महाराष्ट्र वार्षिक वृत्ति देते थे। इसीलिये पिण्डारियोंसे. अंग . समय उन्होंने स्वार्थानुरोधसे पापी रघुनाथ और अमेज रेजोंका युद्ध हुआ। इसका विशेष विवरण पिण्डारो कम्पनीका साहाय्य किया था। नागपुरफे भोसलेके । शब्दमें पढ़िये। मरहठे सरदार पिएडारियों के पृष्ठ- दुष्यं चहारसे भी महाराष्ट्र समाजको कम क्षति नहीं ', पोषक थे। हुई। नारायण रावको हत्यामें आनन्दीरावको अपेक्षा . सन् १६४६ ईमें महात्मा शिवाजीने जिस स्वराज्य- नागपुरके भोंसले किसो अंशमें कम न थे। इनकी
- को भित्ति कायम की थी, उसे सन् १८१८ ईमें नराधम | स्वार्थापरता और करताको,वजहसे सारा महाराष्ट्रसमाज .
बाजीराय अंगरेजोंके हाथ सौंप कर परमार्थ साधनके दुःखित और क्षतिग्रस्त हुआ था। यकालमें उन्होंने लिये वार्षिक आठ लाख इत्ति ले कर ब्रह्मावत्तको | हो महाराग्द्र नामको कलङ्कित किया था । पहले महा.. ‘गये । उसका परमार्थ कहां तक सिद्ध हुआ, यह राष्ट्र-युद्धमें ये. रिश्वत ले स्वदेशक अनिएसाधनमें . . परमात्मा ही जाने। प्रवृत्त हुए थे। सेंधियाने बहुत दिनों तक विश्वस्तरूप. . फलतः परमार्थ साधन सम्बन्ध रामदास स्वामीके से कार्य किया। अन्तमें इन्होंने भो स्यार्धापरतामे पढ़ 'उपदेशको न मान कर ही मरहठे अवनतिके गड्ढे में गिरने कर स्वदेशका बहुत कुछ अनिष्ट किया था। स्वयं लगे। पवित्र महाराष्ट्र-धमके पालनसे विमुख होनेसे पेशवा भो सय जगह निष्काम कर्तव्यनिष्ठा दिखा.न । उनका अधःपतन आरम्भ हुआ। सदाचार, निस्पृहता, सके। फलतः सात्विक महाराष्ट्रधर्म , उपेक्षित तया .फर्तव्यनिष्ठा आदि सात्त्विक नीति जो शानेश्वर और महाराष्ट्रसमाज अन्तःसारशून्य हो रहा.या । फिर मो, रामदास द्वारा प्रवर्तित महाराष्ट्रधर्मको भित्तिस्वरूप थी | हिन्दूसाम्राज्य स्थापित कर हिन्दूधर्मको . निष्कएटक वह मरहठोंके स्मृतिपथसे अन्तर्हित होने लगी। उनके | करनेको पवित्र वासनासे यह बहुत दिनों तक समय द्वारा प्रतित धर्म हिन्दू-साम्राज्य स्थापनका पक्षपाती | अवस्थामें रहा। भारतको और किसी जातिके हृदयमे हो कर भी परमार्थ मार्गका अन्तरायस्वरूप न था। इसी| उस महनीय वासनाका उदय नहीं हुआ। इसोस उन• लिये गोतामें कहे हुप फर्मयोगको तरह यह अतीव फष्ट-का उन्नति भो न हो सकी। इस तरहको उचाशासे. साध्य था। कोई भी समाज अधिक दिनों तक कठोर हृदय पूर्ण न होनेसे वद वारंवार हवाके मकोरेसे इस धर्मफे पालनमें समर्थ नहीं हुआ। फलतः मरहठे भो| तरह दार्घकाल तक अपने 'प्रतापको भर पण नहीं रख अधिक दिनों तक इस धर्मका पालन न कर सके । निष्काम सकते थे। . ... .. . कर्तव्यनिष्ठाके हाससे 'महाराष्ट्री धर्म' (महान राष्ट्रके / . शासनपद्धति । . . . . . उपयोगी स्वत्त्वगुणप्रधान हिन्दूधर्म भी मरहठोंके. पाल-: इस कौतूहलपूर्ण विषयका जानने के लिये पाठक नीय धर्म ) यह गौरवपूर्ण पवित्र नाम भी परवत्ती इति उत्सक होंगे, इक मरहठोका राजस्य निर्धारण करनेको हाससे विलुप्त हुआ और कर्मकाण्डवाहुल्य राजस हिन्दू व्यवस्था, मालगुजारा वसुल करनेका नियमावलो, नमक, .. धर्मने उसका स्थान अधिकार किया। चित्तशद्धिको | मादकद्रव्य मोर अन्यान्य पदार्था का कर वसूल करनेके . अपेक्षा सोपचार पूजार्चना बहुत कुछ पुण्यजनक समझो | नियम केसे थे विदेशसे कर वसूल करलेके समय कोन- जाने लगी। ऐसी दशा में समाजमें ईयो, विद्वप, कपटता सो नोति फाममें लाई जाता थो। नोकरीका चेतन और स्वार्थसाधनेच्छाकी बलवती होना. कोई अस्या- चुकानेका तरोका, जाताय प्रण प्रहण और उसका परि- भाविक नहीं । निष्काम धर्मको जोर दौलो होनेसे यह शाध करनेको व्ययस्था, दावाना फोजदारो मामलोका सब याते उसमें पैदा हो गई थी। मल्हार राय होल्कर- विचारपद्धति, सैन्य-संप्रह, दुर्ग-रक्षा करनेका प्रणालो,
- .,की अवैध स्वार्थपरताके कारण मरहठोंका भागासूर्य | नौविभागका सैनिक निर्वाचन, पुलिस विभाग, साफ ।
.अस्त हो गया । रोहेलोका दमन करने में होलकर ही मर-1 विभाग, टकसाल, कारागार, धर्मार्थ दान, सिनिरिण, . इठोकं प्रधान मन्तराय हुए थे। भङ्गरेजोंके साथ युद्ध करते चिकित्सा, विद्या और प्रोपधि क्रिया रामसाहाय्य,