पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष सप्तदश भाग.djvu/४७८

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४२० पानसिंह-मानहंस सीधे लौट गये। पीछे ले० कर्णल दाइ साहब कम्पनीको मानसिक (सं०नि० ) मागस ठम् । . १ मनोभाव, मनको मोरसे मारवाड़ राज्यके एजेएट बन कर आये। राजा | कल्पनासे उत्पन्न । किसी फप्टसे छुटकारा पाने के लिये मानसिहके साथ कर्णलको गाढ़ी मित्रता थी। इस समय) देवताको पूजा आदि मानसिक करनी होती है।, २ मन मारवाइ प्रान्तमें मन्त्रो अक्षयचांदने नादिरशाही आरम्भ | सम्बन्धी, मनका । (पु०) ३ विष्णु !. . .:- कर दी थी । युद्धमें अक्षयचांद, किलादार, नागोजो, मानसी (सं० स्त्री०) मानस-स्त्रोत्वात् डीप। १ विद्या.. मूलजी, दन्छल, जोवराज, विहारी, ,खोची, ध्यास शिव- देवोविशेष, पुराणानुसार एक विद्यादेवीका नाम । २ दास और श्रीकृष्ण ज्योतिषी आदि अत्याचारी सरदार | मानसपूजा, यह पूजा जो मन, ही मन की जाय । (खि०) पकड़े और वन्दी किये गपे। राजा मानसिंह उनमेंसे ३ मनोभवा, मनसे उत्पन्न। .. ............ प्रत्येकका प्राण ले फर निष्कण्टफ हो गये थे। पीछे इन्होंने . "ततोऽभिध्यायतस्तस्य जशिरे मानसी: प्रजाः।": पोकर्णके सलीमसिंहके वंशको ध्वंस करनेकी चेष्टा को। . . . . . . . . . . (विष्णु पु० ११७१) मानमिहके इस व्यवहार पर सामन्तगण बड़े अप्रसन्न मानसीगंगा (स. स्त्री०) गोवर्धन पर्वतके पासके एक हुए । ; किन्तु - मानसिंहने प्रतिहिंसावृत्तिको सफल साल सरोवरका नाम। . . . . . . . . . . . . करनेके लिये मानो संहार-मूर्ति धारण कर ली थी। उनके | | मानसीय्यथा , सं० स्त्री०) हृदयजात शोकदुःखादि, मान- गादेशसे ८ हजार वेतनभोगी कमानवाही सेनाओंने रात- | सिक कष्ट। ... . .... .. फो.निजामके सामन्त सुरतान सिंह पर आक्रमण कर मानसूत्र ( सं० लो० ) मानस्न गारप्रमाणस्य तन्मानार्थ दिया। युद्ध में सुरतान मारा.गया, सलोमसिंहने माग कर अपनी जान बचाई। इतने दिनोंके याद राजपूत धीर | | वा सूत्र'। स्वर्णादिनिर्मित कटिसूत्र, सोनेकी करधनी'। मानसिंह प्रसत वीरतेजसे मारवाड़राज्य ध्वंस करनेको मानसून (अ० पु०') १ एक प्रकारको वायु । 'यह उद्यत हुए। भारतीय महासागरमें अप्रैलसे, अक्तूयर मास तक १८५० सम्बत्में अगरेज कम्पनीके साथ महाराजा । घरावर दक्षिण-पश्चिमके. कोणसे और अपतूबरसे धिराज मानसिंहकी संधि हुई। जयपुराधिपने अपने | अप्रैल तक उत्तर-पूर्वके कोणसे चलती है। अप्रैलसे भांजे धनकुल सिंहको राजतप्त पर थैठानेकी कामनास अक्त घर तक जो हवा चलता है, प्रायः उसीके वारा पुनः मारयाड़ पर चढ़ाई कर दी। पहले मानसिंहको गह- भारतमें वर्षा भी हुआ करती है । २ महादेशों और रेजोसे कोई साहाय्य नहीं मिला । पीछे अङ्करेजा सेना | महाद्वीपों तथा उनके आस पासके समुद्रोमें पड़नेवाले फे रणक्षेत्रमें उतरते हो धनकुल दलवल के साथ भागा। वातावरण सम्बन्धो पारस्परिक अन्तरके कारण उत्पन्न इस समय जयपुरराज अगरेज गयर्मेण्ट द्वारा विशेप- होनेवाली वायु । यह प्रायः छः मासं तफ एक निश्चित रूपसे लाञ्छित हुए थे। .. ::: : दिशामें और छः मास तक उसकी विपरीत दिशामें १८६२ सम्यत्की सन्धिके अनुसार योधपुरराज वहता है वहतो है। ' सैन्यसाहाय्यके बदले में एक लाख पन्द्रह हजार रुपये मानसोत्तर ( स० पु० ) पयतनेणीभेद। ..... देनेको, राजो हुए थे। यूटिश गवर्मेण्टने १८३५ ई० में | मानसीकस् ( स० पु०) मानसं सर योको वासस्थानं । राजा मानसिंहफे अधिकारमुक मदीरवाड़ा प्रदेशके अन्त...यस्य । -हंस। . .. .......... . र्गत २८ ग्राम नो यों के लिये इजारा ले लिया। उसके मानस्त (सं० पु०) पूजा या गमिमानफे कर्ता। उपसरपसे ये वार्षिक १५ हजार रुपये लेते थे। १८४३ , मानस्य (मपु०.).मनसका गोलापत्य । ई० में जारेका समय पूरा हो गया। उसो साल राजा मानहस (स० पु० ) एक पृसका नाम । इसको प्रत्येक ..मानसिंहको मृत्यु हुई। ये अगरेजोंकी सहायतासे मार- चरणमें स ज ज भ र' होते हैं। इसके अन्य नाम याड राज्यका बहुत कुछ संस्कार फर गये थे। - .. | मनहंस, रणइंस और मानसईस भी हैं। ..