पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष सप्तदश भाग.djvu/१८२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

१६४ महाभारत ११ स्त्रीपर्य। आदान प्रदान, जयश्रीप्राप्त पाएडयोंका द्रोणपुलके सिर- याफ्य, सहदेवयाफ्य, द्रौपदीयाफ्य, : मनवार से मणि ले कर हटान्तःकरणसे द्रौपदीको देना-इस भीमसेनग्राषय, युधिष्ठिरको देवस्थानका उपदेश, युधि. पर्व में इन्हीं सब विषयोंका वर्णन है। इसमें १८ अध्याय ठिरको प्यासका उपदेश, श्येनजित्का उपारपान, और ८७० श्लोक हैं। राजिक उपाण्यान, नारद पर्योपापपान, सुवर्षप्ठोपीका उपाण्यान, मायश्चित्त वर्णन, युधिष्ठिरके प्रति ध्यासका प्रशाचझ धृतराष्ट्र पुत्रके शोकसे सन्तप्त हो| उपदेश, युधिष्ठिरका नगरमें माना, चर्याकको धर्म निन्दा, कर मोमके विनाशकी कामना करना, कृष्ण-1 चर्चाकवधोपाय कथन, युधिष्ठिरका राज्याभिषेक, भीम- प्रदत्त लोहमय भीमकी मूर्तिको धृतराष्ट्रका तोड़ना, की योयराज्य प्राप्ति, श्राद्धकाय का वर्णन कृष्ण के प्रति पीछे धृतराष्ट्र के शोक सन्तप्तहृदयको शान्त करनेके युधिष्ठिरका स्तव, गृह विभाग, युधिष्ठिरफे प्रल, युधितिर लिये विदुरका नाना प्रकारके सान्त्वना याफ्यका प्रयोग द्वारा रचित महापुरुषोंका स्तय, परशुरामका उपासान, करना, धृतराष्ट्रका अन्तःपुरमें प्रवेश कर अन्तःपुर- कृष्ण, युधिष्ठर आदिका भीमफे पास जाना, युधिष्ठिर वासिनो रमणियोंको साथ ले रणभूमिमें जाना तथा आदिका विदा होना, सूत्राध्याय, वर्णाश्रम धर्म कोसन, चीर पनियोंको अतिकरुण रुदन करते देख धृतराष्ट्र और ऐलकश्यपका कथोपकथन, मुचुकुन्द उपाण्यान, कैयौ. गांधारोका फोधित और मोहित होना, वीर क्षत्राणियों का उपाण्यान, यासुदेव नारदका कथोपकथन, कालक. . के अपने पति, पुत्र और माताओंको भूपतित देखना, युक्षीय उपाण्यान, युधिष्ठिरफे प्रति भीमका, माणा- गांधारीको पुत्रशो कसे अभिभूत हुआ देख कृष्णका स्थान-कीर्तन, सुगंपरीक्षा, राष्ट्रगुप्ति-कोराम, उतप्प सान्त्वना देना, धार्मिकप्रयर महाप्राश युधिष्ठिरफा गोता-कीर्तन, यामदेवगोता, इन्द्राम्बरोप-सयाद, श... शास्त्रानुसार युद्धमें मारे गये वीरोंका शवदाह करना, समाप्रान्त व्यक्तिका फतव्य-कथन, सेनापति कैसा होना पीछे तिलाल देते समय फुन्तीका कर्ण को अपना पुत्र चाहिपे उसफे विषयमें यक्ताम्य, इन्द्रप्रस्पतिका. सयाद, यताना । इसमें इन्हीं सब विषयोंका समावेश है। यह सत्यानृत्यको म, व्याघ्र गोमायुका संपाद, उपदमीयो. पर्य करुणाच प्रवर्तक और हर्यावदारक है। इसमें पाएपान, सरितसागरका संपाद, शपि और कुतका २७ अध्याय और ७७० श्लोक हैं। संयाद, दन्तकोन, दन्तोत्पत्ति कथन, महादपिका १२ शान्तिपर्व। वृत्तान्त, अपभगीता कथन। यह पर्व शानग तथा विविध उपदेशपूर्ण . मापद्धर्भ पर्वाध्याय-रामर्पि, गृत्तान्तकीम, कायपर उपाख्यानोंसे परिपूर्ण है। इसमें धर्मराज युधिष्ठिरका मोर दस्युका संपाद, शाय-लोपाख्यान, विशाल और पिता, माता, प्रभु, साले, मामा आदि सभोका संहार चूहेका संघाद, ग्राहदत, पूजनीका संयाय, कणिकका फरके निवेदको प्राप्त होना, माशाशायी - भीष्मका | उपदेश, विश्वामित्र-निगदका संयाद, कपोतदुग्धा- युधिष्ठिर आदि राजामोको धर्म का उपदेश देना और सपाद, भायांशसा कोतम: एलोत:परीक्षिका उनका मापदर्म पाहना मादि पिपय हैं जिनको सुन कथोपकथन, गृध्रगोमायुका कयोपकपन, पयनशाल्मली. समो लाभ उठा सकते हैं। का संपाद, भारमहान कथन, दमफा गुणपर्णन, सपा- इस पर्व में निम्नलिखित विषय विशेष रूपसे | कथन, सत्यकथन, लोमोपाशन, मशस-प्रापरिवतका पणित हुए हैं। नारदसे युधिष्ठिरका कर्ण की उत्पत्ति विवरण, सटग उत्पत्तिका पियरण, पदमगीता मोर कहना, फर्ण में प्रति अभिगाप, कर्ण का अरमलाम, स्वयं एसानोपाख्यान। . घरमें दुर्योधनका कन्याहरण करना, कर्णफा विक्रम दिस मामय पर्याध्याप-पिट्नलागीता, पितापुरका बार लाना, खो-हातिम प्रति गुधिष्ठिरका अभिशाप, युधि- सपाकगीता, मद्गिीता, बोध्यगीता, प्रहार भोर मगर प्ठिरका विलाप करना, पिशकुनिका संपाद, माल- ! का संपाद,गाल काश्यपका संपाद, मृग-मराज सवार ,