पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष सप्तदश भाग.djvu/१९७

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__ महामेघा-पहायशस् __ महामेधा-सह्याद्रिवणि त एक राजा। । महान् अम्लः सम्लरसो यस्मिन् । ५ तिएिडलीक, इमली। .महामेद(सं० पु. ) श्रेष्ठ मेरू पर्वत । | (नि.) २ अतिशय अम्लरसयुक्त. बहुत गट्टा। . महामैन (सं०१०) मित्रस्य भवः मिन-अण मैलं, महदमिः । मदायक्ष (स.पु.) यक्षयते पूजयति इति..यक्ष-अच, सह महट्ट पा हदि मैत्रमस्पेति । एक युद्धका नाम। महान् यक्षः। १ अर्हत् उपासकविशेष । २.यक्षपति । ३ महामंत्री (सं० स्त्री०) प्रगाढ बन्धुता, गाढ़ी मिलता। एक प्रकार के दौजदेवता। महामैनीसमाधि.(सं० पु. ) वीर मतसे समाधि भव- । महायक्ष-सेनापति ( स० पु. ) तान्त्रिोंके अनुसार देय- लम्बनके लिपे योगप्रकरणविशेष। मतिविशेष। महामोद.(सं० पु०) कंदपुष्पका गाछ । महायनी ( स० खो० ) यक्षरानी। महामोदकारी ( सं० पु० ) एक पर्णिक गृत्ति। इसके .महाया (स'० पु. ) महान् यशः। १ विष्णु। २ घेद- प्रत्येक चरणमें ६ यगण होते हैं। इसका दूसरा नाम पाठादिवप पञ्चप्रकार या। देवपाट, होम अतिथिपूजा, फ्रोडाचक्र भी है। तर्पण और पलिये पांच महायश हैं। महामोह (सं० पु०) मोहःभ्रान्तिानं अतथाभूते यस्तुनि "पाठो होमवातिथीनां सपर्यातर्पण पतिः । तथात्वधानमित्यर्थः महान् मोहः । १ भोगेच्छारूप शान। एतैः पञ्च महायशा ब्रह्मयशादिनाम कैः ॥" २ संसारमूल कारण रागरूप मोह । महान् मोहो| (बमर २२७१४.) “यस्मादिति । ३ महामोहजनक कामराजयोज। यह पञ्च महायज नित्यप्रति ,करना अवश्य कर्तव्य है.। मर्जाग्रे ज्यतामिश्रमय तामिश्रमादिकृत् । वराहपुराणमें लिया है-दिश्य, भौम्य, पैर, मानुप महामोहन मोदञ्च तमाचा ज्ञान नयः॥" और प्राह इन पांच प्रकारके यशोंका नाम महाया है। (भागयत ३३१२४२) जो इस पञ्च महायज्ञका अनुष्ठान करते है घे:विशुद्ध • सांसारिक सुखों भोगका नाम महामोह है। यह होते हैं। अविद्याका नामान्तर माना गया है। "दिव्यो भौमस्तया पेत्रो मानुषो माश एव च। - पपर्या अविद्याफे मध्य यह एक प्रकार है। ब्रह्माने | एतैः पन महायशा ब्रह्मप्या निर्मिता:- पुरा॥ पहले पहल अविद्याकी सृष्टि की। पीछे इसी अविद्यासे इतरेपान्तु यर्याना मारण कारिता शुभाः । " तमः, मोह, महामोह आदिको उत्पत्ति हुई। एवं मृत्वा नरो भुक्त्वा स्यादरित्री विशुध्यते ॥" - पूर्वोक श्लोकको टोकामें श्रीधरस्यामो लिखते हैं, (वराहपुराय) "यंदा स्वसृष्टी मविद्यासृष्टीः ससर्ज, तद तमोनाम स्वरूपा मनुष्य नित्य जो पाप करता है, उसका माश इस प्रकाश, मोहो देवावह युद्धिः, महामोहः भोगेच्छा।" | पञ्चमहायाफे अनुष्ठागसे हो जाता है। इसलिपे सवाँको तमो ऽविवेको मोहः स्यादन्तःकरणविभ्रमः। इस महायज्ञ अनुष्ठान प्रतिदिन अवश्य करना चाहिये। - महामोहरच विशेयो ग्राम्यमोगमुखेपणा ॥" . ____ विशेष विवरण परमहापश्में देखो। ( भागवतटीका सामी ३।१२।२) | महायभागहर ( स० पु. ) विष्णु। महामोहा (सं० स्त्री०) दुर्गा।। महायन्त (सलो०) एक प्रकारका यन्त । महामोहन (सं० लि. ) अतिशय महामोहविशिष्ट। महायम ( स०पु०).यमराज । महामौदल्यायन (स'० पु० ) युद्धके एक शिष्यका नाम । महायमक ( स० ० ) श्लोकभेद। इसके प्रत्येक पार महान्युक (सपु०) शिव, महादेव। | पादमें एक प्रकारको शदात्मक वर्णमाला तो दी जाती महाम्युज (स.पु. ) एक बहुत बड़ी सण्याका नाम।। है; किन्तु उनके अर्थमें प्रभेद पड़ता है। महाम्बुद (सपु०) शिय, महादेव। महायमलपत्रक (स० पु०) काञ्चन वृक्ष, कचनारफा पेट । महाम्ल (सं० लो०) महत् अम्ल अम्लरसयुक, पदा महायशस, ( स० पु०) महत् यशो पस्य, विभाषामहणात्