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पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष सप्तदश भाग.djvu/२६३

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महाराष्ट्र २३३ कनिष्ठ पुत्र ) उस समय स्वदेशसे विताड़ित हो कर इधर भीमा नदीके किनारे शाही सेना छायनी डाल मुसलमानों के भयसे मान्द्राजमान्फे 'जिओ' दुर्गम रहते कर पड़ी हुई थी। उधर धनाजी और सन्ताजी आदि थे। रायगढ़ आदि प्रधान प्रधान दुर्गों पर मुगलोंने कब्जा महाराष्ट्रवीर दक्षिणमें कर्णाटकसे उत्तर खानदेश तक कर लिया था। मरहटोंमें सुशिक्षित सैन्यकी संख्या भी सभी देशों में विप्लव खड़ा कर एक एक करके सभी बहुत थोड़ी थी। समाजमें दो चार विश्वासघातक देश ! मुगलथानाओंको जीतने लगे। विशाल मुगलसेना जव बैरीका प्रभाव नहीं था । किन्तु इन सब प्रतिकूल ! उनका पीछा न कर सको, तब ये कर्णाटक, राजाराम- अवस्थामें रहते हुए भी वे लोग स्वधम और स्वराज्यकी को पकड़नेको कोशिश करने लगी। यह ले कर १६६४ रक्षाके लिये बद्धपरिकर हुए, धर्मोत्साहस प्रमत्त हो । ई०को उमेरी नामक स्थानमें दोनोंमें मुठभेड़ हुई। प्रचण्ड सागरतरङ्ग सदृश मुगलसेनाकी गति रोकनेके सन्ताजीके हाथ मुगल सरदार कासिम पां मारे गये। लिये आगे बढ़े । जो कोई पक वलम भी किसी तरह पा उधर वादशाही सेनाने जुलफकर खाकी अधीनतामें लेता था, यही मुगलोंके पीछे दौड़ पड़ता था । उन लोगों जिजो दुर्गमें घेरा डाल दिया था। पांच वर्ष तक घेरा डाले , को और भी उत्साहित करने के लिये राजारामने जिंजीसे रहने पर भी राजाराम और उनके सहचरोंने पराजय न .विविध पुरकारकी घोषणा कर दी। अब उनकी भोषण | स्वीकार को । आखिर वादशाहके जिंजी जोतने के लिये रणोन्मत्तता देख औरङ्गजेबके भी छपके छूट गये। मर- कठोर आदेश देने पर मुगलसेनाने प्राणपणसे युद्ध करके हठोके स्वधर्म और समर्मियोंकी रक्षार्थ प्राणविसर्जनः । जिंजीको अधिकार किया। किन्तु दुर्गमें प्रवेश कर उन्होंने - का संकल्प करने पर शाही सेनाको जगह जगह हार होने देखा, कि राजाराम और उनके सचिवगण उसके पहले लगी।.. वारह लाख सुशिक्षित सेना ले कर मुट्ठी भर , हो दुर्गसे भाग गये हैं। यह घटना १६१८ ई०म घटो। मराठो सेनाके साथ सत्तरह वर्ष तक लगातार युद्ध कर ' राजाराम जिंजीसे भाग कर महाराष्ट्र लौटे और के भी औरङ्गजेबने विजयकी कोई आशा न देखो। सताराम राजधानी बसाई । यहांसे सभी सरदारोंको इस समय सन्ताजी घोरपड़े और धनाजी यादव इन साथ ले उन्होंने मुगलोंके विरुद्ध युद्धयाता कर दी। इस दोनों सेनापतिने असाधारण वीरता दिखलाई थी। ये अमियानके फलसे उत्तर महाराष्ट्रके जो सब प्रदेश दोनों शियाजोके समयसे हो महाराष्ट्रीय सामरिक मुगलोंके शासनाधीन थे, वहाँसे सरदेशमुखी और चौथ विभागमें काम करते थे। इनको कर्णार्जुनके साथ यदि वसूल किया गया । उपमा दी जाय तो, कोई अत्युक्ति न होगो । मुसल- ___इसी समय १७०० ई० राजारामको मृत्यु हुई। मान इनिहास लेखक काफी खां कहते हैं-"सन्ताजी किन्तु इस दुर्घटना पर भी महाराष्ट्र बोर जरा भी विच. मुगलसरदारोंको नाको दम लाया था। उनके सामनेसे लित न हुए। १६८०से १७८० ई० तक योस यप के कोई भी मुगल-सैनिक जीता नहीं लौट सकता था। भीतर एक एक करके शिवाजी, सम्माजी और राजाराम बड़े बड़े मुगल योद्धा भी उनके सामने दहल जाते इस लोकसे चल बसे। तिस पर भी मराठोंके उत्साह थे। उनके साथ युद्ध में जयलाभ कर सके, ऐसा एक और उत्कर्ष का जरा भी हास न हुआ। भी सरदार मुगलपक्षमें नहीं था।' एफ थार सन्ताजी "छिनोऽपि रोहति तरुश्चन्द्रः क्षीयोऽपि वर्दते।" श्येन पक्षीकी तरह म गलके खेमे पर घट पड़े और उस- ___इस न्यायके अनुसार मराठोंका अध्यवसाय और के ऊपरका स्वर्ण-कलस ले कर ही लौटे । उस समय विक्रम दिनों दिन बढ़ने लगा। धनाजी और रामन द्र औरङ्गजेब खेनमें नहीं थे, नहीं तो उनकी जान पर आ पन्तप्रमुख महाराष्ट्र-चोरोंने जरा भी मुगलों को चैनसे वनती। धनाजो में भी कम चोरता न थी। उनके नाम- यैठने न दिया। उनके आकस्मिक आविर्भाव और तिरो- मानसे मुगल तुरङ्गदलमें मोतिका संचार हो गया था। कहते हैं, कि उनका नाम सुननेसे ही मुगलोंका घोड़ा भाव, शीतप्रोम वीके समान उत्साह, क्षघा, तुष्णा चमक कर पानी पीना छोड़ देता था। और विधामके प्रति अमनोयोग तथा फिरसे समरोद्यम Tol. XVII, 59