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पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष सप्तदश भाग.djvu/५१८

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मारवाड़ी नाम , गंग , मानसिंह राज्यारोहणकाल । वाड़ी धावक किसी एक धनो अथवा व्यवसायी मार. . . राव योध। ...१४२७ ई०सन् । चाडोके घर आता है, तब वे उसे अपने घरमें रख कर'. , सूर्यमल ., . . . : : १४८६, उसके गुजरका पूरा इन्तजाम कर देते हैं। केवल यही नहीं, लिम्बना पढ़ना और महाजनी आदिका हिसाव ,' मल्लदेव (मालदेव) ." . . ::१५३२ । रखना भी उसे सिखाया जाता है। जब उक्त विषयोंका • ॥ उदयसिंह - फुछ शान हो जाता है तब उसे थोड़ी पूजी , सूरसिंह १५६५ , • दी जाती है। इस प्रकार उसी पांच रुपयेकी पूजो. राजा गजसिंह . १६२० से वह वाणिज्य-व्यवसाय करता और थोड़े ही समय- , यशोवन्तसिंह १६३८ ।, में दो चार हजार रुपया जमा कर लेता है। बादमें । अजितसिह -१६८०, , वह मारवाड़ लौटता और विवाह करके संसारो हो महाराज अभयसिंह ... १७२५ , जाता है। जिस ग्राम में वह पहले व्यवसाय करता था, , रामसिंहः . . . . .१७५०: .. मितव्यताके गुणसे थोड़े ही दिनोंके मध्य उस 'प्राममें 1 भक्तसिंह . . . .१७५१ . " आ'कर महाजन कहलाने लगता है। वह यड़ी बड़ी , विजयसिंह । दूकान खोलना और इस प्रकार चंद रोजमें मालेमाल हो , भीमसिंह , १७९२ ,, जाता है। तय स्वजातीय महाजन भो उसे अपने जोड़- ' का समझने लगते हैं। . .... . • विभिन्न श्रेणोके मारवाड़ोमें परस्पर विवाह सम्पन्य ,' भक्तसिंह . १८४३ . , ,, यशोवन्तसिंह न होने पर मो वे सभी नाना विषय और एकतासूत्रमें , . . . १८७३ ... , सरदारसिंह : . . १९१० . (१) | आवद्ध रहते हैं। किसीको मृत्यु हो जाने पर मास पासके सभी मारवाड़ी आते और अन्त्येटिकिया के समय ', उमेदसिंह ( वर्तमान महाराज). . : सहायता करते हैं। वार्षिक श्राद्धकालमें मृत व्यक्तिके मारवाडो-मारवाड़वासी वणिक-सम्प्रदाय । मारवाड़ी निकट संबंधो वहुत दूर देशसे आते और मारवाडोसमाज- कहनेसे अभी दो श्रेणोके लोग समझे जाते हैं; एक को बुला कर भोज देते हैं।। .:. : ... प्रकृत मारवाड़वासी स्वनाम-प्रसिद्ध जाति और दूसरो]:. उत्तर-पश्चिम प्रदेशमें मारवाड़ियोंके मध्य सिंहानिया, राजपूताना और उसके आसपास रहनेवाला पणिक | गुन्दका, सरोप, सरायगी, झुनझुनवाला, जोरिया, सम्प्रदाय। दूसरो श्रेणीमें अप्रवाल, ओसवाल और · क्षेमका, बजाज और या पे नौ श्रेणियां हैं। प्रत्येक माहेश्वरी शाखामुक्त अधिकांश जैन हैं। जो ,असल श्रेणो १७२ थोकोंमें विभक्त है। स्वश्रेणी में विवाह मारवाडी है ये दाक्षिणात्यके नाना स्थानों में मारवाड़ो . - करनेका नियम नहीं है। अलावा इसके मामा,माताका धावक कहलाते हैं। व्यवसाय, वाणिज्य और महाजनी माता, पितामहका मामा, पितामहोका मामा, माताके ।' इनकी प्रधान उपजीविका है। थे भारतवर्षके, नाना; 'पितामहका और माताकी पितामहीको मामा. जिस स्थानों में व्यवसायके उद्देशसे धस गये हैं ... ऐसी जिस दलके हैं, उस उस दलमें मो विवाह नहीं होता सञ्चयी और मितध्ययो जाति मालूम होता है, संसार 'किन्तु ' मारवाड़ी समाजमें विशेष फलकत्ते और भरमें नहीं है। कर्ज लगाने और व्यवसाय वाणिज्यमें झरिया शादिके मारवाड़ी समाजमें दो दल हो गया इनकी यथेष्ट चतुरता, धूर्तता और निष्ठुरता नाना- है । एक दल सुधारक-समाज कहलाता है। इसमें बाल- कारणोंसे दिखाई देने पर मो ये अपरिचित स्वजातिके विवाह, वृद्ध-विवाह जैसे महा अनिष्टकर कार्योंको रोक प्रति जो सहानुभूति और दयादाक्षिण्य दिखलाते हैं यह कर मारवाड़ी समाजमें एक नया भादर्श जगत्कं सामने अत्यन्त प्रशंसनीय है। जब कोई निर्धन निराश्रय मार- रखनेका यत्न किया है । इसने अब तक मारवाड़ी-समाजमें