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पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष सप्तदश भाग.djvu/२५३

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- महाराष्ट्र २२५ 'निकला पैसा और कहीं भी नहीं। महाराष्ट्रों का स्वाभा-: ( २० हजार श्लोक ) यादि ग्रंथ तथा सैकड़ों पदावलो. 'विक स्वाधीनतानुराग और सम्मिलन प्रबलता हो ऐसे : की रचना कर जातीय ज्ञानभारद्वारकी पुष्टि की । फलभेदका एक प्रधान कारण था। . । उनकी रचना बहुत सरल, गम्भीर और प्रीतिप्रद होती - मध्ययुगका साहित्य। थी। उनका सदाचारप्रभाव महाराष्ट्र समाजको अन्त- '१६वीं और १७वीं शताब्दीके साहित्याचार्यों ने बैल वृद्धिका सहाय हुआ था। सभी श्रेणियों में ब्रह्म- . . शानविस्तार द्वारा महाराष्ट्र-जातिके अभ्युदयका पथ: ज्ञानका प्रचार करनेके लिये उन्होंने प्रथरमनामें एक परिष्कार कर दिया था। जो समझते हैं, कि एक दल : अभिनव मनोरम पद्धतिका प्रणयन किया था। चण्डाल . • अशिक्षित डकैतीके लूट मारके फलसे हो महाराष्ट्रदेशमें । तक भी उनकी प्राञ्जल रचना पढ़ और सुन कर मुग्ध मुसलमान शासनका मल शिथिल हो गया था तथा होता था! माप्तिरमें इन्ही उकैतोंकी शक्तिके प्रमावसे उत्तर भारत इस समय दासीपन्त नामक एक और प्रसिद्ध प्रध- 'मैं मुगल साम्राज्यको नीच गिरने पर थी, घे भारी भूल कारने जन्म लिया । उन्होंने श्रीमद्भगवद्गीताको करते हैं। उनकी भूल नीचेका विवरण पढ़नेसे आपे जो गृहत् टीका लिखी उसका नाम 'गीनार्णव' रखा भाप सुधर जायेगो । जनसाधारणके मध्य धर्म गया। गीताणध सचमुच सम के असा विशाल ग्रंथ .और साहित्यके ज्ञानविस्तारके फलसे ही महाराष्ट्र-) है। उसमें १ लाख २५ हजार श्लोक हैं। इन व्यासकलर साम्राज्यकी नीव डाली गई थी, इसमें सन्देह नहीं।। प्रतिभाशाली प्रथकारका १६०८ ई० देहान्त हुभा। पहले कह आये है, कि मुकुन्दराज और ज्ञानेश्वर इस महारान शिवाजीके पिता राजा शाहजीके गुरु' भानन्द- विभागके पथदर्शक थे । किन्तु उनका नथ मुसल- तनय भी इस समयके एक कवि थे। हंसराज नामक मान विप्लयके समय विलुप्तप्राय हो गया था जिससे किसी साधु पुरुषने इस समय 'यापयत्ति' और छाने- महाराष्ट्र-जाति सुप्त अवस्थामें अपना समय विताती। घर-प्रणोत 'अमृतानुभव' नामक प्रथको सरल व्याख्या थी। पकनायस्वामीने इस सुप्त जातिको जगानेका बीड़ा लिख कर जनसाधारणका बड़ा उपकार किया। भक्त उठाया। १५४७ ईमें उनका जन्म हुगा । उनका पहला चरित लेखक उदयविद् आदि और भी गिनने छोटे बडे, फाम था विलुप्तप्राय ज्ञानेश्वरी (भावार्थदीपिका ) का कवि इस युगमें हो गये हैं। पाटसंशोधन करके उसका बहुल प्रचार करना । एक-1 - १६०८ ईमें रामदाम, तुकाराम, मुनेश्वर और " नाथ और उनके गुरु जनाईनस्वामी दोनों ही राज विट्टल कविका जन्म हुआ। इसके दूसरे वर्ष एक- " कार्य में निपुण और सार-विद्या विशारद थे। जनार्दन- नाथस्यामो इहलोकसे चल बसे । उस समयके राज- स्वामी पहले निजाम शाहके मत्री थे। पीछे संन्यास- नीति क्षेत्रमें राजा शाहजी तथा.धर्म और साहित्यक्षेतमें 'ग्रहण कर उन्होंने महाराष्ट्रमें दत्तात्रेयोपासना प्रवर्तित , एकनाथ आदि साधु ग्रन्थकारोंने जो सद कार्यभारम्भ की। एकनाथने भी कुछ दिन तक मुसलमान-राजाके किये थे, रामदास, तुकाराम आदि साधुपुरुषों और यहां नौकरी को थी। दोनोंको ही सुलतानकी ओरसे शिवाजी, तानाजी मालुसरे और मयूरपन्त श्रादि राज- समरक्षेत्रमें उतरना पड़ा था। पोछे दोनोंने ही शेष | नीनिविदोंने उनका शेप किया था | रामदास धीर जीवन स्वदेशसेवामें-ज्ञान और धर्म के ' प्रचारमें | · तुकारामफे समय मरहटोंमें सय प्रकारके गुणोंका लगाया। .... . • अपूर्व विकाश छा गया था। इसके बाद एक महीके छानेश्वरोका उद्धार करनेके याद एकनाथने मराठी | अन्दर महाराष्द्रदेश में जितने पुरुषों का आविर्भाय हुआ

भाषामे रुक्मिणी-स्वयम्बर ( १७१, श्लोक ), भावार्थ- या, पृथ्वीके और किसी भी देशमें इम थोडे. समयके
रामायण (४० हजार श्लोक), स्वात्मसुख, चतुःश्लोकी अन्दर उतने नवरतोंका याविर्भाव नहीं हुआ।
मागवत, हस्तामलक, श्रीमद्भागवतका एकादश न्य/ यी संदीके प्रथम कवि यिन्टासप्रिय राजयोगी

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