पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष सप्तदश भाग.djvu/४०

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मसजिद धर्मप्रचारके लिये व्याख्यान देते हैं, यह पतीव और मिद.! हली या मर्मर पत्थरोंकी बनावटको देख उस समयके रान या किबलाके पास खड़े हो कर जो फुरान पढ़ते भारतीय शिल्प तथा कलाकौशलका अपूर्व परिचय मिलता है, वह रातिव कहे जाते हैं। रातियको आम लोगोंके है। उनके प्रत्येक जोड़, खि ठान, प्रत्येक द्वार-खिड़. . साथ नमाज पढ़ना पड़ता है। दूसरे भी उन्हींका अनुः कियां, दीयार, और तो क्या,-भीतरकी लकड़ी के बने परण कर नमाज पढ़ा करते हैं। नकाशीदार कियाड़, पर्दै नथा छतके नीचे के चन्दोवेका इमाम लोग धर्मयाजकमा काम नहीं करते । वे लोग कारकार्य कलाविद्याका परिचय स्थल कहने में भी कोई अपना स्वतन्त्र कोई काम करते हैं। पढावनी कर या अत्युक्ति नहीं होगी। खिड़कीके नकाशी काम और किसी दुकानको रखवारी कर ये अपनी जीविका चलाते | चाँदीके पत्तरोंसे मढ़े चिरागदान जो एक दिन उत्क- हैं। सामान्यदोष देखने पर भी नाजिर उनको हटा देते पंता पाते हुए सर्वसाधारणमें प्रचारित थे आज ये हैं। हटाते ही उनका खिताब 'इमाम' भी छिन जाता शिल्पकार्यको अयनतिके कारण लोप होते जाते हैं। जो है। सिवा इनके मस्जिदमें नीकर चाकर या दाइयां | कठोर कालके प्रयल प्रवाहसे रक्षित हो आज भी मौजूद भो मुकर्रर होती हैं। है, वह स्पर्धाके साथ प्राचीन भारतीय शिल पकी आज मुसलमानिने घरमें रह कर ईश्वरकी उपासना किया भी मर्यादा रक्षा करते हैं। करती हैं। किन्तु इस समय किसी किसी मसजिदमें किसी किसो मसजिदमें हाशको लिखो पोथिया आज अब स्त्रियों के लिये भी स्थान बन गया है । यह सव स्थान भी रखी दिखाई देती हैं। मोरको राज्यके येफनगरको चिक या किसी तरहके परदेसे घिरा रहता है । इस कसयिन मसजिदमें कुरान आदि बहुतेरे मुसलमानी मजा में रह कर यदि मुसलमानिने ईश्वरकी उपासना करें, तो हवके प्रन्ध सोने वा रूपे के नकसे और मनमोसे विभू. दूसरा कोई पुरुप उनको देख नहीं सकता। मिस्रकी | पित दिखाई देते हैं। इन प्रन्यों में एक विख्यान दार्श. राजधानी कायरों में सिंदृजनात' मसजिदमें और जेर-निक आरिटल रचित प्रतिके इतिहास वा तयारिख सलमको अक्सा मसजिदमें मुसलमानिनोंके वास्ते ऐसे (Natural fhistory ) और पपेरों आदि विख्यात स्थान बनाये गये है। टोकाकारोंके भीर बहुतेरे अन्ध पाये जाते हैं। कुछ अन्य तुर्क और हानिफ सम्प्रदायके मुसलमान जिस मस- १०वीं शताब्दीसे भी पुराने हैं। जिदमें नमाज पढ़ते हैं, उनके लिये उनमें वज़ करनेके | महम्मदको जन्मभूमि मकाके पूर्व और पश्चिमके देशो. लिये एक जलफल या जलकुण्ड रहता है। इसी में इस्लाम धर्मका प्रचार होने पर यही समय समय पर जलकुण्ड में लोग हाथ मुंह धोया करते तथा पाक होते। मसजिद बनाई गई । किन्तु दुःखको घात है, कि हैं। इसीलिये जहां जलफल नहीं है या जलकल होने पर वास्तुविद्याको प्रणालोसे काम न लिया गया। हिन्द- भी हमेशा जल मौजूद नहीं रहता वहां एक मट्टोका चह। मन्दिर या ईसाईमन्दिर अपने एक ही नियमसे बनाये यथा धनाते हैं और उसको ऊपरसे ढक देते हैं। इसीसे जाते हैं, चाहे, वे जहां वनाये जायें। किन्तु मुसलमानों चाहवये से लोग यजू फिया करते है। सुन्नी मुसलमान को मसजिदम वैसा कोई नियम दिखाई नहीं देता। ऐसे जलसे यजू करने में कुछ भेद नहीं मानते। देशविदेशमें विशेष कर भारतके विभिन्न स्थानों में __पहले हम कह आये हैं, कि मुसलमान राज्य विस्तार मुसलमानोंको मसजिदं तरह तरहकी धनी हैं। इसका के साथ साथ मसजिदोंका भी प्रचार दढ़ता गया। कारण यह है, कि नही तलयारयाले मुसलमानोंने जय ध्यवसाय और साम्राज्य विस्तारकी आयसे मुसलमान | जिस देशको जीता था, उस देशके देव या धर्ममंदिरोंको राजे विपुल धन खर्च कर मसजिद यना गये हैं। उन्होंने तोड़ कर उन्हीफे ईट पत्थरोंसे मसजिद बनाई थी। कभी इन मसजिदोंकी शाही महलकी तरह सुन्दर बनाने में जरा कभी तो मन्दिरोफा फुछ अंश ही परिवर्तन कर उन भी लुटी नहीं की है। एक एक मसजिद्की सुनहली रूप- विजेताओं के फोतिस्तम्भ मसजिद रुपमै परिणत पर