पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष सप्तदश भाग.djvu/२८८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

२५६ पहारुद्र-महारोहोतकघृत . "महाकाल्या महाकालचगाकाकारस्पतः। १ महारूपक (सं० लो०) महत् रूपकं यत्र नाटक । . .. माययान्छादितात्मा च तन्मध्ये समभागतः।। महारतस् (सं० वि०) १ अतिशय योगदान, बलशाली। महारद्रः स एवात्मा महाविष्णुः स एव हि ॥" . (पु.)२ शिव, महादेव। . (निर्वाणतन्त्र) महारोग.(सं० पु०) महान् घोरानिष्टकारका रोगः यदा महारद-१ कालशान नामक वैद्यक प्रन्यके प्रणेता।२ महान् जन्मान्तरोण भुक्तावशिष्टातिशयपातफेन जनिती हिमालय पर्वत पर स्थित शिवलिङ्गभेद । रोगः। पापरोग । पह रोग आठ प्रकारका होता है, महारुद्रसिंह-विज्ञानतरङ्गिणीके रचयिता। यथा-उन्माद, त्यक दोष, राजयक्ष्मा, भ्यास, मधुमेह, महायतैल ( स० लो० ) तैलोपविशेष । प्रस्तुत भगन्दर, उदर गौर अश्मरी। (शुमितरप नारद ) प्रणाली-कटुतेल ४ सेर, अड़ सके पत्तोंका रस ४ सेर; ."महारोगेण भाभितप्तः प्राश्नीयान्यतरो गतिं गच्छति" काढ़े के छिपे गुलञ्च ८ सेर, जल ६४ सेर, शेष १६ सेर । . (भाश्वमायन रा१७) चूर्ण के लिये पुनर्णया, हरिद्रा, नीमकी छाल, बैंगन, रसंन्द्रसारसंग्रह टीकाके मतमें भी महारोग माठ अनारफे फलका छिलका, फटराई, भटकटैया, नाटामूल, है। यथा-वातव्याधि, अश्मरी, कुष्ट, मेद, उदर, भगन्दप अहसको छाल, निसोथ, पटोलपत्र, धतूरा, अपाङ्गमूल, अर्श और प्रहणी। जयन्ती, दन्ती और त्रिफला प्रत्येक ४ तोला, विप १६ २ महाय्याधिमान, बहुत बड़ा रोग। कहते हैं, कि इस तोला, त्रिकटु प्रत्येक ३ पल, जल ४ सेर । पोछे तेल प्रकारके रोग पूर्व जन्मफे पापोंके परिणाम स्वरूप दोस पाकके नियमानुसार इस तेलका पाफ फरे। यह तेल हैं। वैद्य लोग ऐसे रोगोंको चिकित्सा फरनेस पहले लगानेसे वातरक्त, कुष्ट, व्रण, फण्डु और दाह आदि रोग रोगोसे प्रायश्चित मादि कराते है। जाते रहते हैं। (भैपज्यरत्ना० पातरक्ताधि०) महारोगिन् ( स० लि०) महारोगः क्षयादिरस्स्यस्पेति महारुद्रगुड़ चीतेल ( स० ली० ) तैलोपविशेष। प्रस्तुत इनि। महारोगयुक्त । जिसे महारोग हुमा हो उसे महा. प्रणाली-कटुतेल ४ सेर काढ़े के लिये गुलञ्च १२॥ पातकी और जीवन पर्यन्त अशुग समझना चाहिये। सेर, जल ६४ सेर, शेष १६ सेर, गोमूत्र ४ सेर चूर्ण के जब तक वह इन रोगोंका प्रायश्चित्त नहीं कर लेता तब लिये गुलञ्च, सोमराजीयोज, दन्तिमूल, फरवीमूल, तक धर्मकर्मादिमें उसे अधिकारी नहीं। त्रिफला, दाडिमयीज, नीमयोज, हरिद्रा, वृहतो, कएट क्रियाहोगस्य मूर्गस्य महारोगिय एव च । कारी, गोपवली, विकटु, तेजपत्र, जटामांसी, पुनर्णया, । यथेष्टाचरपस्याहुमरणान्तमशीचकम् ॥" पिपरामूल, मजीठ, असगध, सोयां, लालचन्दन, श्यामा- (शुभियत्यत कूर्मपुराण-मन ) लता, अनन्तमूल और गोयरफा रस प्रत्येक २ तोला । महारोगी (स. त्रि०) गदारोगिन देखो। इस तेलफी मालिश करनेसे घातरक्त, कुष्ठ, विसर्प और ! महारोज ( स०३०) वृक्षमेद । प्रणादि जाते रहते हैं। (भैषज्यरला० यातरक्तरोगाधिक) - महारोमन् (सं० पु०) महान्ति रोगानि वृक्षाविरूपाणि महाकरु (सं० पु.) मृगौकी पक जाति। विराटरूपे यस्प। १शिय, महादेय । २ पृहम रोमयुक्त, महारून (सं० पु०) १ धूहर, म्नुदी । २ एक सुन्दर | जिसके बड़े बड़े घाल हो। ३ सिरात पापुरका जगली वृक्ष । इसको लकड़ीसे मारायशी सामान नाम। . धनता है। यह मदरास और मध्यप्रदेशमें अधिकतासे महारोदीतघृत (सल0) नापविशेष। प्रस्तुन पाया जाता है। प्रणाली-यो ४ सेर। फाढ़े के लिये रोदीतको छाल महारूप (सं० पु०) महत् गहत्तत्त्वादिरूपं यस्य । १ १२॥ सेर, फुलशुटा ८ सेप जल १२८ सेप शेर ३२ सेद महादेव । २ राल, धूना। (ति०) महद पं यस्य । ३, यकरीका दूध १६ सेर; चूर्ण के लिपे सिकटु, सिपला, अतिशय मपयुना, बढ़ा रूपवान् । होग, पमानी, धनिया, विटलवण, जोरा, एमालपण, .