पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष सप्तदश भाग.djvu/३३७

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पहोवा--पहोष्ठ २१७ नगर प्रधानतः तीन भागोंमें विभक्त है, यथा-; अन्यान्य हमारतोंका निर्माण यहां नियमन्दिर आदिके मध्यशैलके उत्तर प्राचीन दुर्ग, शैलशिवरदेश मध्य दुर्ग भग्नावशे.पसे हुआ था। इसके मिया गयासुद्दीन तुगलक और दरिया नामसे प्रसिद्ध दक्षिण भाग। ८वी सदीमें । के जमानेमें १३३२ ई०को एक ममजिद बनाई गई। यह राजा चन्द्रयर्माने यहां एक बड़ा भारी यज्ञ किया था। मसजिद आज भो शिलालिपि प्रतिष्ठाताकी कोत्ति. समोसे यह स्थान महोत्सव या महोवा कहलाने घोषणा करती है। लगा है। इसके बाद वजारा जातिने इस पर अधिकार

यहां आस पामफे स्थानों में चन्देल राजाओंको जमाया। वे लोग मध्यमारतमें अनाज मादि भेजनेके

अपूर्व कीत्तिके सैकड़ों निदर्शन पडे, हैं। कहते हैं, कि ! लिये यहां आये हुए थे। शहरमें तहसीली कचहरी, रामकुण्ड नामक जो सरोवर है उसके किनारे चन्द्रयर्मा. थाना, डाकघर, विद्यालय, औपघालय, सराय, पाजार की अन्त्येष्टि क्रिया हुई थी। जनसाधारणका विश्वास । मादि हैं। है, कि इस विस्तीर्ण हृदमें पुण्यसलिला नदियोंका जल । महोगी ( हि० वि०) महोयेका भीतर ही भीतर आता है। उपरोक्त गिरिदुर्ग अभी : महोथिया ( हिं० वि० ) महोबी देखो। भग्नावस्थामें रहने पर भी उसका साभाविक सौन्दर्य 'महोविहा (हिं० वि० ) महोबी देखो। दर्शकके मनको मोहता है। मुनिया देवीमन्दिर प्रवेश- महोरंग ( स० पु० ) महांश्चासायुरगश्च । १ यदा सांप । • द्वार पर राजा मदनयर्माके समयका उत्कीर्ण एक शिला; २तगरका पेड़। ३ अनियोंके एक प्रकारके देवताओंका फलक देखने में जाता है। नाम । यह व्यन्तर नामक देवगणके अन्तर्गत है। __ वे सय हद ११वीं या १२वीं सदीमें खोदे गपे थे।। महोररक ( स० वि० ) महत् उरः यस्य । विशालयक्ष, फिरत (कोनि) और मदनसागर नामक हुदको छोड़। जिसकी छाती चौड़ी हो। कर बाकी हद अभी देखने में नहीं याते। मदनसागरके महोला ( अ० पु.) १ होला, वहाना । २. धोखा, चकमा । मध्यस्थल में एक छोटे दोपाकार स्थानके साथ मल. महालि-युकप्रदेशके सीतापुर जिलान्तर्गत मिशरिग्न नगरका संयोग रखने के लिये कासकार्यविशिष्ट स्तम. तहसीलका एक परगना । भूपरिमाण ८० यर्ग मील है। राजिपरिशोभित पुल मौजद है। अलावा इसके हदके पश्चिम सीमान्तयत्तों कठनानदीको बलुई पधरोलो किनारे यहुत-सी इमारत वटी फूटी अवस्थामें पड़ी नजर, जमीनको छोड़ कर यहांका अधिकांश स्थान उर्यरा है। आती हैं। प्राचीन राजाओंने ग्रीष्मकाल में सम्ध्याकालको , यह स्थान यथानमसे पाशी, माहन और गीर जातिके शोतल वायुका सेवन करनेके लिये पर्वतके ऊपर एक, अधिकारमें था। यिस्यात सिपाही-विद्रोहफे समय एक सुन्दर भवन बनवाया था। मदनसागरके उत्तरी तरसे यादन राजा यहांका शासन करते थे। विद्रोहियों में ले कर समुद्र तट तक पक सोपान-श्रेणी चली गई है। शामिल होनेके कारण मगरेजाने उनका राज्य डीन कर उसके दोनों पाश्य में असंख्य देवमन्दिर विराजमान हैं।। एक राजमक्तके हाथ समर्पण किया। .इन देवमन्दिमिसे कुछ जैन-मन्दिर्गेका ध्यसायशेष मी महोल्का (सं० सी० ) महती चासाघुलका थ। उल्का. दिखाई देता है। विशेर । ज्योतिम्गास्त्र में लिखा कि महोल्कापात . चन्देल राजवशने यहां मायः २० पीढ़ी तक राज्य होने पर अनाध्याय होता है। किया था। पृथ्वीराज द्वारा राजा परमालकी पराजयके! "विधुत्स्तनितनिनिमदोकानाच वे। वादसे चन्दल प्रभावका पदुत कुछ हास हो गया । भाकाभिरमनध्यापमतेषु मनुरमीत् ।" (विभिनत्त) . १९६५ ६०में दिल्ली के शादशाह कुतबुद्दीनने इस नगर पर महोबिंशीय ( ०) साममेद । दसल जमाया। उस समय यहां जो मा मुमलमानो! मद्दीष्ठ (सं० पु०) शिव । (नि.)२महदोष्टयुना, जिस फोर्ति स्थापित हुई थी उनमेमे जलहन सांको का नया का होट लम्बा और मोटा हो। Vol. JII 70 . '.