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पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष सप्तदश भाग.djvu/५१४

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४५८ मारवाड़ केवल बीकानेरका शासन ही नहीं वरन् समूचे जोधपुर। बादशाह जहांगीरके घडे लड़के और उत्तराधिकारी .. की राज्य-सनद दी। राजकुमार परवेज मारवाड-राजकुमारोके और द्वितीय , इसके बाद शत्रु-सेनाने जोधपुर पर चढ़ाई की। बूढ़े। राजकुमार खुर्रम जयपुर राजकुमारोके गर्भसे उत्पन्न वीर राजा मालदेवको युद्ध में पराजित हो फिर अधीनता | हुए थे। ये दोनों ही राज्य लोभसे चालवाजी करने . स्वीकार करनी पड़ी। इस बार इन्होंने अपने दूसरे | लगे। खुरम जब गजसिंहको अपनी ओर लानेमें सफल . लड़के उदयसिंहको बादशाहके पास भेजा। इस राज- | न हो सके तब उन्होंने गजसिंहको दाक्षिणात्यसे कुमारके व्यवहारसे सन्तुष्ट हो वादशाहने उन्हें मारधाड़ निकालनेकी इच्छासे उनके चचा कृष्णसिंह द्वारा , का भावी राजा कह कर स्वीकार किया। इस समय उनके विश्वासी सेवक और सामन्त गोविन्द दासको .. राजा मालदेवने बुढ़ापेमें स्वाधीनता खो अपनी जीवन- | मरवा डाला। इस समाचारसे क्रोधित हो गजसिंह अपने । लीला समाप्त की। राज्यको लौट आये। राजा मालदेवके वारह पुत्रोंमें केवल उदयसिंह वाद- इस समय खुर्रमने अपने भाई परवेजको मार डालने शाहको कृपासे अपने पिताके सिंहासन पर बैठे। इन्होंने तथा अपने पिता जहांगीरको राजगद्दीसे उतारने की आशा- अपनी वहिन योधयाईको वादशाहके हाथ समर्पण किया। से राज्यमें वलया खड़ा कर दिया। बादशाह जहांगीर- सम्राट्की कृपासे ये मुगलसेना-नायकके पद पर नियुक्त की विनती पर गजसिंह अपनी राठोर सेना ले कर बना. हुए। पीछे अपने पुरुपाओं द्वारा शासित समूचा मारवाड़, रसके पास विद्रोहियोंके सामने हुए । इस युद्धौ खुर्रम- राज्य इन्हें हाथ लगा। अजमेर प्रदेशके वदले इन्हें बन की ओरसे लड़ कर मेवाड़ के राणा भीमसिंह मारे गये। मालवाके कई हिस्से मिले थे। खुर्रम हार कर जान ले भागा। इनके मरनेके वाद राजकुमार सुरसिंह सन् १५६५ . ई० में राजगद्दी पर बैठे। इन्होंने भी वादशाहका साथ दे सन् १६३८ ई०में गजसिंह गुजरातकी लड़ाईमें मारे दाक्षिणात्य और गुजरात जय करनेमें राठोरोंकी वीरता. गये । वादमें उनका दूसरा लड़का यशवन्तसिंह सिंहासन की रक्षा की थी। बादशाहने इनकी वीरतासे सन्तुष्ट हो | पर बैठा । ये वादशाह शाहजहाँके चारों लड़कोंके अन्त. इन्हें 'सवाई राजा' की उपाधि दी। विश्लचऔरङ्गजेवके विरुद्ध लड़े। फतहवादको लड़ाई. गुजरातको जीत फर और वहां के पठान-राजवंशको नए | में इन्होंने हार फर औरङ्गजेवसे सन्धि तो की, लेकिन कर राव सुरसिंह विश्राम लेने जोधपुर राज्य आये । इस | शाहजादा इनके अपराधको न भूला। दिलीकी राजगहो समय इनके लड़के गजसिंह राठोर-सेना ले वादशाहके । पर धैठनेके बाद औरङ्गजेयने बदला लेनेकी गरजसे राजा. पास रहते थे। गजसिंहने झालोर विजय किया, पाश्चात् | को अपनी सेनाके साथ कावुल जानेको आज्ञा दी। इस धादशाहने इन्हें मेवाड़पति राणा अमरसिंहके विरुद्ध समय पहाड़ी अफगान लोग वादशाहफे विरुद्ध बलया भेजा। कर रहे थे । विजय-गौरवको पानेकी इच्छासे राजा यश- फिर सन् १६२० ई०में वादशाहके आज्ञानुसार सुर- मारवाड़में अपने बडे लड़के पध्दोराजको रख सिंह दाक्षिणात्य गये । उसी वर्ष वहां उनकी मृत्यु हुई। पड़े। ..... " . . करनेके समय पिताके मरनेके बाद गजसिंह मारवाड़के सिंहासन पर " त्याग किया। थैठे। ये अपने वाहुवलसे खिकीगढ़, किलेना, __बंशज पृथ्यो. पनाला, गाजनगढ़, आशीरगढ़ और - युद्ध- मरया कर अपना में जयलाभ फर यादशाहके : uaint इस अपूर्व शक्ति और वीरताके - की उपाधि मिली। . काउपाधि मि. . .