पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष सप्तदश भाग.djvu/४७६

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मानसिंह हुआ। ऐतिहासिकगण जहांगीरके सिंहासन लामको । मानसिंह- मारवाड़का एक दूसरा राजा । ये राजा विजय ' कथा कुछ और तरहसे लिख गये हैं। कोई कोई कहते सिंहके पौत्र और गुमानसिंहके पुत्र थे। राजा विजय है, कि राजा मानसिंह वीस हजार राजपूतसेनाके अधिः सिंहने अपनी अश्ववालजातिको एक पारविलासिनीके अनुः जायक और प्रवल क्षमताशाली होते हुए भी प्रकाश्यरूपसे | रोधसे मानसिंहको उस युवतीका दत्तक पुत्र और अपने सम्राट का दमन न कर सके। उन्होंने गुप्तभावसे पड़ा। सिंहासनका प्रकृत उत्तराधिकारी पतला कर घोषणा कर यन्त्र रचा था। पीछे जहांगीरको यह बात मादूर हो दी थी। इस पर सामन्तमण्डली यहुत बिगड़ी और जाने पर वे चुपकेसे नाव द्वारा भांजेके साथ भागे। भूमसिंहके पुत्र भीमसिंहको गद्दी पर बैठानेकी कोशिश फिर कोई कोई कहते हैं, कि मानसिंहने जहांगीरसे १० करने लगी। राजा विजयसिंहको जब यह मालूम हुआ, करोड़ मुद्रा रिशवत ले कर उन्हें चैन दिया था। .तब उन्होंने चिढ़ कर मानसिंहको अपना दत्तक पुत्र धना जो कुछ हो, जहांगीर अपने पधको साफ कर दिल्लीके लिया। किन्तु सामन्तोंने मालकाशीनी नामक स्थानमें सिंहासन पर बैठे । उन्होंने मानसिंह और अपने पुत्र खुशरू एकत्रित हो कर एक पड़यन्त्र रचा और चारविलासिनी- ' के कुल अपराध माफ कर दिये और मानसिंहको फिरसे | फा काम तमाम कर भीमसिंहको ही मारवाड़के सिंहा. बङ्गालके अफगानोंका दमन करनेके लिपे नहीं भेजा। सन पर विठायो । किन्तु विजयसिंहने उन्हें कोशलसे यहाँ आठ मास रहने के बाद १०६५ हिजरोमें उन्हें फिर-सिवान दुर्गमें भेज दिया। से रोहतसका दमन करने के लिये जाना पड़ा। अनन्तर . विजयसिंहके मरने पर प्रवासित भीमसिंह जोधपुर घे जहांगीरके पास पहुंचे। जहांगीरके आदेशानुसार आये और सिंहासन पर अधिकार कर बैठे। , उन्होंने उन्होंने कुछ समय पितृराज्यमें रह कर शान्तिसुखफा अपने राजपदको निष्कण्टक करनेके लिये चचा, और ' भोग किया। इसके बाद वे स्वराज्यसे सेना और अर्थ चचेरे भाइयों को यमपुर भेज दिया। एकमात्र मानसिंहने संग्रह कर अवदुर रहीमफे साश दक्षिणप्रदेश जीतनको | हो उनके कल्लुपित हाधसे रक्षा पाई थी। भीमसिंह देखो। गये। . जहांगोरफे शासनकालके वें वर्ष मानसिंह भीमसिंहके भाग्यमें राज्यसुख बहुत दिन तक पदा दाक्षिणात्यमें रहते समयं इहलोकका. परित्याग कर पर- न था। थोड़े ही दिनों के अन्दर घे.फराल कालके गाल. लोकको सिधारे। ....... . .. . में फंस गये। अव मानसिंह फूले न.समापे और झालोर , किसो किसी मुसलमान इतिहासकारने लिखा है, दुर्गसे बाहर निकले । राठोर सेनाने उनका अच्छा कि जहांगीरके शासनकालमें १०२४ हिजरीको राजा सम्मान किया। . १८६० सम्यत्मे माघमासको पञ्चमी- मानसिंहफा बङ्गालमें देहान्त हुआ था। किन्तु अन्यान्य को उन्हें घड़ी धूमधामसे राजटीका दी गई। उनके इतिहासकारोंका कहना है, कि उत्तराञ्चलमें खिलजो शासनकालसे मारवाड़ इतिहासका शोचनीय अध्याय जातिके विरुद्ध जो लड़ाई हुई थी उसके दो वर्ष पहले ये आरम्भ हुआ। मारे गये थे। . जयपुर, मानसिहको जीवनीके संबंध . राजा मानसिंहके सिंहासन पर येठानेके कुछ दिन जो सय.प्रन्पऔर प्रवादयाफ्य प्रचलित हैं, उनका सङ्क: याद ही पोकर्णके महातेजस्वी सामन्त सवाईसिंहने पूध लन फरनेसे.. एफ. पड़ा पोया यन सकता है। प्रतिहिंसाको चरितार्थ करनेके लिये उनके साथ शत्रुता उनको १५ सीखियोंमें ६०, सती हुई.थीं। कुल टान दी। ये मत राजा भीमसिंहके पफमान पत्र धन- स्त्रियोंके गर्भजात पुत्रों में एकमाल भावसिंह . ( भवसिंह ) ! कुलसिंहको मारयादसिंहासनका उत्तराधिकारी बनाने पितृराज्यके अधिकारी हुए थे, बाकी सभी पुत्र पिताकी के लिये सामन्तोंकी उभाड़ने लगे। सोने मिल कर मृत्युसे पहले इस लोकसे चल बसे थे। . ..... मानसिंहको राज्यच्युत करने और धनकुलफो सिंहासन 1.. भागरेमें जहां ताजयोयोका मगहर रोजा 'ताजमहल' पर बिठानेका पड़यन्त्र रचा। विद्यमान है.यह स्थान राजा मानसिंहके ही दप्नलमें था। . राजा मानसिंहफे कठोर शासन और विद्वपमायसे