पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष सप्तदश भाग.djvu/३७१

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'मांस ३२५ कुरर, जलपादं, खक्षरोट (खजन ) और मृग आदिका | " सूअर, स्यार (गोदड़), वन्टर, गदहा, सब तरहके मृग मांसर्जित है । और वनचर पक्षियोंका मांस भक्षण निषेध है। ब्रह्मवैवतपुराणके प्रकृतिखण्डमें लिखा है-जो पुराणादि धर्मशास्त्रमें मांसभक्षणको 'विधि' और मनुष्य अपनी उदरपूर्ति के लिये दूसरेको जान ले लेते हैं, 'वर्जन' दोनों ही दिखाई देते हैं । अवैध मांस मक्षण - वे शरीरान्त होने पर लाख वर्ष तक मजाकुण्डमें वास बिलकुल निषेध है। भगवान् मनुने कहा है.- करते हैं। इस लम्बी अवधि । उनको आहार नहीं विधिज्ञ ब्राह्मण कभी भी अवैधमांस भक्षण नहीं मिलता। उसी मजाको पान कर उनको जीवन धारण करें। इस जन्ममें जिमका मांस अवैधभावमें भक्षण करना पड़ता है। इसके याद क्रमशः सात जन्म तक, किया जाता है, जन्मान्तग्में उसके द्वारा स्वय खरगोश, मौन और तृणादिका जन्म होता है । इसके बाद भक्षित होना पड़ता है यानी उस जन्ममें वह भी विशुद्ध हो सकते हैं। उसे भक्षण करेगा। गृधा मांस भोजनसे जन्मान्तरमें जैसा १ . कूर्मपुराणमें लिखा है, कि वलाक, हस, दात्यूह । पाप भोगना पड़ता है, वैसा निष्ठुर ध्याधको भी भोगना फलविङ्क, शुक, कयर, चकोर, जलपाद, कोकिल, खा. नहीं पड़ता जो पैसे के लोभसे दुसरे जीवोंको मारा रोट, श्येन, गृध्र, उल्लक, चकई, भाप, कबूतर, रिटिहरी, करता है । पशु आहार करने में यदि एकान्त इच्छा प्राम्य, टिटिहारो, सिंह, वाघ, मानार (पिल्लो ), कुत्ता, हो रहे, तो अन्ततः घृतमयी और पिटकमयी पशुमति वना कर भोजन करना चाहिये : फिर भी, अवैधरूपसे पशुहिंसा न करने चाहिये। जो मनुष्य अपनी इच्छाकी

  • ऋव्यादपक्षिदात्यूहशुक्रमोसानि यर्जयेत् ।

तृप्तिके लिये किसी पशुकी हत्या (हिंसा) करता है, उसे सारस कराफान इंसान महाकावकटिहिमान ।। भी कई जन्मों तक दूसरोंके द्वारा वध्य होना पड़ता है। • कुररं जालपादश्च खजरीटमगद्विजान । जिस पशुको जो मनुष्य हत्या करता है, उस पशुको . . चासान मत्स्यान रक्तपादान जग्ध्या धै कामतो नरः। रोम संख्या अनुसार उसे वध्य होना पड़ता है। बन्धुरं कामतो जग्ध्वा सोपवासन्न्यई यसेत् ॥" . : प्राणियोंको बिना हिसा किये मांस प्राप्त नहीं हो सकता . ( गढ़पुराण ९६ १०) और प्राणिहत्यासे वर्ग की प्राप्तिसे यञ्चित रहना पड़ता "लोभात् सभक्षणार्याय जीविन हन्ति यो नरः । है। अतपय मांसका सर्वशा परित्याग करना हो विधि- मजाकुपडे यसेत् सोऽपि तद्माजी लक्षवर्षकम् ॥ संगत है। किस प्रकार मांसको उत्पत्ति होती है और उस ततो भवेत् न शशका मीनध सप्तजन्ममु। मांसके भक्षण करनेसे किस तरह पतित होना पड़ता । तृणादयश्व कर्मभ्यस्ततः शुद्धि मवेद्ध वम् ॥" । तथा उसका कैसा फल भोगना पड़ता है, यह सब देख . . .(ब्रह्मवैवत्त पुराण) सुन कर ही मनुष्यको इस मांसमक्षणसे सर्वथा यश्चित ,. "यक्षा हंसदात्यहं कसवि'शुक तथा। रहना बहुत उत्तम है । जो अवैध मांस भक्षण नहीं करते, , · कोरञ्च चकोर जालपादश्च कोकिलम् ॥ घे लोकप्रियता तथा नीरोगता प्राप्त कर सकते हैं। देव । चापञ्च खरीटश श्येनं ग तथैव च। . . . . . और पितृगणको पूजा न कर जो मनुष्य दूसरेके मांस ' उलूकं चक्रवाकच भाषे पारावतन्वपि ॥ द्वारा अपने मांसको वृद्धिके लिये यन्न करता है, उसके .. कपोतं टिहिमञ्चय ग्रामटिटिभमेव च ।।.' , ' .. जैसा और कोई भी मन्द भागो नहीं होगा । जो मांस . .. सिंहव्याश्च मार्जार श्वान शूकरमेव च ॥ । नहीं खाता.यह मनुष्य सौ वर्ष तक प्रतिवर्ष एक अश्वमेध 1.; शृगार्ज मर्कट व गार्दभञ्च न भन्नयेत् । - करनेवाले व्यक्तिके समान है। मांस त्याग करनेवाला • यमक्षयेत् सर्वमगान पक्षिणाऽन्यान वनेचरान । गक्ति जैसा पुण्यफल प्राप्त करता है, वैसा पुण्यफल .. . .. ... .. (.कूर्मपु०:१६ म०) । मुनि.मी नहीं पाते; जो पवित्र फलम लादि आहारको Vol. XII. 82