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. . पहारत्न-महारसोनपिण्ड
दारचीनी, इलायची, तेजपन, नागकेशर, धानरीवीज | महरय ( स० पु० ) मदान रयो यस्य। मेक, बेंग।। ...
( अलकुशीका वीया ), गोरक्षतण्डुला, तालांकुर, केश• महारश्मिजालावभासगर्भ (सं० पु०) योधिसत्त्वभेद।
राज, शृङ्गाटक, त्रिकटु, धनिया, मयरक, रांगा, हरीतको महारस (स.पु० ) महान अधिको रसोऽस्य रुचिप्रदः .
'
दाख, कंकोलो, क्षोरकंकोली, पिंडखज र, कोकिलाशयोज, त्यातan
त्यात् तथात्यं । . १ काक्षिक, कांजी १२ खजूर, पजूर।
फटुको, मुलेठी, कुष्ठ, लवङ्ग, सैन्धव, यमानी, धन-
३ कोपकार। ४ कसेरू । .५ इश, ऊस। ६ पारद
यमानी, जीवन्तो और गजपिप्पलो, प्रत्येकका चूर्ण २/
पारा। कान्तलौह, कांतीसार लोहा। ८ हिंगुल,
तोला डाल दे। अनन्तर यथाविधान यह मोदक तैयार |
ईगुर । । स्वर्णमाक्षिक, सोनामक्खी। १० अम्रक ११
हो कर जब ठण्डा हो जाय तब उसे सुगंधित करनेके
रौप्यमाक्षिक, रूपामखो। १२ जम्बूस, जामुनका पेड़। .
लिये २ पल मधु तथा मृगमद और कपूरका चर्ण छोड़।
(त्रि०) १३ महारसविशिष्ट, जिसमें खूब रस हो ।
दे। इसका सेवन करनेसे रक्तपित्त आदि विविध रोगों-1,
महारसवत् (सं० वि०) १ उत्कृष्ट आस्वादयुक्त, जिसमें
को शान्ति तथा वल, वीर्य और रतिशकिको वृद्धि होती!
।
वढिया स्वाद हो। (पु०) २ खाद्यविशेष। . . . ' '
है। (भैपज्यरत्ना० वाजीकरणाधि)
महारत (सं क्ली० ) महत्व तत् रत्नञ्चति । मुकादि नव-
महारसशार्दूल (सं० पु०) रसोपविशेष । यनानेका :
रत्ने। मोती, होरा, चैदुर्य, पद्मराग, गोमेद, पुष्पराग, |
तरीका--शोधित अयरफ, तांवा, सोना, गंधक, पारा ।
मरकत, प्रवाल और नीलरत्न पे नौ प्रकारके महारत्न हैं।
मैनसिल, सोहागा, यवक्षार, हरोतकी, भायला और .
वहेड़ा प्रत्येक ८ तोला दारचीनी, इलायची, तेजपत्र, ..
महारत्नप्रतिमण्डित (सं० पु०) कल्पभेद ।
महारत्नमय ( स० त्रि०) महाय रत्न-विशिष्ट ।
जैत्री, लवङ्ग, जटामांसी, तालिशपतं, स्यर्णमाक्षिक और
महारतवत् .( स० वि०) महाध्य रतसम्पन्न ।
रसाजन, प्रत्येक ४ तोला । पान और गोमा सागमें सात :
महारनवर्षा (स० स्रो०) तान्त्रिोंकी एक देवीका
वार भावना दे कर उसमें ८ तोला मिर्च छोड़ दे। इस..
का अनुपान और माता दोपके वलायलके अनुसार स्थिर ..
नाम।
करनी होगी। इसका सेवन करनेसे सूतिकारोग, ज्यर,
महारथ (स० पु० ) रमन्ते लोका यस्मिन्निति रम ( हनि |
पिनीरमिका शिभ्यः कथन् । उण २।२) इति कथन, महां-
दाह, यमिभ्रम, अतीसार, अग्निमान्य मादि रोग जाते
. रहते हैं। (रसेन्द्रसारसंग्रह सूतिकारोगाधिकार) -
श्वासौ रथश्चेति । १ शिव । महान् कथोऽस्य । २ अयुत
धन्वीफे साथ अस्त्रशस्नमें निपुण योद्धा
महारसाटक (सं० लो०) महारसानां अष्टकम् | अष्ट धात.
एको दशसहस्राणि योधयेद् यस्तु धन्विनाम् । . .विशेष। पारद, अभ्रक, हिंगुल, धैकान्त, स्वर्णमाक्षिक,
अस्त्रशस्त्रप्रवीणश्च महारथ इति स्मृतः ॥"
रौप्यमाक्षिक, शङ्ख और कान्त लौह यही अष्ट धातु हैं !
(गीताटीकामें स्वामी) दरदः पारदः सस्यो वैक्रान्त' कान्तमभाम् । . .,
जो अकेला दश हजार योद्धाओंसे लड़ सके उसोको .. मानिक विमान ति स्युरेतेऽष्टौ महारसा ॥" (राजनि०)
महारथ कहते हैं। महान् स्याः। ३ घृहद रथ, पड़ा महारसोनपिण्ड (सं० लो०) आमवात रोगको श्रीपर-
रय। ४ राजविशेष
',' विशेष । प्रस्तुत प्रणाली-लशुन १०० पल, विना भूसी.
महारथत्व ( स०को०) महारयस्य भाव त्व । महा के तिल ५० पल, इन्हें मह के साथ पीस कर १६ सेर
रयका भाव वा धर्म, महारथका कार्य । . , . गायफे दूध में मिला दे। पीछे उसमें विकटु, धनिया,
महारथी (संपु०) मारय देखो।
चश्य, चितामूल, गजपीपल, पनयमानी, दारचीनी,
महारच्या (सं० स्त्री०) राजपथ, प्रधान रास्ता। इलायची और पिपरामूल, प्रत्येक १ पल, चीनी ८ पल,
महारम्म (सं० क्लो०) १ लवण। (लि) २ जिसका मिर्च ८ पल, कुट, ४ पल, मंगरेला ४ पल, मधु ४ पल,
मारम्म करने में बहुत अधिक यन करना पड़े। । अदरक, ४ पल, घी २ पल, तिलतल ८ पल, शुक्का
पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष सप्तदश भाग.djvu/२०८
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