पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष सप्तदश भाग.djvu/२८७

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महाराष्ट्र महारुद्र पर खेद, बाजीराधके लौटनेकी आशा और अन्तमें ' की भरमार है। वे संस्कृतके भी विद्वान थे। अपनी गौरतत्वज्ञानमूलक उपदेश आदि विषयोंके वर्णनमें रचनामें व्याकरणके दोषोंको दूर कर भाषा संस्कारमें भी प्रभाकरदाताने जो असाधारण दक्षताका परिचय दिया। प्रयामी हुए थे। उनके काध्यमें कधिमन सुलभ साधा. है, उसकी तुलना नहीं हो सकती। अब तक ८० गोत- रण दोप भी अधिक नहीं। उनफे चित्त संयम और तेज- काव्य प्रकाशित हो चुके हैं, इनमें १२ प्रमार द्वारा स्विता प्रथेट थी। रानी महल्याबाई और पेशवा बाजी .रचित है। कृष्णाजी अनन्त सभासद्-रचित शिवाजी रायने उनको वृत्ति देना चाहा था। किन्तु स्वाधीन. की जीवनी सन् १६६३ ई०में लिखी गई। कृष्णाजीके । चेता मोरोपन्तने स्वीकार नहीं किया। मोरोपन्तकी अन्यों के बाद शिदिग्विजय, शिवाजी प्रताप, पानीपतका कविता आज भी मराठी साहित्यको शोमाको बढ़ा खर, भाऊ सारवका वखर और पेशयाका बखर, : रही है। मराठी साम्राज्यका संक्षिप्त वखर, चित्रगुप्तकृत वखर, महाराष्ट्रक (सपु०) महाराष्ट्र देशजात, महाराष्ट्रदेश में आदि गद्यकाव्य ऐतिहासिक ग्रन्थोंको रचना हुई। होनेवाला । • सतारा महाराजके हमसे मल्हारराय चिटनवीसने महाराष्ट्रो (सं० स्त्री० ) महाराष्ट्रस्तहश उत्पत्तिस्थान. 'प्राचीन सरकारी कागजातोंके साहाय्यस ऐतिहासिक प्रायः स्वेनास्त्यस्या इत्यच, गौरदित्वात्। डोप। १जल की रचना की थी। इसमें शिवाजी, समाजी, शाह तथा पिप्पलो, जल-पोपल । २ शाफविशेष। ३ अठारह राजारामके घरोंका पूर्णरूपसे उल्लेख है। अनेक वखरों प्रकारको भाषाके मध्य एक प्रकारको भाषा । प्राकृत देखा। की भाषा मोजमय और हदयको थानन्द बढ़ानेवाली है।। ४ महाराष्द्रकी आधुनिक देशभाषा । ५गुगुल । . बखरकी भाषामै जैसा Compactness और पारिपाट्य महारिष्ट (सं० पु०) महान् अरिष्टः । १ महानिम्य- है, वैसा आजकलको फयिताओंमें दिखाई नहीं देता। । विशेष, वकायन । पर्याय-फैटर्य, वामन, रमण, गिरि- .. पेशयोंके अधःपतनके समय जिन य वियोंका उदय निम्ब, शुक्साल | इसका गुणकटु, तिक्ता, कपाय, शीतल, लघु, सन्ताप, शोप, कुष्ट, अन, कृमि और विप- हुआ है मोरोपन्त उनके शिरभूपणम्वरूप है। उन्हों नाशक ने आर्याच्छन्दमें प्रायः तीन लाख कविताओंकी रचना की थी । मोरोपन्तको अमर लेखनीके स्पर्शसे मराठी ___महान् रिएः। २ ज्योतिएके अनुसार मङ्गलसूचक भाषामें आर्याच्छन्दका गौरव बढ़ गया है, अगर ऐसा चिह्न । ज्योतिष शास्त्र में लिया है-वालकके जन्म लेने पर सबसे पहले उत्तमरूपसे रिएका विचार करना कहा जाय, तो दोष नहीं । उन्होंने मठारही पर्य चाहिए। ज्ञातयालकके २४ वर्ष रिटकाल तथा इसके महाभारत (२० हजार माया), कृष्णविजय, पृहदशम, बाद उसकी मायुगणना करना उचित है। इस समय मन्त्रभागयत, मन्त्ररामायण (संस्कृत), एक सौ आठ तक केवल रिएका विचार कर उसका शुभाशुभ स्थिर 'तरहके रामायण, सन्मणिमाला, केकावली, प्रश्नोत्तर करना होगा । महारिटयोग चा उसके मल्योगको माला, सत्सङ्ग पएदरपुर माहात्म्य, नामसुधा, सम्मनोरथ अच्छी तरह विवेचना कर फलाफल निर्णय करना आव. . राजि, संशयरलमाला आदि बहुतेरे छोटे वडे. प्रधाको श्यक है। रिए देखो। रचनाये' की थीं। दूसरे दूसरे देवताओं और साधुओं-/ की स्तुतिको उनकी बनाई कितनी ही पुस्तकें मौजद है। महाराज (सं० वि० ) अतिशय पीडा, मारी दुःख। . यमक, अलङ्कार और अनुप्रासके लिये उनकी कविता | महाराज (सं० वि०) महती रुग् यस्य । अतिशप 'बहुत ही प्रसिद्ध है। कहते हैं, कि ये दिन में डेढ़ सौ पीड़ित । . तक कविता भाच्छिन्दमें बना लेते थे। फिर भी उनकी महारद (सं० पु०) रुधार्णा महान् स्वयं ईश्वर इत्यः । रचनामें मधुरता, विचित्रता और कल्पना में कौतुकक्रीहा- } महादेव ।