पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष सप्तदश भाग.djvu/३७७

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पाई-पाइकेल मधुसूदन दत्त ३३३ . . “भारमा सुपमा चारुचा मारवधूतमा। पिता राजनारायण वकालती करनेके लिये कलकत्ते मात्तधूत तमावासा सा थामा मेहस्तु मा रमा ॥" आये और खिदिरपुर में एक मकान मोल लिया। इसी साहित्यद० १० अ०) समय मधुसूदनने ग्राम्य पाठशालाको पढ़ाई आरम्भ की। मा भावे-किप । ७ मान । ८ ज्ञान । ६ दीप्ति, प्रकाश। यहांको पढ़ाई खतम करनेके बाद ये यथाशीघ्र कलकत्ता • १० अस्मत् शब्दका द्वितीयैकवचननिष्पाद्य बैकल्पिक | लाये गये। यहां कुछ दिनों तक किसी स्कूलमें विद्या- रूप । पदके उत्तर विकल्पमें 'मां' के स्थानमें मा आदेश ध्ययन करने के बाद सन् १८३७ ई०मे ये हिन्दू कालेजमें होता है। इसका अर्थ मेरा अर्थात् मुझको है। मती हुए। थोडे ही दिनों में अपने अध्यवसाय तथा माई (हि स्त्री०) १ छोटा पूआ । इससे विवाहमें मातृ परिश्रमसे कालेजमै एक होनहार विद्याथों गिने जाने पूजन किया जाता है । २ पुत्रो, लडकी । ३ मामाको स्रो, ! लगे। इसके बाद सन् १८४१ ई०में सरकारसे इनको मामी। वृत्ति मिलने लगो। इससे इनका उत्साह दिनों दिन माइ (हिं० स्त्री०) माई देखो। बढ़ने लगा। कुछ दिन बाद उन्होंने लुक छिप कर माइका (हिं० पु०) खोके लिये उसके माता पिका: गणितका अध्ययन भी किश। उन्होंने इसमें कुछ ही घर, नैहर । दिनों में सफलता पाई। माइकेल मधुसूदन दत्तबङ्गालके एक प्रधान और अद्वि कालेजमें पढ़ते समय मधुसूदनकी विलास प्रियता तीय कविका नाम, फलकत्तेकी छोटी अदालतके दिनों दिन बढ़ने लगो। स्वच्छ और सुन्दर कपड़ा नया प्रसिद्ध यकील राजनारायण दत्तके पुत्र । इनकी माता इन आदिके बिना नहीं रहा जाता था । ये प्रत्येक • जाह्नवी दासी जेसर (यशोहर )के काठिपाड़ाके जमी- कार्यमें आवश्यकतासे अधिक खर्च करते थे । इस दार. गौरीचरण धोपको पुत्री थी। सन् १८२८ ई०की विलास प्रियतासे सौ गुना बढ़ कर एक और भो दोप २५वीं जनवरीको ( १२वीं माघ १२३० फसली ) शनि- ने इनको स्पर्श किया था। डिरोजियोंकी छात्रमण्डलो. वारके दिन जेसर जिलेके कपोताक्ष नदीके परवत्तों सागर में पानदोष और हिन्दूधर्म-निपिद्ध भोजन करना उस दांडीगांवमें कविवरका जन्म हुमा। किंतु यह जन्म.. समय एक अनुकरणीय सभ्यताका लक्षण समझा जाता भूमि उनके पूर्नपुष्पोंकी नहीं। उनके प्रपितामह ! था । पानदोपके साथ साथ उच्छृङ्खलाने भो छाना- रामकिशोर दत्त खुलनेके ताला ग्राममें रहते थे। उनके वस्थामे मधुसूदनके चरित्रको कलङ्कित कर दिया था। जेठ पुत्र रामनिधिदत्त पिताके मरनेके बाद वहांसे अपने दचपनसे पिता माताके शासन शैथिल्य और आत्यादर छोटे भाई माणिकराम और दयारामके साथ मामाके घर से प्रतिपालित हो उस तयणायस्थाके भावोंको संयत आ गपे। उनका भनिहाल सागरदांडीमें था। यहां करना उनके लिये असम्भव हो गया था। धोरे धीरे उनके चार पुत्र हुए। इनमें कनिष्ठ पुत्र का नाम राज-। दुनीतपरायण हो गये। मधुसूदन दूसरेको अच्छा समझ • नारायण था। राजनारायणके जेठ पुत्र हो हमारे चरित ' कर अपना सकते थे किन्तु अपनेको दूसरेके हाथ समर्पण 'नायक मधुसूदन हैं। करना वे जानते ही नहीं थे। अपनो इच्छाको दूसरे • राजनारायणने अपनी पत्नी जाह्नवी दासीके जोते । किसोकी भी इच्छा पर विसर्जन करना उन्होंने नही हो और तीन रमणियोंका पाणिग्रहण किया था। इनका , सीखा था । इसो कारण हतभाग्य कवि चिरजीवनके . खर्च भी अंधाधुन्द होना था। जिस समय मधुसूदन लिये दुर्नीतिके तमोन्धकारमें निमजित हुए थे। का जन्म हुमा, उस समय इस दत्त परिवारका सौभाग्य-: आठ दश वर्ष की उमरमें मधुसूदन अपनी माता और • सूर्या प्रमशः उदय हो रहा था। इसके फलसे मधुः । यरको अन्यान्य प्राचीन महिलाओंको रामायण महा- सूदनका जातकर्म संस्कार बड़ी धूमधामसे हुआ। भारत, कविकङ्कणचण्डी आदि बड़े, यससे पढ़ कर , जिस समय मधुसूदन सात वर्षके थे, उस समय उनके । सुनाते थे। रामायण, महाभारत पढ़ कर जो कवित्व rol. XVII. 82