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माधवाचार्य-माधयाय
परिशोभित दुप। नित्यानन्द प्रभुको कना गङ्गादेवीके माधवीलता, चन्द्रवल्ली, सुगन्धा, भ्रमरोत्सया, भृङ्गप्रिया,
साथ इनका विवाद हुआ।
। भद्रलता, भूमिमण्डपभूपणा, वासन्ती, दूती, लतामाधयी।
यैष्णव सम्प्रदाय में इन्हें शान्तनु राजाका अवतार
(शब्दरत्ना० )
यतलाया है। माधव शान्तनुनपः' गीरगणो शदीपिका . इसका गुण-कटु, तिक्त, पाय, मदगन्धी, पित्त, .
भी यह श्लोक पाया जाता है।
कास, व्रण, दाह धौर शोपनाशक । (राजनि०) भावप्रकाश.
माधवाचार्य-ननामके चशाला प्रामयासी पुण्डरीक
को मतले पर्याय-वासन्ती, पुण्डक, मएडफ, अतिमुक्त,
विधानिधिके थाल्यसखा । दोनों ही एक साथ पढ़ते
विमुक्त, कामुक, भ्रमरोत्सव । गुण--मधुर, शीतल, लघु
और दोनों ही भाविर श्रीगोराङ्गके भक्त हुए थे।
तथा त्रिदोषनाशका
माधयाचार्य-नवोपयासी वैदिक दुर्गादास मिश्रके दो
२ मिसि, अजमोदा। ३ फुटनी। ४ मधुशर्करा,
पुत्र थे, सनातन और कालिदास। सनातनके एक पुत्र
शहदको चीनी। ५ मदिरा, शराय । ६. तुलसी। ७
और एक फनया यो । कनाका नाम विष्णुप्रिया देवी था।
दुर्गा । ८ माधवकी पत्नी । ६ मधुवंशजा कन्या, यहयन्या
ये हो श्रीचैतना महाप्रभुकी दूसरी स्त्री थीं । कालिदासके |
जिसका जन्म मधुवंशमें हुआ हो। १० सयेका छन्द-
भी एक पुत्र हुभा। उसी पुत्रका नाम माधव था।
का एक भेद। . ११ ओड़व जातिकी एफ रागिणो । इस
____एक दिन श्रीवासालयमें श्रीमहाप्रभुका अभिषेक
में गांधार और धैयत वर्जित हैं।. . . .
हो रहा था। सभी भक्त उपस्थित थे। इसी समय
माधयो-पफ वैष्णवी कवि। ये नीलाचल (उसोसाफे
माधयानाय भी वहां पहुंचे । श्रीमहाप्रभुको कृपासे माधय-
अन्तर्गत ) की रहनेवाली थी। शिखिमाइतो और मुरारि.
ने कृणप्रेम लाम किया। पीछे महाप्रभुके कहने पर थे।
माइतीकी छोटी बहन होने पर भी येणपग्रन्थमें उन्हें
श्रीगौराङ्ग अत प्रभुसे दीक्षित हुप । माधव एक प्रसिद्ध
'तीन भ्राता' यतलाया है। .. .. . . . .
कयि थे। धीगीरानफे आदेशसे इन्होंने 'कृष्णमङ्गल.
___ महाप्रभु दाक्षिणात्यका पर्यटन फर जय नीलाचल
काध्यको रचना की थी।
पारे, तब प्रथम दर्शनमात्रसे ही माधवीको उनके मग.
माधवाचार्य-निम्बार्फ-सम्प्रदायके एक गुरु, स्वरूपाचार्य के
शिष्य और बलभद्राचार्य के गुर।
पदयतारका शान हो गया था। इसलिये घे उसी समय
उनकी भक्तिन हो गई। .
माधयानन्द-शाम्भव कल्पनु मफे रचयिता। ,
माधवानल ( स० पु०) माधवनलाख्यानके रचयिता |
.... माधयोदेवीके गौरविषयक पद ऐतिहासिकरात्यस
एक प्राचीन पण्डित ।
पूर्ण है।
माधयार्य-नरकासुर-विजय नामक नाटकके प्रणेता । जगन्नाथदेयके श्रीमन्दिरका दैनिक यिवरण लिपने-
ये माधवेन्द्र नामसे भी साधारणमें परिचित थे। लिये एक लेखकको आवश्यकता थी। मायोका
माधवाश्रम--एक साधु पुरप । घे नारायणाभ्रम | लिखना अच्छा होता था। उनफे त्यल्पाक्षर-प्रथित
शिष्य थे। इन्दोंने स्वानुभवादर्श नामक एक ग्रन्थ रचनागाधुर्य, पाण्डित्य और यदिगौरयसे. मोदित हो
बनाया। इनका दूसरा नाम माधव भिक्ष भी था। । कर राजा प्रतापाद्ने रखी होने पर भी गायीको इस
माधयिका ( स० स्रो०) माधवी-कन टाप । माधयी पद पर सम्मानित किया था। उड़िया रमणो, होने पर
स्दता।
भी उनसी भाषा, गाय और लिगनेकी शैली पढ़ी ही
माधयो (स० सी०) मधी साधु पुष्यति मधु:( फाप्नात् साधु अच्छी थी। उगगो रचनामें सरलता मार मधुरताका
पुष्यत् पच्यमाने। पा३४३) त्या टीप१ स्यनाम दुर्लग निदर्शन अष्टा था। . ....
गपात पुष्पलता। इसमें इसी गामके सुगंधित फूल माधयीय (स लि.) माधयाचार्य-प्रणीन, माया-
लगते है। यह चमेलोफा एक भेद है। पर्याय-अति: । चाफा बनाया हुआ।. २ यसन्तसम्बन्धीप, घसन्त-
मुक्त, पुड., यासंतीलता, अतिमुक्तक, माधयिका, ! अतुफा। . .
पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष सप्तदश भाग.djvu/४२६
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