मसूद खा-मसूद (ममीर सुलतान) विति मस-उरन् स्त्रियां टाप । १ वेश्या, रंडी।२ मोहि । किया है; मैं भी ठीक वैसा ही करूगा। सचमुच भेद, ममुरो नामका अनाज । मसूर देखो। . सुलतानने कभी भी अपने भाईके साथ अच्छा रताय मसूद खां-मालव एक मुसलमान राजा, सुलतान नहीं किया था। मसूदफे मुंहसे ऐसा महतोड़ जवाब होसनफे पुत। १४३५ ई० में मुलतानके यजोर मालिक सुन कर सुलतानने समझ लिया, कि अगर ये दोनों माई मोघीके लड़के महम्मद खाने प्रथम युवराज गजनी खाँको एक जगह रहेंगे तो निश्चय ही आपसमें मर मिटेंगे, विष खिला कर मार डाला और शासनभार अपने हाथ अतः दोनों को दो जगह रखना ही अच्छा है। अतः लिया। यह संघाद पा कर युवराज मसूद खां मालवसे | उन्होंने इराक जीत कर मसूदको यहांका शासनकर्ता भागे और गुजरातके राजा महादको शरणमें पहुंचे। बनाया और भविष्यमें महमदफे साथ विवाद फरनेसे तदनुसार सुलतान अहमदने मसूद स्त्रका पक्ष ले कर | मना कर दिया। पिताको बार बार मनाही सुन कर मालयाको ओर युद्ध-यात्रा कर दी। शारङ्गपुर पहुंच मसूदने उत्तर दिया, 'यदि महम्मद मुझे उतनी सम्पत्ति कर उन्होंने महम्मद के विरुद्ध कुछ विश्वस्त और बहु- जितनी न्यायसे होनी चाहिये दे दे, तो मैं कभी भी उसके दशी कर्मचारीके अधीन एक दल सेना भेजी । खां जहान विरुद्ध हथियार नहीं उठाऊंगा।' मसूदका पेसा कठोर (मालिक मोघी )-ने यह संवाद पा कर वड़ो तेजीसे वचन सुन कर महम्मदने समझ लिया, कि गजनीका मान्दु-दुर्गमें आश्रय लिया। गुजरातफे राजा भी इसी | राजसिंहासन पानेको भाशा अब तक भी मसूदके हृदयः समय वहां जा धमके। कुछ दिन दुर्गमें अवरुद्ध रह से दूर नहीं हुई है। इस अहापोहमें पड़ कर सुलतान फर ये शत्रुसेनाका आक्रमण य्यर्ध करने लगे। इसके इराकका परित्याग कर पुनः गजनी आए । किन्तु यहां बाद दोनों पक्षको सेनामें मुठभेड़ हो गई। अहमदशाहने था फर चे अधिक दिन तक राज-कार्य करने न पाये, अपने लड़के महम्मद खांकी अधिनायकतामें पांच हजार | थोड़े ही दिनों के बाद उनकी मृत्यु हुई। , ।, घुड़सवार सेना भेज फर शारङ्गपुरको दखल किया। सुलतानको मृत्युके बाद उनके इच्छानुसार महम्मद । महम्मद खांने जब देखा कि दुर्गमें रहने से कोई फल राज तख्त पर पैठे । मसूदने यह संवाद पाते ही नहीं, तब ये तारापुर-फाटकसे निकल कर शारङ्गपुरको खोर सनको भोर कदम बढ़ाया गौर यहां पहुंच कर . ओर चल दिये। राहमें मालिक हाजीने उन्हें रोकनेकी छोटे भाई महम्मदके पास एक पत्र लिन भेजा जिसका चेष्टा को पर अकृतकार्य हो ये यहांसे भागे। आशय यों था, 'मैं सिर्फ पितृदत्त इराक राज्य पा कर . गुजरात के राजा सुलतान अह्मदने मसूद खांको फिर- संतुष्ट नहीं है, मेरे आदेशानुसार मेरे नाम पर हो सत्या से मालय राजसिंहासन पर विठानेका वचन दिया था, पाठ कराना।' महम्मद इस पर राजी नहीं हुए। वस पर वचन पूरा होनेके पहले ही मसूद इस लोकसे चल फिर क्या था, 'दोनों में लड़ाकी तैयारी होनी लगी। यसे। राजपितैपियों के शान्तिस्यापनको लास चेष्टा करने पर मसूद (अमीर सुलतान )-गजनीफे सम्राट सुलतान | भी कोई फल नहीं निकला । महम्मद युसुफविन सवक्ता- महमूदफे यड़े लड़के। मुलतान महमूदने छोटे लड़के गिनको सेनापति बना कर रणक्षेत्र में उतरे । ४२१ दिजरी. महम्मदको बहुत प्यार करते थे, इस कारण उन्होंने मह में नगीनावादमें रहने समय सवतगिन और थमौर अली गमदको ही अपनी सम्पत्तिका उत्तराधिकारी बनाना शायन्दने वागी हो कर मसूदका साथ दिया और चाहा। किन्तु यड़ा लड़फा मसूद पीछे कहीं महम्मदको महम्मद पर चढ़ाई करके उसे कैद कर लिया। इस काम- न सताये, इस माशङ्कासे उन्होंने एक दिन मसूदको घुला के लिये पारितोषिक पानेकी मागासे दोनों हो गसुदक कर पूछा, 'मसूद ! तुम अपने भाई महम्मदके साथ | | पास गये । किन्तु फल उन्टा हो गया । यिभ्यासयातकों. भविष्य में कौन परताय करोगे?' मसूदने निडर हो को बाध्य देना अनुचित समझ फर मसूदने अली खा. । कर उत्तर दिया, 'मापने अपने माईके साथ जैसा परताय! यन्दको फैद किया और सयक्तगिनको मरवा साला।
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