पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष सप्तदश भाग.djvu/३७५

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मांसवर्ग- मांसार्बुद ३३१ मासवर्ग (सं० पु०) १ जलचर, सजलदेशचर, प्रागः ' मांससङ्घात ( स० पु. ) तालुरोगविशेष, एक प्रकारका वासी, मांसभोजी, एकशफ (एक खुरवाला जन्तुमात्र ) रोग जिसमें तालुमें कुछ दूपित मांस बढ़ जाता है । इस- • तथा जागल ये छः प्रकारके मांसवर्ग हैं। ये सब एक- ' में पोड़ा नहीं होती। से एक प्रधान हैं ऐसा जानना होगा। अर्थात् जलचर- मांससमुद्भवा (सं० स्त्री०) बसा, चवीं । की अपेक्षा सजलदेशवासी तथा सजल-देशवासीकी मांससर्पिः ( स० पु० ) राजयक्ष्मारोगमें घृतोषधभेद । अपेक्षा प्रामवासी प्रधान हैं। ये दो प्रकारके हैं, जाङ्गल ' प्रस्तुत प्रणालो-विलमें रहनेवाले पक्षियोंका मांस १२॥ और आनूप। विस्तृत विवरण जाननेके लिये भावप्रकाशका , सेर, जल १२८ सेर, शेष १६ सेर ; घो ४ सेर : चूर्णके मासवर्ग और मुश्रु त ४६ अध्याय देखो। २ मांससमूह, लिये जीवंतो प्रत्येक १ पल। इन सवोंको एक साथ . मांसकी ढेर। मिला कर पाक कर लेना होता है। मांसवहस्रोतस् ( स०को०) मांसनायक नाडी। इस (वाभट चि० ५ म०) नाड़ीका मूल स्नायु और त्वक् है। मांससार (सं० पु०) मांसस्य सारः ६-तत्। १ मेदो- मांसवारणी (स० स्त्री० ) वैद्यकके अनुसार एक प्रकार- धातु, शरीरके अन्तर्गत मेद नामक धातु । (राजनि०) की मदिरा जो हिरन आदिके मांससे बनाई जाती है। मांसेप्वपि सारो बलमस्य वहुव्रो०। २ स्थूलकाय, वह इसके बनाने का तरीका इस प्रकार है-हरिण आदिके जो हष्ट पुष्ट हो। मांससार मनुष्योंका शरीर हष्ट पुष्ट मांसको टुकड़े टुकडे. कर उन्हें म?में रख छोड। होनेसे वे विद्वान्, धनी और सुन्दर होते हैं। ४८ दिनके याद उससे थोड़ा थोडा रस निकाले। "उपचितदेहो विद्वान् धनी मुरूपरच मांससारो यः" मांसविक्रयः ( स० पु०) मांस विक्रय करना, मांस । (बृहत्स०६८१००) घेचना। । मांसस्नेह ( स०पू०) मांसानां स्नेहः ६-तत् । १ मेदो. मांसविकयिन् ( स० वि०) मांसविक्रयोऽस्यास्तीति वा धातु, शरीरके अन्तर्गत मेद नामक धातु । २ वसा, मांसविफपेण जीवतीति इनि। आमिषविक्रयकर्ता, मांस | चयों। पेचनेवाला या कसाव। पर्याय-वैत सिक, कौटिक, मांसहासा (सं० स्त्री०) मांसेन हास: प्रकाशो यस्या। मासिक, शौनिक, कोटकिक । देव और पैतकर्ममें चर्म, चमड़ा। फसायोंका संस्त्रय छोड़ देना चाहिये। मांसाद् ( स० पु०) मांसमत्तीति मांस अद-पिवप् । "चिकित्सकान देवलकान मांसविक्रयियास्तथा। १ मांसभक्षक, वह जो मांस साता हो।र राक्षस । विपणेन च जीवन्तो वाः स्यूहव्यकव्ययोः ॥' "अद्य तय॑न्ति मासादा भूः पास्यत्यरिशोगितम्" (मनु ३११५१) (महि पदा२६) २ पुत्र-कन्या-विक्रयकारी, धनके लिये अपनी कन्या मांसाद (सं० पु०) मांसाशी. मांसभक्षक। जो मांस या पुवको घेचनेवाला। खाता है उसे मांसाद' कहते हैं। मांसविक्रयी (सं० त्रि०) मांसविक्रयिन् देखो। 'यो यस्य मांसमश्नोति स तन्मासाद उच्यते। मांसविक्रेत (सं०नि०) मांस-विक्रयो, फसाब। मत्स्यादः सर्व मांसादस्तस्मान्मत्स्यान् विवर्जयेत् ॥" मांसपृद्धि (स स्त्री० ) मांसस्य वृद्धिः । १ भयुद। २ ___(मनु ५।१५) गलगण्ड, घेघा। ३ श्लोपद, कीलपाय। ४ कोरण्ड, । मांसादिन ( स० वि०) मांसाशी, मांसभोजी। भण्डवृद्धिका रोग। | मांसाङ्कर (सं० पु०) १ अंकुरके जैसा मांससमूह । मांसशील (सं० वि०) १ मांसल, मांससे भरा हुआ। २ अर्शकी वलि । २ मांसप्रिय, जिसे मांस अच्छा लगता हो। मांसारि (सं० पु० ) अम्लयेत । मांससङ्कोच (सं० पु०) मांसका सिकुड़ना।। मांसावुद ( स० क्ली० ) करोगभेद। शूकप्रयोगके बाद