पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष सप्तदश भाग.djvu/४५५

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मानवतत्त्व ऊपर इस समय अपना प्रभुत्व विस्तार कर रहा है।। मनुध्यके सम्बन्धमें जड़वाद और अध्यात्मवाद । , मनुष्यके कौशल तथा बुद्धिवलसे सहस्रों मतङ्ग हाथी डावपिन और हकसलो-प्रमुख प्रत्यक्षवादी वैशा. या क्षुधात सिंह पराजित हो रहे हैं। कपोतका द्रुत- निकोने मनुश्यको इस जीव-जगत्के सर्वश्रेष्ठ जोय फह पक्ष और क्षिप्रति मनुष्यके अग्नि-गोलेसे हार मानती! डाला है। जड़वादी वैज्ञानिकोंको अनन्त चितामय है। कितने हो संस्कारोंमें सीमावद्ध होने पर भी मानवमस्तिष्कके विस्मयकर विकाशशो देख कर भी नर- मनुष्यकी मानसिक उन्नतिके इतिहामकी पर्यालोचना । धानरोंमें अधिक प्रभेद नहीं दिखाई दिया है। करनेसे मनुष्यको पृथ्वीको जोव-सृष्टिके साथ एक पर्यायमें अध्यात्मवादियों ने कहा है, मनुष्यजाति पशुपक्षोसे रखनेको इच्छा नहीं होती । तियंग जातियों में सरकता उद्भूत जीव नहीं। मनुष्य विधाताके ऐशी शक्तिसम्पन्न शक्ति, युक्तिशक्ति विचारशक्ति और नये विषय सोखने नई एष्टि है। जीवात्मा हो मनुष्यके वुद्धयादि मानसिक फी शकि न्यूनाधिक दिखाई देने पर भी तथा अभ्यास- | गुणोंके मूलीभूत कारण है। यह आत्मा हो ऐसी शक्ति वश प्रकृतिमें परिवर्तन होने पर भी उसकी तुलना करने है। मनुष्य आत्माको शक्ति में जीवजगत्से संपूर्ण नया पर मनुष्यको स्वर्गराज्यका जीव कहना पड़ता है। वेल्स ! जीव है। मनुष्यके कशेरुके मजा आदि शारीरिक यंत्र साहबने ठीक ही कहा है,-जय विशाल विश्वसृष्टिमें | और स्नायुमण्डलोके साथ जन्तुओं का सम्पूर्ण सादृश्य मनुप्यने पशुचर्मसे लजानिवारण करना सीखा ; जव रहने पर भी मनुष्यको स्वतन्त्रता है-अदृष्ट और पुरुषा. नुकोले पत्थरोसे पेड़ोंको काटा ; अरणीके संयोगसे कार है। अन्यान्य तिांग जातियों में उसका प्रथम निविड़वनमें अग्नि उत्पन्न करना सीखा; जिस दिन विना विकाश भी दिखाई नहीं देता। आत्मा मनुष्यके जान्तव चेष्टाके शस्यका वीज कृपक्षेत्रमें वपन किया उसी दिन शरीरमै रासायनिक संयोगसे उत्पन्न क्रिपामान नहीं है। निसर्गराज्यके महापरिवर्तनका सूत्रपात हुआ था। नैस- वर्तमान समयके बड़े रड़े वैज्ञानिक डारविनके मतको गिक परिवर्तनमें बाधा डालने में समर्थ हो जिस दिन | पुष्टि नहीं करते। मनुष्य सृष्टिके सम्बन्ध में प्राचीन मनुप्यने प्रकृतिके विरद्ध अस्त्र उठाया था, वह दिन हिन्दुओंकी दार्शनिक तत्त्वालोचना पाश्चात्य मानवतत्त्व. अवश्य ही स्मरणीय है । परिवर्तनशील पृथ्वोको पीठ की संज्ञासे वाहर है। पिकार्ड साहब कहते हैं, कि पर मनुष्यने जिस दिन प्रतिद्वन्द्विता करना सीखा, उसी मनुष्यको उत्पत्तिके सम्बन्धमें कोई स्वाधीन मतका 'दिन मानव सृष्टिमें अभिनव-सृष्टिका सूत्रपात हुआ। प्रकाश मानवतत्त्वालोचनाके अन्तर्गत नहीं है। इस ___ 'आज जो दर्शनशास्त्रके ज्ञानसमुद्रके रत्नसञ्चयमें | विषयमें प्राचीन बैज्ञानिकों का एक मत नहीं है। 'निमग्न सत्य, न्याय और धर्मके ऊपर जो नीतिशास्त्र मनुष्यकी उत्पत्ति और अभिव्यक्ति । प्रतिष्ठित है, जो धर्मशास्त्र विश्वेश्वर के साथ मनुष्यका मनुर्योकी उत्पत्तिके सम्बन्धमें कई तरहके मत सम्बन्धनिर्णयमें अग्रसर है, घे सब सम्पूर्ण रूपेण मान-] दिखाई देते हैं। किन्तु भाज कलके सब मत जीय-विशान- यीय शास्त्र होने पर भी तिर्यगजातियों में उनका पहला ( Biologs) के ऊपर निर्भर करता है। मनुष्य सृष्टिफे अंकुर दिखाई देता है। सम्बन्धमें दो मतोंका उल्लेख करना आवश्यक है, एक घेल्सका कहना है-मनुष्य विलकुल नये प्रकारका सृष्टिविषयफ, दूसरा विररी या अमिध्यतिविषयक। जीव है। उन्होंने फिर अभिव्यक्तियादके प्रति तीन दोनों मत-वालोंका एक स्वरसे यही कहना है, कि मनुष्य कटाक्ष कर कहा है-मनुष्य वियत्र्तवादको उच्च सीढ़ी पर सृएिका श्रेष्ठ जीव होने पर भी मातृरूपा वसुन्धराकी एक पहुचने पर भी किसी अदृश्यमान प्राचीन जीयका सहो- सबसे छोटो सन्तान है। उन्होंने भूगर्भस्थित प्रस्तर- दर किसी कश्यपकल्प ब्रह्माकी सन्ततिका अधस्तन वंश है। हो सकता है, कि जिस औरससे उरग और विह- वत् मानवकङ्काल या हवियोंको निकाल उनकी अच्छी गमको उत्पत्ति हुई है उसी तरह मानय उनका सौतेला तरह परीक्षा की है। उन्होंने देखा है, कि यहां मछलियों- भाई है। ,. तथा कच्छपोंकी ठठरियां ज्योंकी त्यों पड़ी हैं। किन्तु '