पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष सप्तदश भाग.djvu/३३२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

२.२ महेश्वर यह नगर महेश्वर जिलेका सदर है। होलकरके। १८१५ ई० में उनको मृत्यु सात वर्ष बाद पान अधीनस्य निमारके शासनकर्ता इसको देखमाल करते १८१८ ई० में 'मन्दागोर'में एफ मन्धि हुई। इस सन्धि है। महाराज मलदार रावकी पुत्रश्धू पएटेरावको के अनुसार यहांसे राजधानो उठ कर इन्दौर चली गई। पत्नी अहल्याबाई यहां प्रासाद यना कर स्वयं रहती थीं। १८१६से १८३४ ई० तक हग्गिय होल फर यहांके दुर्ग में इस नगरको प्राचीनताके सम्बन्धमें भी बदतसे फैद रहे। . प्रमाण मिलने हैं। बहुतेरे इसे चन्द्रवंशको प्रथम राजा यहां पढ़तसे कारकार्यविशिष्ट राजप्रसाद है किन्तु धानी वा सहस्रार्जन प्रतिधित माविमतिपुरी यतलाने समो हालक यने हैं। यहाँका दुर्ग गुसलगागो भामद- है। भूमिझम्पसे अभी यह गगर श्रीनट हो गया है। दारीमें बनाया गया था। किन्तु कोई कोई करते है. नगरभागको महो खोदनेसे नमो भो भग्नगृह और गृह- हिन्दूरागन ही इसको नोवं डाली थी । १५६६, १६८२ सजादि दिखाई देती है। यहां जो पत्थरका दुर्ग। और १७१२ ई०की बनी हुई तीन ममजिद है । यहांकी और राजप्रासाद है. यह संस्कारके अभाव, भग्नप्राय भट्टालिका और धर्मशाला में अहल्यावाईकी मन । छतरी ही मशहूर है। यहांका प्राचीन इतिहास हैहयराजवंगफे साथ मिला यहां सूतो और रेशमीफे अच्छे अच्छे कपड़े तय्यार हुआ है। स्पो से १श्यों शताब्दी तक हैहय राजाने होते हैं। दाक्षिणात्यमें उन सय करों और पाइदार मध्यमारतके पूर्वीय विभागका शासन किया। उनके धोतो तथा साड़ियों का बहुत आदर है। धनारसीको उरी प्रसिद्ध आदिपुरष कात्र्तिवीर्यार्जुन इसी नगरमें रहते थे। और छोटदार साड़ो तथा धोतीको अपेक्षा यहांफ यानि ज्यों शताब्दीमें पूचोंय चालुक्य राजा विनादित्यने हैदय- उत्सष्ट धौर येशकीमती होते हैं। राजको परास्त किया और माहिशमतोको अपने राज्यमें मह घर-१ मयामाप्य-रीकाकार फैयटकं गुर ।। ५ मिला लिया। पीछे उन्होंने हैहय राजाओंको यहांका सिद्धान्त शिरोमणिकार भास्कराचारफे पिता । ३ भोल- शासन भार सौंपा और वे ही वंशपरम्परानुकमसे वहां- प्रबन्धधृत एक प्राचीन फयि। ४ पक घंधक प्रयके फा शासन करते रहे । स्वों सदीम मालवाफे अधापतन सङ्कालयिता। हेरम्ब सेनने इनका पचन उद्धत किया पर महेश्या उन्नतिको चरमसीमा पर पहुंच गया। है। ५ अमरफापयिवस्फे रचयिता । ६ कामशास्त्र मागे चल कर मालवाफे मुसलमान राजाओंके ममय प्रणेता। ७ फैशपांयासनामाप्य, यन्तराज गौर उसकी इसकी प्रसिद्धि बहुत कुछ मिट गई । १४२२ ई में मालया टोका, लघुनातकीफा और सिद्धान्तशिरोमणिगाप्य के होशमाहरू गुजरातके राजा रम अमदने इसे छोन ! आदि ज्योतिर्मन्यफे रचयिता । ८ वित्युपनिपना लिया। अकवर धादशाहके समय यह मण्डू सरकारक, और सहय उपनिषद्भापर्य प्रणेता । ६ चौरपालिका - चोली मवेश्वर महालका सदर बनाया गया। , रोका और प्रबोधचन्द्रोदय-रीका रयिता । १. १७३० ३०॥ यह स्थान मलहारराय होलफरफे। जीवन्मुक्तिप्रकरण प्रणेता ! ११ सस्यचिन्तामणिटीका हाय लगा। उनके मरने पर पुवयधू महल्याबाई यहांका ! और नचिन्तामणि दीधितिरीका रचयिता। १२ गासन करने लगी। उनके. समय महेश्वरकी अच्छी दायभागटोकाफे प्रणता । १३ धूर्ण विन्यगासन के उन्नति हुई थी। यदल्याबाई पाद नुकोजीराय राज- प्रणपाता। १४ भदरिएत नीतिशतर्फ का सिंहासन पर येठे। उन्होंने भी इसी स्थानको राजधानी १५ महाभारत-सलापता । १६ मुदागरोसरापे. बनाया। १७६७ १०में तुकोजी मरने पर महेश्वर के प्रणेता। १० रघुगंगटोका रचपिता । १८ रमाणय मधःपतनका म्यपात हुआ । राम्याधिकार ले कर नामः येषाप्राय प्रणेता । १५ एक पिणात ifs. यियाद खड़ा हुमा । १८९८०में यशवन्तराय होलकरने ! धानिक, प्रत्याफे पुत्र तथा सण (प) के पाय । १११ . बाजानेगलटा और नगरको तहस नहस कर डाला1 में इन्होंने विश्वका नाम पर मिधान बना