पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष सप्तदश भाग.djvu/५१९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

" मारवाड़ी. .८०से अधिक विधया-विवाह कराये हैं। जगह जगह सभायें हैसियत है ये उतना ही अधिक ग्राह्मण-भोजन कराते हैं। कर यह सुधारक-समाज इस कार्यका विस्तृत रूप कर । प्रत्येक ब्राह्मणको एक रुपया कहीं कही इससे भी देनेके लिये यत कर रहा है। सच पूछिये, तो विधया.} अधिक भोजन-दक्षिणा दी जाती है। विवाह के बाद विवाह इन लोगों में प्रचलित नहीं है। कन्या और वरकी "सजनगोठ" नामक भोज कन्या पक्ष वर-पक्षको देता कुण्डली मिला कर विवाह किया जाता है। विधाहके है । वर-पक्षके लोग कन्याके घर जा कर भोजन करते दश दिन पहले होसे स्त्रियां जलसेवन किया करती हैं। हैं । मारवाड़ियों में कन्या-पक्ष विवाह के दिन पर-पक्षी उसी जलपात्रके निकट गणेशको मूर्ति स्थापित की जाती, वरातको नदो सिमोता, परं विवाह के बाद 'सजनगोठ' है। इस तरहका उत्सव कन्याफे घर होता है। विवाहफे ' देता है। तीन दिन पहले गान-हरिद्रा या शरीरमै हल्ली लगाई शीतलादेवोकं सम्मानार्थ पहले घरको गदहे पर जाती है। माता पिता सिवा सात स्त्रियां और भी चढ़ना होता है। इसी अवस्था में वरको माताको गोदमें होती हैं। इसी दिनसे विवाहके दिन तक नित्य गणेश- शिर झुकाना पड़ता है। गधेके कपालमें सिन्दूर और पूजा तथा हल्दी लगाई जाती है। हल्दीका टोका देना पड़ता है। गधेसे उतर कर पर घोड़े .: सन्तान उत्पन्न होनेके बाद दाई या चमारी आ कर पर चढ़ता है। इस बार भी माताकी गोदमें शिर नाल काटती हैं और प्रसूतिका घरके सामने उसे गाड़ | झुकाना पड़ता है। इसके बाद घर विवाह के लिये आगे देती हैं। इसके बाद बालकके मामा या फूफा आ कर बढ़ता है। उस समय एक आदमी छत धारण कर बडा जहां नाल गड़ा रहता है, वहां स्पर्श करते हैं। इसके ! रहता है और पक चवर झुलाता रहता है। उस समय लिये ये एक एक नया धस या धोती पाते हैं। इसके वरको बहन मा फर घरका पथ रोकती है। किन्त कर वाद ज्योतिषी आ कर कुण्डली बनाते हैं। पांचवें दिन | उपहार पा कर यह वहांसे हट जाती है। इसके बाद पर प्रसूति स्नान कर नया वस्र पहनती है। पांच दिनों तक । कन्या गृहको ओर समारोहके साथ आगे बढ़ता है। प्रसूतिके पास केयल चमारो रहती है। पांच दिनों के बाद | कन्याकं धरके सामने आ कर दरयाजे पर लगा तोरण- गृहकार्य करनेवाली,दाइयां भी प्रसूति गृहमें आया जाया को नीमको टहनीसे तोड़ देना पड़ता है। इसके याद करती हैं। एक महीने के बाद प्रसूति स्नान कर शुद्ध होती। कन्याको माता आ कर वरण कर जाती है। इसके बाद है और सूर्यका तर्पण देती है। यदि समीपमें गङ्गा हों, तो वरात लौट जाती है। मारवाड़ियों में विवाह के लिये एक प्रसूति नवकुमारको गोदमें ले करगङ्गा पूजने जाती है । जव - स्वतन्त्र विवाह-मएडप तैयार होता है। कन्या उपस्थित पालक छ: मासका हो जाता है, तब उसका अन्नप्राशन | ब्राह्मण-मण्डलीको मिष्टान्न देती है। अनन्तर कन्या कराया जाता है। इसके बाद चुड़ाकरण संस्कार | गौरी-गणेशकी पूजा कर कुम्हारके घर जा कर उसके चाक ( चक) की पूजा करती है। परफे विवाह-मण्डपमें . विवाहके दो दिन पहले भाइयोंकी जिम्मनवार होतो. उपस्थित होने पर घर-कन्याका गें8 जुड़ाय कर दिया है। इस दिन पुरानो प्रथाके अनुसार पञ्चायत होती है। जाता है। इसके बाद गौरी और गणेशको पजा र इस पञ्चायतमें किसी पातका निवटारा हो या न हो। पुरोहित द्वारा विवाहका मन्त्र कार्य सम्पन्न होता है। (सम्भव है, कि कोई कठिन समस्या या उपस्थित हो। पुरोहितको सुमंगली दे कर घर-कन्या अन्तःपुरमें प्रवेश तो उसका उस पञ्चायतसे निबटारा कर दिया. | करती हैं। यहां स्त्रियोंके रीति-रश्मोंके हो जाने के बाद यर जाता है) किन्तु जिम्मनयारफे दिन पञ्चायत | मात्मीय स्वजनके समीप पाता है। . होगी अवश्य । लोग पञ्चायतमें पधारते और मिल ! ... दूसरे दिन कन्याके आरमीय आ कर क्षमताफे मनु- मिला कर भोजनादि कर घर लौट जाते हैं । विवाहके। सार घरको कुछ दे कर भाशीर्वाद दे जाते हैं। इसके एक दिन.पहले ब्राह्मण-भोजन होता है। जिनको जैसी बाद कन्या-पक्ष यर-पक्षको 'सजनगोठ' (जिसमें हर होता.है।. .