पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष सप्तदश भाग.djvu/३५९

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. . . . . महमूद विगाड़ा ... ३१५ • गडकी चढ़ाई की थी । अन्तिम दो घमें माण्डराज | लिकने इस्लामर्शमें घोक्षित हो खां अमासको उपाधि महमूद निलजीके दमन और निजामशाहफे साहाय्य ] हासिल की। दानके अतिरिक उनके पूर्वोक्त दो अभिमानमें और कोई सूरतको जीत कर सुलतानने चम्पानेरफे राजद्रोही । घटना न घटी। १४६५ ईमें उन्होंने तेलिङ्गनाके सेगा राजा गङ्गादासके लड़के जयसिंहके विरुद्ध कूच किया । • दलकी सहायतासे याभर-पर्वतवासी हिन्दूराजको परास्त इस समय माण्डुराजकी सहायतासे उन्होंने दामोई और कर पाभरदुर्गको जीता था। बड़ोदा प्रदेशमें विद्रोह खड़ा कर दिया था। सुलतानको , १४६७ ई०में गिरिनार और जूनागढ़के राजा राध | सैन्यसंख्याको देख कर जयसिंह डर गये और उनसे . मएडलिको वागी देख कर इन्होंने सदलवल गिरनारको । सुलह कर ली। इसके बाद १४७१ ई० में सुलतान सिंधु-

ओर याला कर दी। जूनागढ़ पर्वतमालाके समीप पहुँच प्रदेशवासी सुमारा और सोड़ा राजाओंको दण्ड देनेके

कर उपरोक्त दोनों दुर्गाको जीतनेकी इच्छासे उन्होंने शाह- लिये चले । १४७९ ईमें सिन्धुप्रदेशको विद्रोहिगण उनके "जादा तुगलक खांको महायल गिरिसङ्कट हो कर भेजा। हाथसे बुरी तरह परास्त हुए और उनके बाल बच्चे बन्दो 'अन्यान्य सेनादल विभिन सेनानायकके अघोन रखे गये। भावमे जूनागढ़ दुर्गम लाये गये। दूसर वप सुलतान- राव मण्डलिकने थोड़ी सी सेना देख कर पहले कुछ भी ने जगत् (द्वारका ) और शोधारराजको परास्त कर • परवाह न की थी। पीछे जव सुलतान खुदसे विशाल | उचित दण्ड दिया । वाहिनी ले कर वहां पहुंचे तब उनको जांखें खुली। वे १४८२ ई०में महमूद फिरमे चम्पानेर दुर्ग'को जोतने- अपमें स्वल्पसंख्यक सैन्यदलको साथ ले सुलतानके, की इच्छासे रवाना हुए। पहले मालवराज गयासुद्दीन- • बिरुद्ध अग्रसर हुए। थोड़ी देर तक युद्ध करनेके बाद | को सहायतासे रायलराजने सुलतान महमूदका मुका- जय उन्होंने आत्मरक्षामें अपनेको असमर्थ देखा तय ये वला किया। पीछे गयास राव जब उनका साथ छोड़ कर निकटयत्ती जङ्गलमें भाग गये। रणमें जयलाभ करके | स्वराज्यको लौटा तब रावलने सुलतानके हाथ दुर्ग सौंप सुलतानमे नगरमें घेरा आला । उनकी वीरता देख कर रिहाई पाई । १४८४ ई में दो वर्ष युद्ध करनेके बाद कर माएउलिक आत्मसर्पण करनेको वाध्य हुए । सुल-] चम्पानेर दुर्ग मुसलमानोंके हाथ लगा था। . तानको उनकी अरजू मिनती पर दया आई और घेरा] १९६० ई० में महमूदने दभोलके शासनकर्ताक विपद्धं उठा लिया। १४६८ ईमें वे फिरसे रायमाएडलिकको जल और स्थल पथसे सेना भेजी। सुलतान महमूद परास्त कर उनका स्वर्णच्छत्र और राज-आमरणादि लूट ] वाहनोने इस युद्धमें उन्हें काफी मदद पहुंचाई थी। लाये। १४६८ ई०में मोरसा-प्रदेशके शासनकर्ता आलफ खांके १४६६ ई०में सुलंतागने पुनः जूनागढ़ पर चढ़ाई यांगी होने पर सुलतान उसे दण्ड देने के लिये चल दिये। कर दी। राप माएडलिकने रचायका कोई रास्ता न आलफ खांने डरके मारे उनको अधीनता स्वीकार कर ख सुलतामके हाथ जनागढ़ दुर्ग सौंप दिया और भाप लो। यहाँसे सुलतान इदर और बागर प्रदेश जीतनेको गिरनार दुर्गमें चले गये। यहां आनेके बाद अपने चले। यहां आने पर उन्हें काफी धन हाथ लगा था। . विश्वस्त अनुचर विशाल (यह माण्डलिककी ओरसे रसद १४६६ ई०में आदिल खां फरखी जव राजकर नदे जुटाता और समी विपयोंमें उन्हें सलाइ देता था)-के | सका, तव सुलतानने आशोर दुर्ग पर चढ़ाई कर दी। . साथ उनकी अनबनी हो गई। विशालने विश्वासघात- तातो नदोके किनारे जव सुलतान पहुंचे तव आदिल खां कता करके धुपफेसे सुलतानको आमन्त्रण किया । सुल-! बहुत डर गया और राजकर दे कर उसने क्षमा मांगी। तान यह संवाद पा कर बहुत खुश हुआ और फौरन यहांसे सुलतान मन्दवाड़को और मन्दवाड़से थालनीर, जमागढ़को चल दिया । घमसान युद्धके बाद यह धर्माल आदि दुर्गों के परदर्शन करते हुए महम्मदाबाद पहाड़ी दुर्ग भी उसके हाथ लगा। आखिर रायमाण्ड-1 लौटे।