घनाय । इसके सेवनसे विधवातरोग, ४० प्रकारक यह महानिशाकाल तान्त्रिकोंके अप यौर पूजा करनेका पित्तरोग तथा अन्यान्य सभी रोग विनष्ट हो कर रवि. उपयुक्त समय है। इस महानिगाकालमें ही कालोको शक्ति बढ़ती है। यथेष्ट आहार मिलने पर करके पूजा होती है। समान रूपवान, मेधार्या भीर भीमफे समान यिझम पुत्र "गते तु प्रथमे यामे तृतीयप्रहरावधि । उत्पन्न होता है। इस तेलफे सेयनसे बांझपन पर हो महानिगायो जन्तव्य रात्रिशेपे अपनतु ॥ | जाता है। मोषध सेवनफे बाद २१, दिन तक मधुन • फर्म नहीं करना चाहिये। : (रोन्द्रमारस०), आपच-निशा तु परमेशानि सूर्य नास्तमुपागते । महानीलतेल (सं० स० ) नेलोपविशेष । प्रस्तुत ग्रहरे व गते रात्री घटिके द्वे परे च ये ।। प्रणाली-तिलतैल १६ सेर, बहेले का रस ६४ मेरा महानिशा समाख्याता ततश्चातिमहानिशा .' आमलकोका रस ६४ सैर। चूर्णके लिये योग भईराने गते देवि पशुभावन पूजयेत् ।। । लताका मूल, काली मंटोका मूल, , मुलसी पन, दशदण्डे तु या पूजा तत् समक्षयं भवेत् ॥" (तप्रसा, गुप्तसाधनत० ६ ० ) कृष्णशणका फल, भीमराज, .काफमागी, मुलेठी और देवदार प्रत्येक - १० . पल, पीपर, - विफला, महानिशीथ (सं० पु०) जैन-सम्पदायभेद । रसाशन, प्रपोएटरीक, मनीठ, लोध, फाला मगर, नील मदागीच (सं० पु०) महानतिशयः नीचः । १ रजक, धोयो । (ति०) २ मतिमय होनवर्ण, घोर काले रंगका । फमल, आम्रगी, सामर्दन, मृणाल, नायग्दन, गोल. काठ, भल्लातक, होराकसीस, मलिफापुष्प, सोमराशी, मदानीयू (दि. ३०) विजौरा नीबू मानको बाल, शत्र, मदनको पाल, नितामूल, भतम. महानोम (हिं० स्त्रो०) १ वकायन । २ नुमका पेड़। पुष्प, गाम्भारीपुष्प, मात्रफल और , जायफल, प्रत्येक महानील (सं० पु० ) महान् नौलः नीलवर्णः । ५ महाराज ५ पल । तेलपाको विमानानुसार पार करना होगा। पक्षी। २ नागविशेष। ३ मणिपिशेष, एक प्रकारका मधया समी रम व ता सूप म जाप, सपशफ मामी मोलम जो सिंहल द्वीपमें होता है। इसका लक्षण- छोट देना होगा। यह मल पौने, नस ने धीर मिर- "यस्तु वर्णस्य मयस्सात् धीरे इनारे स्थितः। . पर लगानेसे सभी प्रकारका निरोरोग और का , att पार महानोमास उगवे", .. , असमपमें पं.ना दूर होता है नपा सके और (गा पुराय २८.) ! मासुको पति होती है। (मगरामापौentre).