पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष सप्तदश भाग.djvu/५१०

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१४५२ ... मारण बलवान् और चन्द्र के करमहके साथ करमहके क्षेत्र- माण जान लेना आवश्यक है। उसका जन्गलम्न, जन्म, में रहते समय यदि पृष्टियोग हो, तो उस समय मारण नक्षत्र और जन्मलग्नाधिपति ग्रह इन तीनोंके अनुकूल कियाका अनुष्ठान करना चाहिये। मारणकर्म करना होगा। इन सब ग्रहों के बलावलका "भभिचारस्य विषयानाकर्णय वदामि ते । अच्छी तरह विचार किये बिना यदि कार्य किया जाय, सकरे कर वर्गस्थे चन्द्र बलिनि शोधने । तो मारनेवालेको मृत्यु होतो है। -, . . विष्टियोगे च कर्तव्योऽभिचारोऽप्यरिनिधने ॥" . देवताके प्रति भक्ति दिखला कर गुरुके आशानुसार (पटकर्मदीपिका) गुरुदेवके पार्श्ववत्ती : हो कार्य करे । अभिचारकार्यमें. पापिष्ठ, नास्तिक, देवब्राह्मणादि निन्दक, अज्ञ, | शत्रुके लिये शोक नहीं करना चाहिये । 'करनेसे फल घातक, कुत्सितकर्मरत, क्षेत्र, वृत्ति, स्त्री और धनापहारी, नहीं होता, परन् अनिष्ट ही होता है। जिसका. मारण फुलान्तकारी, समयनिन्दक, सल, राजद्रोही, विषाग्नि करना होगा, उसके जन्मलग्नसे अष्टम लग्नमें तथा अष्टम शस्त्रादि द्वारा प्राणियों के प्राणनाशक, ऐसे दोपयुक्त। राशिमें करप्रहके रहते समय मारणकार्य करे। मारण व्यक्तियोंको यदि हत्या की जाय, तो हत्या करनेवालेको | कार्यमें राशिके अनुसर.दिनका निर्णय करके पोछे, काम कोई दोष नहीं लगता। दशास्थितिकी विवचना कर शुरू कर दे। मेप, और वृषको पूर्व दिशा, मिथुनको मारणकार्य करना होता है। जो व्यक्ति पूर्व लिखित | अग्निकोण, कर्फट और सिंहको दक्षिण दिशा, योगादिका विचार किये बिना किसीको मारनेमें प्रवृत्त | कन्याको नैतिकोण, तुला और पृश्चिकको पश्चिम . होता है, उसको मृत्यु शीघ्र ही होती है । ग्रामण, धार्मिक, दिशा, धनुःको वायुकोण, मकर और कुम्मको उत्तर... राजा, खो, यशशोल, दाता और दयावान् इन ‘सव दिशा तथा. मोनको ईशानकोण, इस प्रकार राशि- .. प्यक्तियोंके प्रति मारणादि किसी प्रकारका अभिचार | क्रम जान कर कार्य करे। दिनमें पांच पांच दण्ड करके कम नहीं करना चाहिये। यदि कोई शत्रुतावशतः एक एक राशि होती है ।, जय जिस ओर कार्य करना . ऐसा करे, तो विपरीत फल होता है अर्थात् जो होगा, तब उसी ओरको राशिको जान कर मारणकार्य .. व्यक्ति अभिचार करेगा उसीकी मृत्यु होगी । करना श्रेय है। ... .... ... जिसकी हत्या करनी होगी, पहले उसको आयुफा परि .. लग्नसे गोचरमें, तृतीय और पञ्चमः स्थानमें यदि . अशुभ ग्रह रहे, तो मारणकार्य करना चाहिये। . ..

  • "पापिठान नास्तिकाश्चैव देववाझणनिन्दकान् । ____ मारणादि अभिचारकर्ममें कुण्ड बना कर होम करना

अशाच घातकान सर्वान क्लेशकर्मसु संस्थितान् ॥ आवश्यक है। यदि कुण्ड न बना सके, तो स्थण्डिल क्षेत्रवृत्तिधनस्त्रीणां आहार कुलान्तकम् । करके होम करे। स्थण्डिलका नियम इस प्रकार है- निन्दक समयानाञ्च पिशन राजघातकम् - समतल भूमिको अच्छी तरह गोवरसे लीप कर एक हाथ विषाग्निक रशनाद्य हिसकं प्राणिनां मुदा। चौकोन स्थान चिह्नित करे। पोछे उस पर चार अंगुल योजयेन्मारणे कर्मण्येतान्न पातकी भवेत् ॥ बाल बहा कर दे। इसीका नाम स्थण्डिल है। इसी दशास्थितिञ्च संवीक्ष्य सूर्यान्मारणमात्मवान् । स्थण्डिल पर होम करना होगा। . . , ...... अनवेदय कृतं कर्म आत्मानं हन्ति तत्क्षयात् ॥ . .व्याघातयोग, हणयोग, विषयोग, मृत्युयोग और क्रुर. ब्राह्मया धार्मिक भूप वनितामैष्टिक नरम् । . योग, इन सब योगोंमें मारणादि अभिचारकार्य उत्तम है। पदान्य सदय नित्यमभिचारे न योजयत् ।। . वशीकरण, आकर्षण, विद्वेषण और मारण मादि अभि- .. रिपोरष्टमलग्ने च क्ररे त्वष्टमराशिगे।'. .चार कौमें चार पुत्तलिका (पुतलो) वनावे । पुलिका स्थाने कुर्यादनिष्टानि तद्विनाशाय साधनम् ॥" इत्यादि। मोम या मैदेकी होनी चाहिये । उम पुत्तलिकाको कुण्ड- .'. . ... . . (षटकर्मदीपिका) | में रख कर पूजा और होम करना होता है। सर्पमस्तकके