पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष सप्तदश भाग.djvu/२७९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

महाराष्ट्र २४७

लगे। इस पर सरदार लोग बडे 'विगोड़े। उन्हने वाजी. इस प्रकार हठात् युद्ध आरम्भ होगा, सरदारों ने

रावसे दोनोंमें मेल करा देनेके लिये धार वार अनुरोध यह स्वप्नमें भी नहीं सोचा था। अंगरेज पहलेसे ही फिया, पर कोई फल न निकला । उधर होलकरके भाईको युद्ध के लिये तैयार थे। कर्णल माठकम और व्यक 'बिना किसी कारणके हाधीके पैर तले फेक कर मरया · आव वेलिंगटन आदि अङ्करेज-सेनापतियों ने एक ही समय .डाला। यह संवाद सुन कर यशोवन्तरायने ससैन्य' में और एक ही भावमें भिन्न भिन्न स्थानमें सरदारों पर • पूना पर धावा बोल दिया। पुनाके समीप जा कर आक्रमण करनेका संकल्प किया। इधर शिन्देके साथ उन्होंने बाजीरावको खवर दी, 'मैं श्रीमान्के चरणोंमें विवादवगतः होलकरने पहले इस युद्धमें साथ नहीं प्रतीकार प्रार्थना करने आया है, युद्ध करना मेरा दिल दिया। गायकवाड़ने पहले ही सामन्तमण्डलके साथ कुल उद्देश्य नहीं है।' मूर्ख बाजीरायने इस पर भी ' स्वतन्त्र संधि कर ली थी। अतः शिन्दे और भोसलेको साम्यनीतिका अनुसरण न कर होलकरके विरुद्ध सना एकत्रित सेनाके साथ अङ्गारेजोंका युद्ध आरम्भ हुना। भेज ही दी और आप सिंहगढ़में जा छिपे। अगरेजों से , येरारमें साढ़गांव नामक एक स्थान है, वहीं घेलिङ्गटनने सहायता मांगनेसे भो घे बाज नहीं आये। इधर यशो.। दोनों सेनाको परास्त किया । अब अगरेज होलकरका वन्तरावने युद्ध में पेशवासेनाको हरा कर पूना लूटा और मुकाबला करने चले। हालकरको भी कई युमि अङ्ग- दादा. साहबके दत्तकपुत्र अमृतरायका सिहासन पर रेजोंके निकर अपनी हार मानना पड़ो। धोरे धीरे कई .बिठा कर स्वदेश लौटा। । सरदारोंने हो अङ्करेजोका सार्वभौमत्य स्वीकार किया। ..' 'याजीरावने गरेजोंका आश्रय लिया। १८०२ ई०को । यह घटना १८०५ ई०में घटी। विस्तृत विवरण शिन्दे भीर .३१यों दिसम्बरको अङ्गारेजी के साथ उनको जो सन्धि होलकर शब्दमें देखो। मुई उसमें शर्त इस प्रकार थी.- - उन्होंने हदयसे सार्वभौमत्व स्वीकार नहीं किया। • (१) अङ्करेजोको बाजीरावकी रक्षाफे लिये पूनामें। बाजीरावको भो अगरेजोंके प्रति प्रेम न था। ये शिन्दे, दश हजार सेना हर वक्त मौजूद रहेगा। सेनाके खुर्च- । होल्कर और भोसलेको अंगरेजों के विरुद्ध युद्धघोषणा पच के लिये पेशवा वार्षिक २६ लाख रुपये आयका । फरनेके लिये छिप कर उत्साहित कर रहे थे। स्वयं भी राज्यांश अगरेजों को देंगे। (२) अवरेज यूरापाय युद्धको तय्यारो करने लगे। अंगरेजोंने मरहठोंके एकल शन ओं को अपने राज्यमें आश्रय नहीं दे सकते। होनेसे पहले ही प्रत्येक महाराष्ट्र-शक्ति पर याक्रमण (३) भारतीय दूसरे दूसरे राजा के साथ कलह उप- । करना निश्चय कर लिया था। क्योंकि अगरेजोंको स्थित होने पर विना अङ्करजों को सम्मतिक बाजोराव | बाजीरावके साजिशका पता लग चुका था। इस युद्धको उनके साथ युद्ध वा सोध नहीं कर सकते। तीसरा मरहठा-युद्ध कहते हैं। स्वयं योजीरावने इस • इस प्रकार अगुरेजों को सहायतासे बाजीरावने पुनः । युद्धको आरम्म किया। सन १८९७ ई०में उन्होंने किरकी पूनामें प्रवेश किया। अङ्रेजों ने मराठा सरदारों को (Kirki) स्थानमें अङ्करेजोको छावनी पर आक्रमण किया । सूचित किया; कि आप लोगों के अधिनायक जिस संधिः इसमें वाजोरावको ही हार हुई। इसके बाद वाजीराव सूत्र में हम लोगों के निकट आवद्ध हैं, आप लोग भी भाग गये। इनके भाग जाने पर भी उनके सेनापति यापू आजसे उसी सन्धिसूत्रमें आवद्ध हुए। किंतु सरदाराने गोखलेने महरेजोंके साथ कई जगहोंमें युद्ध किया, किन्तु इस प्रस्तावको मंजूर नहीं किया और कहा, 'हम लोगों हारते हो गये। येरारमें याजोराव पकड़े गये । उन्हों- से सलाह लिये विना जब यह संधि को गई है तब हम ने इच्छा पूर्वक अपना राज्य मंगरेजों के हाथ दे देना 'लोग उसे क्यों मानने चले। फलतः अरेजों के साथ स्वीकार कर लिया । अंगरेजोंने उनको आठ लाख यार्षिक मराठों का फिरसे युद्ध छिड़ गया यही युद्ध इतिहास-! त्ति देना स्वीकार किया। सिताराफे छत्रपति प्रताप- में द्वितीय मराठायुद्ध कहलाता है। सिह बाजीरावके साथ ही थे। अंगरेज इनको